मिख़ईल इयोसिफ़ोविच वेलेर

मिखाइल वेल्लेर का जन्म १९४८ में एक फौजी अफसर के परिवार में हुआ। उनका बचपन साइबेरिया और सुदूर-पर्व की फौजी छावनियों में गुज़रा। उन्होंने १९७२ में लेनिनग्राद राजकीय विश्विद्यालय के भाषा-संकाय से एम.ए. किया। और उसके बाद, जैसा कि खुद उनका कहना है, उन्होंने पूरे देश में यायावरी की। ताइगा में वन काटे। उत्तरी ध्रुव के उस पार के क्षेत्र में टूंड्रा के इलाके में शिकारी रहे। अल्ताय पर्वतमाला के क्षेत्र में चरवाहा रहे। फिर पत्रकार रहे, अध्यापक रहे... और इस तरह मिखाइल वेल्लेर ने कुल मिलाकर करीब ३० पेशे बदले।

मिख़ाइल इओसिफाविच वेल्लेर


पहली बार मिखाइल वेल्लेर की कविताएँ १९६५ में बेलारूस में एक प्रादेशिक समाचार पत्र में प्रकाशित हुईं। उनका पहला कथा-संग्रह 'खचू बीत्च द्वोरनिकम' (मैं सफ़ाई कर्मचारी बनना चाहता हूँ) १९८३ में एस्तोनिया में प्रकाशित हुआ, जिसने अपनी भाषा की सहजता और कहानियों के विषयों की आकस्मिकता के कारण आलोचकों और पाठकों का ध्यान आकर्षित किया। इसके बाद १९८८ में उनका कथा-संग्रह 'रजबिवाचेल सेर्देत्स' (दिल तोड़ने वाला छैला) औक १९८९ में 'तेख़नालोगिया रस्सकाज़ा' (कहानी की तक्नौलौजी) नामक संग्रह प्रकाशित हुए। फिर १९९१ में प्रकाशित 'मेजर ज़्व्यागिन का रोमांच' उस वर्ष की बेस्टसेलर किताब रही।


इसके बाद १९९३ में छपी 'नेव्स्की मार्ग की दंतकथाएँ' नामक मिख़ाइल वेल्लेर की किताब को आलोचकों ने सबसे मनोरंजक पुस्तक माना। उपन्यासिका 'नोझिक सेर्योझी दवलातवा' (सेर्योझा दवलातफ का चाकू) पर साहित्यिक दुनिया में कलह और हंगामा हुआ। 'पीज़ा का दौड़ाक' राष्ट्रपति पूतिन के सत्ता में आने से पहले की देश की स्थिति और लोकतंत्र की पराजय के बारे में है। 'आखिरी महान मौका' पिछले वर्षों की राजनीति के बारे में उनकी हिट किताब रही है। मिखाइल वेल्लेर रूस की साहित्यिक पत्रिकाओं में नियमित रूप से छपते हैं।