मांडणा राजस्थान एवं मध्य प्रदेश की कला है। मांडणा संस्कृत भाषा के शब्द मांडण का रूप है। जिसका अर्थ है 'खोजना'। मांडणे यहां के सामाजिक उत्सवों, धार्मिक पर्वो, शादी-विवाह, जन्मोत्सव, होली-दीवाली पर घर- आंगन का हिस्सा है जो प्राचीन वैदिक संस्कृति के प्रतीक हैं। मांडणों में कलश, पगल्या, स्वास्तिक, फूल, चौक, दीया, विनायक, खेड़ों चंग आदि प्रमुख हैं। मांडणे प्राय: ज्यामितीय आकार के होते हैं। परन्तु आजकल गोलाकार भी बनाए जाते हैं।

राजस्थान में अभी भी गांव के लोग बृहत रूप से मांडणा बनाते हैं। दीपावली के दौरान मांडणा बनाने के लिए गांवों में आंगन को गेरू और गोबर से लीपा जाता है। इन्हें बनाने के लिए गेरू भिगोकर उसमें गोंद मिलाया जाता है। फिर ब्रश से धरातल पर गोल या चौकोर डिजाइन में गेरू से लीपते हैं। सूख जाने पर सफेद रंग, खडिया या चूने से ब्रश की सहायता से या सींक पर रूई की फुरेरी बनाकर डिजाइन बनाए जाते हैं।

राजस्थान में दीपमाला के इस उत्सप में मांडणे चार चांद लगा देते है। उत्सवों में चित्रांकन की यह अनूठी परम्परा विविधता लिए हुए है। अलग-अलग अंचलों में वहां के रीति-रिवाज के अनुसार मांडणे बनाए जाते हैं।

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