मादक पदार्थों के सेवन से उत्पन्न स्थिति को दव्य मादकता (Substance intoxication) कहते हैं।

व्यसन शब्द अंग्रेजी के ‘एडिक्ट‘ शब्द का रूपान्तरण है जिससे शारीरिक निर्भरता की स्थिति प्रकट होती है। व्यसन का अभिप्राय शरीर संचालन के लिए मादक पदार्थ का नियमित प्रयोग करना है अन्यथा शरीर के संचालन में बाधा उत्पन्न होती है। व्यसन न केवल एक विचलित व्यवहार है अपितु एक गम्भीर सामाजिक समस्या भी है। तनावों, विशदों, चिन्ताओं एवं कुण्ठाओं से छुटकारा पाने के लिए व्यक्ति कई बार असामाजिक मार्ग अपनाकर नशों की और बढ़ने लगता है, जो कि उसे मात्र कुछ समय के लिए उसे आराम देते हैं। किसी प्रकार का व्यसन (नशा) न केवल व्यक्ति की कार्यक्षमता को कम करता है अपितु यह समाज और राष्ट्र दोनों के लिए हानिकारक है। नशीले पदार्थो की प्राप्ति हेतु व्यक्ति, घर, मित्र और पड़ोस तकमें चोरी एवं अपराधी क्रियाओं को अंजाम देने लगता है। स्वास्थ्य की दृष्टि से देखा जाए तो व्यसन विभिन्न बिमारियों को आमंत्रण देता है। राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर यह तस्करी, आतंकवाद एवं देशद्रोही गतिविधियों को बढ़ावा देता है। सामाजिक दृष्टि से जुआ, वेश्यावृति, आतंकवाद, डकैती, मारपीट, दंगे अनुशासनहीनता जैसी सामाजिक समस्याएँ व्यसन से ही संबंधित हैं। व्यसनी व्यक्ति दीर्घकालीन नशों की स्थिति में उन्मत्त रहता है तथा नशीले पदार्थ पर व्यक्ति मानसिक एवं शारीरिक तौर पर पूर्णतया आश्रित हो जाता है, जिसके हानिकारक प्रभाव केवल व्यक्ति ही नहीं अपितु उसके परिवार और समाज पर भी पड़ते हैं।

मुख्य रूप से ६ प्रकार की मादक द्रव्य उपयोग किये जाते हैं-

  • 1. शराब
  • 2. अवसादक/शान्तिकर पदार्थ (sedative and hypnotic)
  • 3. उत्तेजक पदार्थ (stimulant )
  • 4. नार्कोटिक/स्वापक (narcotic)
  • 5. भ्रमोत्पादक
  • 6. निकोटीन

शराब का सेवन यदि कम या सीमित मात्रा में किया जाए तो इसे कई देशों में सामाजिक रूप से ठीक माना जाता है सामान्यतया इसका सेवन सुख, एक समाजिक क्रिया, प्रेरणा या उत्तेजना के रूप में किया जाता है। शराब के सेवन के पीछे कई सामाजिक, सांस्कृतिक कारक भी उत्तरदायी होते हैं जैसे उच्च वर्गों में सामाजिक रूप से इसके सेवन को मान्यता दी जाती है। बेरोजगारी, बचपन में माता पिता की मृत्यु, पति-पत्नी का कामकाजी होना, मित्रों का दबाव, फैशन, विज्ञापन आदि ऐसे कारक हैं जिससे व्यक्ति में शराब या मदिरापान की आदत विकसित होती है। व्यसन वर्तमान समाज की एक गंभीर समस्या है इसकी गम्भीरता को दो आधारों पर देखा जा सकता है :

  • (१) केवल भारत में ही नहीं विश्व स्तर पर इसके निवारण हेतु कार्यक्रम बनाने के प्रयास किए जा रहे है,
  • (२) वर्तमान समय में कम आयु युवा पीढ़ी तथा विद्यालय और महाविद्यालय में भी इसके सेवन का प्रचलन निरन्तर बढ़ता जा रहा है।

इसके सेवन का एक बड़ा कारण चिन्ताओं और तनावों से क्षणिक मुक्ति प्राप्त करना है। धीरे-धीरे यह उसे व्यसनी बना देती है। यह एक शान्तिकर पदार्थ है यद्यपि यह नसों को शान्त करते हुए तनाव को कम करती है। परन्तु साथ ही इसके अधिक सेवन से निर्णय क्षमता मन्द होने लगती है।

शामक/अवसादक/शान्तिकर पदार्थ

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व्यसन के इस प्रकार में शान्तिदायक या पीड़ाशामक मादक पदार्थ आते हैं। शामक या अवसादक पदार्थ केन्द्रीय नाड़ीमण्डल को अशक्त करते हुए नींद उत्पन्न करते हैं। अतः इसका प्रभाव शान्तिकारक होता है। इस श्रेणी में ट्रैक्विलाइजर (शांति प्रदान करने वाले द्रव्य) और बार्बिट्युरेट आते हैं। सामान्यतया इन द्रव्यों का प्रयोग शल्य चिकित्सा के पूर्व और बाद में रोगियों के आराम और शिथिलीकरण के लिए किया जाता है। इसी प्रकार से चिकित्सीय दृष्टि से उच्च रक्तचाप, अनिद्रा और मिरगी के रोगी को उपचार देने के लिए भी शमक द्रव्यों का उपयोग किया जाता है। कम मात्रा में लेने पर व्यक्ति को शिथिलता का अनुभव कराते हुए ये द्रव्य सांस की गति व दिल की धड़कन को धीमा कर व्यक्ति को आराम पहुँचाते हैं, लेकिन अधिक मात्रा में इन पदार्थों का प्रयोग व्यक्ति को चिड़चिड़ा, आलसी और निश्क्रीय बना देता है। शामक द्रव्यों का निर्धारित मात्रा से अधिक खुराक के रूप में प्रयोग व्यसनी के सोचने, काम करने, ध्यान देने की शक्ति को कम करते हुए भयावह स्थिति को उत्पन्न करता है।

उत्तेजक पदार्थ

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उत्तेजक द्रव्य अधिकांशतः मुख से लिए जाते हैं लेकिन कुछ पदार्थ जैसे मेथेड्रीन इंजेक्शान द्वारा भी लिए जाते हैं। इन पदार्थो का व्यसन करने वाले व्यक्तियों में शारीरिक निर्भरता की तुलना में मानसिक निर्भरता अधिक होती है अतः अचानक बन्द कर दिए जाने पर ये मानसिक अवसाद उत्पन्न करते है और व्यक्ति की स्थिति भयावह हो जाती है। उत्तेजक मादक पदार्थों का सेवन निद्रा और उदासी को दूर करते हुए व्यक्ति का चुस्त, सक्रिय और फुर्तीला बनाता है। डॅाक्टर द्वारा ऐम्फेटामाइन की मध्यम डोज थकान को नियंत्रित करती है इनमें कैफीन और कोकीन भी सम्मिलित है परन्तु ऐम्फेटामाइन का दीर्घकालिक भारी उपयोग बौद्धिक, भावनात्मक, सामाजिक और आर्थिक विकारों को उत्पन्न करता है। अपराध जगत में ऐम्फेटाइन ‘अपर्स' या 'पेपपिल्स ड्रग' के नाम से मशाहूर है। इन उत्तेजक पदार्थों को अचानक बन्द कर देने से मानसिक बिमारियां व आत्महत्या जन्य अवसाद उत्पन्न होते हैं।

नार्कोटिक/स्वापक/तन्द्राकर पदार्थ

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अफीम के विभिन्न रूप में उपलब्ध चरस, गांजा, भांग, हैरोइन (स्मैक, ब्राउन शुगर मारफीन, पैथेडीन) आदि व्यसन की नार्कोटिक श्रेणी में सम्मिलित हैं और प्रायः पौधों से प्राप्त होते हैं। व्यक्ति इन पदार्थों का व्यसनी चिन्ता, उदासी, और विवाद को दूर करने के प्रयास के कारण हो जाता हैं। तन्द्राकर पदार्थ शामक पदार्थों के समान ही नाड़ीमण्डल पर अवसादक प्रभाव उत्पन्न कर व्यसनी व्यक्ति में आनन्द, सामर्थ्य, हिम्मत, जैसी भावनाओं को उत्पन्न करते हैं। हैरोइन मार्फीन, पेथेडीन और कोकीन या तो कश के रूप में लिए जाते है या फिर तरल पदार्थ के रूप में इंजेक्शन द्वारा अफीम, गांजा, चरस आदि को व्यक्ति या तो नाक से खींचता है या चिलम का सहारा लेता है लेकिन इन सभी पदार्थों का अत्यधिक प्रयोग व्यक्ति की भूख कम करता है। नार्कोटिक पदार्थों का सेवन बन्द कर देने से अन्तिम डोज लेने के 8 से 12 घण्टे बाद कम्पन्न, पसीना आना, दस्त मिचलाहट पेट व टांगों में ऐंठन, मानसिक वेदना जैसे लक्षण प्रकट होने लगते हैं। इन सब अवस्थाओं से गुजरने पर व्यक्ति महसूस करता है कि जैसे वह जीते जी नरक भोगकर आया है।

गांजे की अधिक मात्रा लती व्यक्ति को आनन्द की अपेक्षा आतंक महसूस कराता है तथा इसका सेवन बन्द कर देने पर व्यक्ति अचानक हिंसक हो उठता है या पागलों के समान सड़को पर दौड़ने लगता है। इस श्रेणी के सभी उत्पाद कोशिका की सारी कार्यवाही को अस्त-व्यस्त कर देते हैं। मस्तिष्क की कोशिकाओं के साथ ऐसा होने पर असाधारण संवेदनायें उभरने लगती हैं।

विभ्रामात्मक पदार्थ / भ्रामोत्पादक / भ्रान्तिजनक पदार्थ

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इन पदार्थों में सर्वाधिक व्यसन एल.एस.डी. (LSD) का किया जाता है। यह एक कृत्रिम रासायनिक पदार्थ है। यह नशीला पदार्थ इतना शक्तिशाली है कि इसकी एक तोले से ही तीन लाख डोज बनाये जाते हैं। नमक के दाने से भी कम इसकी मात्रा मनुष्य में कई मनोरोगमय प्रतिक्रियाएँ उत्पन्न करता है। इस पदार्थ के सेवन के 8-10 घण्टे तक नींद आना लगभग असम्भव है। एल.एस.डी. लेने के पश्चात गांजे के समान ही फ्लैशबैक की घटना प्रारम्भ हो जाती है, व्यक्ति हिंसक होकर अपराध भी कर बैठता है तथा यह पूर्ण भ्रम की स्थिति उत्पन्न करते हैं। चिकित्सकों के द्वारा इन पदार्थों के सेवन की सलाह कभी नहीं दी जाती, ऐसे पदार्थों का सेवन बन्द कर देने पर अतिभय, अवसाद, स्थायी मानसिक असंयम पैदा हो जाता है।

ताम्रकूटी / निकोटीन पदार्थ

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ताम्रकूटी पदार्थों में सिगरेट, बीड़ी, सिगार, चुरूट, नास (Snuff) तम्बाकू सम्मिलित हैं। तम्बाकू की खेती की जाती है जिसके पत्ते चौड़े और कड़वे होते हैं। ताम्रकूटी पदार्थों का कोई चिकित्कीय उपयोग नहीं होता परन्तु शारीरिक निर्भरता का जोखिम रहता हैं। यह व्यसनी में शिथिलन पैदा कर केन्द्रीय नाड़ीमण्डल को उत्तेजित करती है तथा उबाऊपन को दूर करती है। तम्बाकू का अधिक सेवन दिल की बीमारी, फैंफड़े के कैंसर, श्वास नली जैसे रोग उत्पन्न करता है। इसका सेवन तीन प्रकार से किया जाता है :-

  • 1. धूम्रपान द्वारा,
  • 2. नस्य या सूंघने से,
  • 3. पान में रखकर या चूने के साथ मलकर।

परन्तु लोग इसे नशा नहीं मानते क्योंकि इस पदार्थ को छोड़ने के कोई अपनयन लक्षण नहीं होने व अपराध का कारण नहीं बनने के कारण कानून भी इसे नशो की श्रेणी में नहीं रखता। विभिन्न शहरों में द्रव्य व्यसन की दर 17 से 25 प्रतिशत के बीच मिलती है। जिनमें तम्बाकू एवं शराब के लगभग 65 प्रतिशात से अधिक व्यसनी मिल जाते हैं।

रोकथाम के उपाय

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नशा विश्वभर की एक गम्भीर समस्या है अतः इस समस्या के लिए संयुक्त आक्रमण की आवश्यकता है जिसमें व्यसनियों का उपचार, सामाजिक उपाय, शिक्षा आदि सम्मिलित है। आधुनिक समाज में जनसंख्या की संरचना में होने वाले परिवर्तन एवं सामाजिक विकास से समाज के विभिन्न क्षेत्रों में प्रतियोगी प्रक्रियाऐं काफी तीव्र हो गई हैं जिसका स्पष्ट प्रभाव विभिन्न सामाजिक संस्थाओं पर दिखाई देता है। लोगों का अलगाव, तनाव और अवसाद से मानसिक संतुलन गड़बड़ाने लगा है, यही कारण है कि मादक पदार्थो के सेवन का प्रतिशत गांव, नगर, विद्यालय एवं महाविद्यालय और महिलाओं में बढ़ता जा रहा है। अतः सामाजिक विद्यटन को रोकने के लिए व्यसन की इस अनियंत्रित स्थिति पर नियंत्रण आवशयक है।

समाजशास्त्रीय दृष्टि से व्यसन की रोकथाम के लिए किये जाने वाले उपायों को मोटे तौर पर चार श्रेणियों में विभाजन किया जा सकता है - (1) शैक्षणिक उपाय (2) प्रवर्तक उपाय (मनाने वाले) (3) सुविधाजनक उपाय और (4) दण्डात्मक उपाय।

इन उपायों में से अधिकांशतः शौक्षणिक उपायों में नशे के शारीर और मन पर पड़ने वाले प्रभाव के सम्बन्ध में ज्ञान प्रदान कर जागरूकता लाने का प्रयास किया जाता है ताकि नशीले पदार्थ के सेवन के प्रति भय उत्पन्न हो जाए। जबकि दण्डात्मक उपाय में नशा करने वालों का अलगाव या विसंबंधन किया जाता है। व्यसन की रोकथाम के लिए किए जाने वाले प्रमुख उपायों में निम्न बातों को ध्यान रखा जाना चाहिये।

शौक्षणिक उपाय

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शौक्षणिक उपायों को अपनाते समय यह व्यक्ति को जो तथ्य, संकेत या निशान दिये जाते है वे भारतीय संस्कृति के सन्दर्भ में होने चाहिए। भारत में साक्षरता की दर कम होने के कारण लिखित जानकारी की अपेक्षा नुक्कड़ नाटक, पोस्टर, चलचित्रों एवं टीवी आदि के माध्यम से इससे होने वाले बुरे प्रभाव को प्रदर्शित किया जाना चाहिए, साथ ही नशा करने वाले व्यक्तियों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति, लिंग, धार्मिक विश्वास, उपसंस्कृति एवं पारिवारिक समस्याओं को ध्यान में रखते हुए इन उपायों को अपनाया जाना चाहिये। शिक्षा देने के लक्षित समूहों में कॉलेज, विश्वविद्यालयों के युवा छात्रों, छात्रावासों में रहने वाले छात्रों, कच्ची बस्तियों में रहने वाले लोगों, औद्यौगिक श्रमिकों, ट्रक चालकों एवं रिक्शा चालकों को अधिक सम्मिलित किया जाना चाहिए।

वैधानिक उपाय

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मादक पदार्थों के सेवन की रोकथम का एक महत्वपूर्ण उपाय वैधानिकप्रयास है। ब्रिटिशकाल में 1893 सर्वप्रथम रायल आयोग का गठन कर मादक पदार्थो के सेवन की समस्या की रोकथाम का कदम उठाया गया। सरकार द्वारा 1985 में मादक पदार्थो की तस्करी की रोकथम के लिए ‘द नारकोटिक, ड्रग्स व साइकोट्रापिक सब्सटसिज एक्ट’ बनाकर 14 नवम्बर 1985 से लागू किया गया। जिसके उलंघन पर कठोर कारावास एवं जुर्माना दोनों को निर्धारित किया गया है। इस कानून की सफलता के लिए नियमों का कठोरता से पालन करने के साथ मादक पदार्थों का व्यापार करने वाले व्यक्तियों तस्करों एवं षड़यंकारियों को पकड़नेमें जनता का सहयोग भी लिया जा सकता है। इस अंतर्राष्ट्रीय समस्या को बढ़ने से रोकने के लिए स्थानीय निकायों को मजबूत बनाना होगा एवं इसके क्रय विक्रय को पूर्ण रूप से रोकना अनिवार्य करना होगा।

चिकित्सकीय उपाय

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व्यसन को रोकने में चिकित्सकों की अहम् भूमिका होती है। बाजार में मिलने वाली नींद की दवाइयों, अवसाद विरोधी दवाइयों, दर्दनाक दवाइयों और खांसी की दवाइयों में पाये जाने वाले पदार्थ कुछ समय तक नियमित सेवन से व्यक्ति को लती बना देते है। अतः द्रव्यों के औशध निर्देश देने सम्बन्धी अभिवृतियाँ सकारात्मक होनी चाहिये, अर्थात् चिकित्सक को यह स्पष्ट रूप बताना चाहिये कि रोगी द्रव्यों के अतिरिक्त प्रभावों की अवहेलना नहीं करे एवं बिना चिकित्सकीय परामर्शा के दवा लेने में सतर्कता बरते।

सामाजिक उपाय

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शिक्षा और चिकित्सा के समान व्यसन की रोकथाम में विभिन्न सामाजिक समूहों के सहयोग की अवहेलना नहीं की जा सकती। सामाजिक उपायों में परिवार नातेदार, मित्र और स्वैच्छिक संगठन सम्मिलित हैं। इस अध्याय में आपने जाना कि परिवार और मित्र समूह व्यक्ति के जीवन को इस दिशा में प्रभावित करने वाले प्राथमिक तत्व हैं। माता-पिता की उपेक्षा, अधिक विरोध व वैवाहिक असामंजस्य व्यक्ति को व्यसन की ओर ले जानेवाले प्रमुख कारण हैं। अतः माता-पिता को चाहिये कि वे पारिवारिक पर्यावर ण को अधिक सामंजस्यपूर्ण बनाए रखने का प्रयास करें जिससे कम से कम बच्चे घर के बाहर रहकर मादक पदार्थों के सेवन के लिए प्रेरित नहीं होंगे। माता-पिता को बच्चे के असामाजिक व्यवहार तथा विपथगामी व्यवहार जैसे अध्ययन व अभिरूचियों आदि क्रियाओं में कम रूचि, गैर जिम्मेदार व्यवहार, चिड़चिड़ापन, आवेगी व्यवहार, व्यग्रता, घबराहट की मुखाकृति आदि को देखकर कारणों का पता लगाना चाहिये। यदि माता-पिता सामाजिक और नैतिक प्रतिमानों की पालना करें तो बच्चा भी अवश्य करेगा। अतः सामाजिक सुरक्षा, परिवार के निर्णयों में शामिलकर सामाजिक पर्यावरण को स्नेहपूर्ण बनाकर भी व्यसन की स्थिति को रोका जा सकता है।

मादक व्यसनी का पता लगाना ही अपने आप में एक कठिन कार्य नहीं है अपितु, व्यसनीयों का उपचार करना भी अत्यधिक कठिन है। व्यक्तिगत रूप से यह कार्य और भी ज्यादा मुश्किल है अर्थात ऐसे लोगों के उपचार में मादक द्रव्यों के सेवन पर पूर्ण नियंत्रण की आवश्यकता होती है, जो घर की अपेक्षा चिकित्सालय में अधिक सम्भव है।

व्यसन एक मानसिक रोग है जिसका उपचार मनोचिकित्सकों एवं औषधियों से संभव है। इन व्यक्तियों का उपचार विभिन्न चिकित्सा केन्द्रों, मेडिकल कॉलेजों एवं नशा मुक्ति केन्द्रों पर निःशुल्क भी किया जाता है। व्यसन के उपचार के दौरान इन्हें लम्बे समय तक परामर्श की आवश्यकता होती है।

इन्हें भी देखें

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