मिनिमली इनवेसिव स्ट्रैबिस्मस सर्जरी

मिनिमली इनवेसिव स्ट्रैबिस्मस सर्जरी (MISS)  भेंगेपन की शल्यचिकित्सा की एक तकनीक है जिसमें बीमारी की दशा को ठीक करने के लिए पारंपरिक शल्यचिकित्सा की तुलना में छोटे चीरे लगाये जाते हैं, और इस प्रकार ऊतकों को कम नुकसान पहुँचता है।  मूल रूप से स्विस नेत्र रोग विशेषज्ञ डैनियल मोजोन द्वारा 2007 के आसपास तकनीक की शुरुआत की गई थी,[1] बेल्जियम के नेत्र रोग विशेषज्ञ मार्क गोबिन ने 1994 में एक फ्रांसीसी-भाषा की पाठ्यपुस्तक में इस विचार का वर्णन किया था। [2]

MISS एक ऐसी तकनीक है, जिसे ऋजु-पेशी निकासियों, उच्छेदानों, प्रवलन, पुनारुपचार, प्रतिस्थापन, अलम्बवत मांसपेशीय निकासी, या प्रवलन, और समायोज्य टांकों जैसी सभी प्रमुख प्रकार की भेंगेपन की शल्यचिकित्सा में उपयोग किया जा सकता है, यहाँ तक ​​कि सीमित गतिशीलता की स्थिति में भी। छोटे खुलाव और कम दर्दनाक प्रक्रिया को सामान्य रूप से शल्यक्रिया पश्चात मरीज को तीव्रतर स्वास्थ्यलाभ और कम सूजन व असुविधा से जोड़ कर देखा जाता है। यह माना जाता है कि इस तकनीक को कई रोगियों (मुख्य रूप से वयस्कों) में एक बाहरी-रोगी क्रिया के रूप में किया जा सकता है जो अन्यथा अस्पताल में भर्ती होते।[3] 2017 में प्रकाशित एक अध्ययन बतलाता है कि पारंपरिक स्ट्रैबिस्मस सर्जरी कराने वाले समूह और MISS विधि से शल्यचिकित्सा कराने वाले दो समूहों के बीच दीर्घावधि परिणाम समान रहे, लेकिन MISS के बाद शल्यक्रिया पश्चात  नेत्रश्लेष्मलाशोथ और पलकों में सूजन की शिकायत व जटिलताएं कम पायी गयी।[4] एक अन्य लाभ यह है कि MISS तकनीक से कुछ रोगियों में अग्र भाग इस्केमिया (रक्त/ऑक्सीजन की कमी) का खतरा कम हो सकता है, विशेष रूप से ग्रेव्स नेत्र रोग से पीड़ित रोगियों के मामले में।[5]

सिद्धांत

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MISS में शल्यचिकित्सक द्वारा आवर्धक लेंस के बजाय ऑपरेटिंग माइक्रोस्कोप का उपयोग किया जाना चाहिए। भेंगेपन की पारंपरिक शल्यचिकित्सा में नेत्रश्लेष्मला में बड़ा चीरा लगाया जाता है, वहीँ इस क्रिया में जहाँ मुख्य शल्य क्रिया, आमतौर पर टाँके, करनी होती है वहाँ कई छोटे-छोटे चीरे लगाये जाते हैं। शल्यक्रिया पश्चात् असुविधा को यथासंभव कम करने के लिए खुलवाट/चीरे को कॉर्नियल लिंबस से यथासंभव दूर रखा जाता है। इन दो चीरों के बीच, जिन्हें कीहोल ओपनिंग कहा जाता है, एक "सुरंग मार्ग" होता है जिसका उपयोग शल्यचिकित्सक द्वारा आँखों की मांसपेशियों के उपचार के लिए उपकरण डालने के लिए किया जाता है।[6] ऑपरेशन के अंत में, कीहोल चीरों को घुल जाने वाले टांकों से बंद कर दिया जाता है। इन छोटे चीरों को शल्यक्रिया पश्चात् पलकों द्वारा ढँक दिया जाता है। MISS के चीरे कॉर्नियल जटिलताओं की आवृत्ति और गंभीरता को उल्लेखनीय रूप से कम कर देते हैं, उदाहरण के लिए, ड्राई आई सिंड्रोम और डलेन गठन, साथ ही आँख के लेंस भी जल्दी पहने जा सकते हैं। नेत्रश्लेष्मला की लाली की वृद्धि और पेरिमस्कुलर ऊतक के घाव में कमी जिससे दीर्घावधि लाभ मिलते हैं, जो पुनः शल्यक्रिया में मददगार साबित हो सकते हैं - यदि आवश्यक हो।[7]

नैदानिक परिणाम

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शल्यक्रिया पश्चात नेत्र संबंधी संरेखण के बारे में MISS के बाद के परिणाम पारंपरिक शल्यक्रिया के बराबर ही हैं हालाँकि अभी तक इस सम्बन्ध में सीमित साहित्य ही उपलब्ध है। यह दस्तावेज दर्ज किया गया था, उदाहरण के लिए, 40 बच्चों पर अध्ययन किया गया था; जिन बच्चों पर मिनिमली इनवेसिव प्रक्रिया की गयी थी, उनमें शल्यक्रिया के बाद कंजंक्टिवा और पलकों की सूजन कम पायी गयी थी।[8] MISS के मुख्य लाभों में जटिलताओं की कम दर और शीघ्रतर स्वास्थ्यलाभ को व्यापक रूप से स्वीकार किया जाता है।[9] रेक्टस मांसपेशियों [10] [11] [12] और साथ ही अलम्बवत मांसपेशियों की शल्यक्रिया में भी इस तकनीक की प्रभावकारिता देखी गयी है। [13] भारत के एक समूह ने ग्रेव्स ऑर्बिटोपैथी के रोगियों में MISS के सफल कार्यप्रदर्शन के बारे में सूचित किया था।[14]

नुकसान और संभावित जटिलतायें

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MISS में पारंपरिक शल्यचिकित्सा की तुलना में अधिक समय लगता है। सुरंग मार्ग के माध्यम से मांसपेशियों की शल्यक्रिया चिकित्सक के लिए अधिक श्रमसाध्य कार्य होता है। वयोवृद्ध मरीजों में कीहोल चीरे फट/खुल सकते हैं। यदि टेनॉन कैप्सूल में फटाव हो, तो परिणामस्वरुप निशान बना रह सकता है। रोके न जा सकने वाले अत्यधिक रक्तस्राव की स्थिति में वेसल/नाड़ी को दागने के लिए चीरे को बड़ा करने की जरुरत पड़ सकती है। आमतौर पर, जैसा कि पारंपरिक स्ट्रैबिस्मस सर्जरी में होता है, लिम्बल चीरे से बचा जा सकता है। हालांकि, कुछ रिपोर्टें हैं, जिनमें उन जटिलताओं का उल्लेख है जो ख़ास कर MISS के मामले में होती हैं।[15]

  1. D. S. Mojon: Comparison of a new, minimally invasive strabismus surgery technique with the usual limbal approach for rectus muscle recession and plication. In: Br J Ophthalmol. 91(1), Jan 2007, S. 76–82.
  2. M. H. Gobin, J. J. M. Bierlaagh: Chirurgie horizontale et cycloverticale simultane´e du strabisme. Centrum voor Strabologie, Antwerp 1994.
  3. D. S. Mojon: Review: minimally invasive strabismus surgery. In: Eye. 29, 2015, S. 225–233.
  4. Gupta P, Dadeya S, Kamlesh, Bhambhawani V: Comparison of Minimally Invasive Strabismus Surgery (MISS) and Conventional Strabismus Surgery Using the Limbal ApproachJ Pediatr Ophthalmol Strabismus. 2017;54:208-215..
  5. Kushner BJ. Minimally invasive strabismus surgery. Comparison of a new, minimally invasive strabismus surgery technique with the usual limbal approach for rectus muscle recession and plication. Br J Ophthalmol 2007;91:5.
  6. Asproudis I, Kozeis N, Katsanos A, Jain S, Tranos PG, Konstas AG. A Review of Minimally Invasive Strabismus Surgery (MISS): Is This the Way Forward?Adv Ther. 2017;34:826-833.
  7. D. S. Mojon: Review: minimally invasive strabismus surgery. In: Eye. 29, 2015, S. 225–233.
  8. P. Gupta, S. Dadeya, Kamlesh, V. Bhambhawani: Comparison of Minimally Invasive Strabismus Surgery (MISS) and Conventional Strabismus Surgery Using the Limbal Approach. In: J Pediatr Ophthalmol Strabismus. 54(4), 1. Jul 2017, S. 208–215.
  9. I. Asproudis, N. Kozeis, A. Katsanos, S. Jain, P. G. Tranos, A. G. Konstas: A Review of Minimally Invasive Strabismus Surgery (MISS): Is This the Way Forward? In: Adv Ther. 34(4), Apr 2017, S. 826–833.
  10. P. Merino, I. Blanco Domínguez, P. Gómez de Liaño: Outcomes of minimally invasive strabismus surgery for horizontal deviation. In: Arch Soc Esp Oftalmol. 91(2), Feb 2016, S. 69–73.
  11. N. Pellanda, D. S. Mojon: Combined horizontal rectus muscle minimally invasive strabismus surgery for exotropia. In: Can J Ophthalmol. 45(4), Aug 2010, S. 363–367.
  12. D. S. Mojon: Minimally invasive strabismus surgery for rectus muscle posterior fixation. In: Ophthalmologica. 223(2), 2009, S. 111–115.
  13. D. S. Mojon: Minimally invasive strabismus surgery (MISS) for inferior obliquus recession. In: Graefes Arch Clin Exp Ophthalmol. 247(2), 2009, S. 261–265.
  14. M. N. Naik, A. G. Nair, A. Gupta, S. Kamal: Minimally invasive surgery for thyroid eye disease. In: Indian J Ophthalmol. 63(11), Nov 2015, S. 847–853.
  15. D. S. Mojon: Review: minimally invasive strabismus surgery. In: Eye. 29, 2015, S. 225–233.

बाहरी कड़ियाँ

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