यह तुर्की के काहता से 40 किमी दूर आदियामन के पास स्थित शांत ज्वालामुखी पर्वत है। इस पर ईसापूर्व में बनी मूर्तियां मिली हैं जिसके सिर खंडित हैं। ये मूर्तियाँ कब बनाई गई थीं, किसने बनाई थीं और किसने इन्हें तोड़ा है। यह अभीतक ज्ञात नहीं हो सका है। माना जाता है कि तुर्की के दक्षिण-पूर्व में नेमरूद पहाड़ पर ये मूर्तियां ईसापूर्व पहली सदी में बनाई गई हैं। हो सकता है विशाल आकार की मूर्तियों वाला ये किसी का मकबरा रहा हो। राजा एंटिचुस प्रथम ने यहां बहुत सी 26 से 30 फीट ऊंची विशाल आकार मूर्तियां बनवाई थीं। अपनी मूर्ति के अलावा उन्होंने दो शेर, दो ईगल, बहुत सी ग्रीक शख्सियतों के अलावा हरक्यूलिस, वहाग, जिअस-अरामज्द या फिर ऑरोमस्दस जैसे अर्मेनिया के देवताओं की भी मूर्तियां बनवाई थीं। एक पत्थर पर 7 जुलाई 62 ईसापूर्व का ग्रहों का अरेंजमेंट भी बनाया गया है। हो सकता है इस दिन यहां निर्माण शुरू किया गया हो। किसी जमाने में ये मूर्तियां पहाड़ पर लाइन से सजी होंगी। फिर भी बाद में इनके सिर अलग कर दिए गए। ऐसा कब, किसने और क्यों किया था, ये बात साफ नहीं हो सकी है। आज भी मूर्तियां इसी हाल में बिखरी हैं। इन मूर्तियों के चेहरे ग्रीक फीचर्स वाले हैं, वहीं कपड़े और बालों का स्वरूप इरानी हैं। 1881 में एक जर्मन इजीनियर चाल्र्स सेस्टर ने इसे खोजा था। ये जगह उनके ट्रांसपोर्ट रूट में पड़ती थी। इसके बाद एंटिचुस का मकबरा तलाशने के लिए वहां काफी खुदाई की गई लेकिन कुछ हासिल नहीं हुआ। फिर भी समझा जाता है कि यहां पर उन्हें दफन किया गया होगा। माउंट नेमरूद के पुराने इतिहास के अनुसार 189 ईसापूर्व में रोमन्स ने मैगनेसिया के युद्ध में सेल्यूसिड साम्राज्य को हराया था। इसके बाद उन्होंने टॉरस पहाड़ और यूफ्रेट्स के बीच स्थानीय लोगों के हाथ में प्रशासन सौंप दिया था। इसी के तहत एंटिचुस को वहां की हुकूमत मिली होगी। काफी रिसर्च के बाद भी यहां का इतिहास राज बना हुआ है।

माउंट नेमरूद की एक टूटी हुइ मूर्ती।
माउंट नेमरूद के दायीं ओर से तस्वीर ली गयी है। इस तस्वीर को सूर्यास्त से पहले खींचा गया है।
माउंट नेमरूद क पूर्व छत।

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