मालवा चित्रकला शैली का विकास मध्यप्रदेश के मालवा क्षेत्र में हुआ इसलिए इसे मालवा शैली के नाम से जाना जाता है। यह एक प्रकार से राजपूत शैली का ही भाग है क्योंकि इसमें भी चित्रकला की मुख्य विषयवस्तु राजा, युद्ध आदि हैं। मालवा शैली के प्रमुख उदाहरण हैं- रसिक प्रिया की शृंखला (1634), ‘अमरूशतक’ (1652) तथा माधोदास द्वारा चित्रित की गई रागमाला की शृंखला (1680) आदि।

मालवा चित्रकला 17वीं सदी में पुस्तक चित्रण की राजस्थानी शैली है जिसका केंद्र मुख्यतः मालवा और बुंदेलखंड थे। भौगोलिक विस्तार की दृष्टि से इसे कई बार 'मध्य भारतीय चित्रकला' भी कहते हैं।

यह मूलतः एक पारम्परिक शैली थी और इसमें 1636 की शृंखला रसिकप्रिया और अमरुशतक, जैसे प्रारंभिक उदाहरणों के बाद अधिक विकसित होते नहीं देखा गया। १८वीं सदी में इस चित्रकला शैली के बारे में बहुत कम जानकारी मिलती है।

विशेषताएँ

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  • इसका उद्गम मांडू से माना जाता है।
  • इस शैली में गहरे रंगों का प्रयोग हुआ है तथा नीले रंग का प्रयोग बढ़ गया है।
  • यहाँ लहँगे पर झीनी साड़ी का अंकन है, बिल्कुल ओढ़नी की तरह।
  • इस शैली के सबसे आकर्षक गुण हैं- इनका आदिम लुभावनापना और सहज बालसुलभ दृष्टि।
  • मालवा चित्रकला में बिल्कुल समतल कृतियों, काली और कत्थई भूरी पृष्ठभूमि, ठोस रंग खंडों पर उभरी आकृतियों और शोख़ रंगों में चित्रित वास्तुकला के प्रति विशेष आग्रह दिखाई देता है।