मुक्ताबाई
मुक्ताबाई (१२७९–१२९७) हिंदू धर्म के वारकरी संप्रदाय की एक प्रमुख संत थी। निवृत्ती नाथ, सोपान नाथ, ज्ञानेश्वर और मुक्ताबाई यह चार भाई बहन वारकरी संप्रदाय के महत्त्वपूर्ण संतों मे से थे।.[1][2][3] इनकी लिखी हरिपाठ, ताटीचे अभंग यह मराठी रचना प्रसिद्ध है।
संत मुक्ताबाई का जन्म ई.पू. में महाराष्ट्र के आपेगांव में वर्ष 1279 में हुआ था। संत मुक्ताबाई को "मुक्ताई" के नाम से जाना जाता है। उनके माता-पिता रुक्मिणीबाई और विट्ठलपंत हैं। संत निवृत्तिनाथ, संत ज्ञानेश्वर और संत सोपानदेव मुक्ताबाई के बड़े भाई थे।[4]
माता-पिता की मृत्यु के बाद इस अनूठे साधारण परिवार की गृहिणी की नाजुक जिम्मेदारी मुक्ताबाई पर आ गयी। उसने उसे उठाया और उतनी ही कुशलता से ले गई। वह अपने भाई-बहनों के लिए माँ की तरह बन गईं। अत: मुक्ताई खेलने-कूदने की उम्र में ही परिपक्व, गम्भीर एवं समझदार हो गयी।[5]
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ "Women saints, east and west : Free Download, Borrow, and Streaming". इंटरनेट आर्काइव (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2020-08-17.
- ↑ Faces of the feminine in ancient, medieval, and modern India. बोस, मंदक्रान्ता, 1938-. न्यूयॉर्क: ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस. 2000. OCLC 560196442. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-19-535277-7.सीएस1 रखरखाव: अन्य (link)
- ↑ Women saints in world religions. शर्मा, अरविन्द. Albany: स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ़ न्यूयॉर्क प्रेस. 2000. OCLC 44313434. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-7914-4619-0.सीएस1 रखरखाव: अन्य (link)
- ↑ "संत मुक्ताबाई माहिती".
- ↑ "संत मुक्ताबाई माहिती".