मार्कण्डेय
मार्कण्डेय (2 मई 1930 - 18 मार्च 2010) हिन्दी के जाने-माने कहानीकार थे। वे 'नयी कहानी' के दौर के प्रमुख हस्ताक्षर थे। वे 'नयी कहानी' के सिद्धान्तकारों में से एक थे।अपने लेखन में वे सदैव आधुनिक और प्रगतिशील मूल्यों के हामीदार रहे। उनका जन्म उत्तर प्रदेश में जौनपुर जिले के बराईं गाँव में हुआ था।
इनकी कहानियाँ आज के गाँव के पृष्ठभूमि तथा समस्यायों के विश्लेषण की कहानियाँ हैं। इनकी भाषा में उत्तर प्रदेश के गाँवों की बोलियों की अधिकता होती है, जिससे कहानी में यथार्थ पृष्ठभूमि का निरुपण होता है। अब तक इनके कई कहानी-संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। इनके 'अग्निबीज','सेमल के फूल' उपन्यास तथा 'पानफूल','हंसा जाई अकेला','महुए का पेड़','भूदान','माही','सहज और शुभ','बीच के लोग','हलयोग' कहानी-संग्रह प्रसिद्ध हैं।इसके अलावा 'पत्थर और परछाइयां'(एकांकी-संग्रह),'यह पृथ्वी तुम्हें देता हूँ','सपने तुम्हारे थे'(कविता-संग्रह),'हिन्दी कहानी:यथार्थवादी नजरिया','कहानी की बात','प्रगतिशील साहित्य की जिम्मेदारी'(आलोचना),'चक्रधर की साहित्यधारा'(साहित्य-संवाद)प्रकाशित।अनियतकालीन पत्रिका 'कथा' की 1969ई.में स्थापना।उनके सम्पादन में निकले 'कथा' के 14 अंक हिन्दी भाषा की साहित्यिक पत्रकारिता में मील के पत्थर हैं।साथ ही मित्र प्रकाशन की पत्रिका 'माया' के दो विशेषांक 1965ई. में सम्पादित किये। उन्होंने 'नया साहित्य प्रकाशन' की स्थापना 1956ई.में की और महत्वपूर्ण पुस्तकों का प्रकाशन किया।
कथाकार मार्कण्डेय के करीबी और उनपर शोध करने वाले बालभद्र ने कहा कि मार्कण्डेय सहज भाषा के धनी थे। कथाकार और संपादक होने के साथ-साथ वह समीक्षक भी थे। 15 वर्षो तक उन्होंने कहानियों और साहित्य की समीक्षा की और रचनाकारों को इस बारे में पता भी नहीं चल सका। दरअसल, हैदराबाद से प्रकाशित होने वाली पत्रिका 'कल्पना' में उनकी कहानियाँ वृहद पैमाने पर छपती रहीं। उसी पत्रिका में मार्कण्डेय जी 15 वर्षो तक 'चक्रधर' नाम से स्तंभ लिखते रहे। उन्होंने पत्रिका के संपादक को मना कर दिया था, कि वह चक्रधर के बारे में किसी को न बताएं।
बाहरी कड़ियाँ
संपादित करें- जिंदादिल कथाकार मार्कण्डेय नहीं रहे (प्रवक्ता)
- कथाकार मार्कण्डेय नहीं रहे[मृत कड़ियाँ] (जागरण)