मानस का हंस
मानस का हंस अमृत लाल नागर द्वारा रचित प्रसिद्ध उपन्यास है। 1972 में प्रकाशित यह उपन्यास रामचरितमानस के रचनाकार गोस्वामी तुलसीदास के जीवन पर लिखा गया है। इस उपन्यास में तुलसीदास का जो स्वरूप चित्रित किया गया है, वह एक सहज मानव का रूप है। यही कारण है कि ‘मानस का हंस’ हिन्दी उपन्यासों में ‘क्लासिक’ का सम्मान पा चुका है और हिन्दी साहित्य की अमूल्य निधि माना जाता है। नागरजी ने इसे गहरे अध्ययन और मंथन के पश्चात अपने विशिष्ट लखनवी शैली में लिखा है। बृहद् होने पर भी यह उपन्यास अपनी रोचकता में अप्रतिम है। विस्तार
लेखक | अमृत लाल नागर |
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भाषा | हिन्दी |
विषय | तुलसीदास |
शैली | ऐतिहासिक उपन्यास |
प्रकाशन स्थान | भारत |
कथावस्तु
संपादित करेंगोस्वामी तुलसीदास का जन्म सतरहवीं शताब्दी में हुआ, लेकिन दुर्भाग्यवश उनके जीवन के बारे में कोई अधिकृत जानकारी नहीं मिलती है। इसलिए उपन्यासकार अमृतलाल नागर को तुलसीदास जी की जीवनगाथा लिखने के लिए जनश्रुतियों और लोकगाथाओं का सहारा लेना पड़ा।
विशेषताएँ
संपादित करेंइस उपन्यास की विशेषताओं को उद्घाटित करते हुए हिन्दी उपन्यास का इतिहास में गोपाल राय लिखते हैं कि- "उपन्यास में तुलसी के जन्म से लेकर उनकी मृत्यु तक का जो जीवनचरित प्रस्तुत हुआ है, वह इतना सजीव, तर्कसंगत और सुसम्बद्ध है कि कदाचित् ऐतिहासिक तथ्य न होते हुए भी वह पूर्णतः यथार्थ बन गया है।"[1]
पात्र
संपादित करें- मैना कहारिन[2]
- बतासो
- रतना
- श्यामो की बुआ
- बाबा -तुलसीदास
- राजा -रजिया नाम से पुकारे जाने वाला पात्र, बाबा से आयु में एक दिन छोटे
- संत बेनीमाधव (सूकरखेत निवासी शिष्य)- पचास-पचपन वर्षीय
- रामू द्विवेदी (काशी से आए हुए शिष्य) -बाबा के शिष्य, इकतीस वर्षीय
- बकरीदी कक्का- बाबा से आयु में चार दिन बड़े
- पण्डित गणपति उपाध्याय -बाबा के पुराने शिष्य, अड़सठ-उनहत्तर वर्षीय
- बूढ़ा रमज़ानी - बकरीदी दर्ज़ी का छोटा बेटा, इकसठ-बासठ वर्षीय
- शिवदीन दुबे, नन्हकू, मनकू- गाँव के लोग
- हुलसिया-पंडाइन की मुँहबोली ननद
- पंडाइन
- पण्डित आत्माराम
- भैरोसिंह
संदर्भ
संपादित करें- ↑ गोपाल, राय (2014). हिन्दी उपन्यास का इतिहास. नई दिल्ली: राजकमल प्रकाशन. पृ॰ 227. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-267-1728-6.
- ↑ अमृतलाल, नागर (२०१४). मानस का हंस. दिल्ली: राजपाल एण्ड सन्ज़. पृ॰ ११. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-7028-249-5.