मानव समझ के संबंध में अन्वीक्षा
मानव समझ विषयक अन्वेषण /अन्वीक्षा (अंग्रेज़ी- An Enquiry Concerning Human Understanding ) अनुभववादी दार्शनिक डेविड ह्यूम की एक पुस्तक है, जो 1748 में अंग्रेजी में प्रकाशित हुई थी [1] यह पहले के प्रयास, ह्यूम के मानव स्वभाव पर एक ग्रंथ-प्रबंध (A treatise of Human Nature) का संशोधन था, जिसे 1739 – 40 में लंदन में अनामक रूप से प्रकाशित किया गया था। ह्यूम अपने ग्रंथ-प्रबंध के प्रतिग्रह से निराश थे, जो जैसा कि उन्होंने कहा था "प्रेस से जन्म- मृतप्राय हो गया," [2] और इसलिए उन्होंने एक छोटा और अधिक खण्डन- मण्डनात्मक कार्य लिखकर अपने अधिक विकसित विचारों को जनता तक फैलाने की फिर से कोशिश की।
उनके परिश्रम का अंतिम परिणाम यह अन्वीक्षा थी। इस अन्वीक्षा में इसके सबसे महत्वपूर्ण पहलुओं को स्पष्ट करने और उन पर जोर देने के पक्ष में, ग्रंथ-प्रबंध से अधिकांश सामग्री को हटा दिया गया। उदाहरण के लिए, वैयक्तिक तादात्म्य (personal identity) पर ह्यूम के विचार प्रकट नही होते हैं। हालाँकि, ज्ञान के सिद्धांत में आदत की भूमिका के लिए ह्यूम के तर्क जैसे अधिक महत्वपूर्ण प्रतिज्ञप्तियों को बरकरार रखा गया है।
यह पुस्तक आने वाले वर्षों में और आज भी, अत्यधिक प्रभावशाली साबित हुई है। इमैनुएल कांट इसे उस पुस्तक के रूप में इंगित करते हैं जिसने उन्हें उनकी स्व-वर्णित "हठधर्मी (मतांध) उनींद" से जगाया। [3] आधुनिक दार्शनिक साहित्य में इस अन्वीक्षा/अन्वेषण को व्यापक रूप से एक श्रेण्य माना जाता है।
- ↑ See Hume, David (1748). Philosophical Essays Concerning Human Understanding (1 संस्करण). London: A. Millar. अभिगमन तिथि 28 June 2014. via Google Books
- ↑ Hume, David (1776), My Own Life, Appendix A of Ernest Campbell Mossner, The Life of David Hume, University of Texas Press, 1954.
- ↑ I. Kant "Prolegomena to Any Future Metaphysics"