मुनव्वर हसन कमाल
संपूर्ण नाम सय्यद मुनव्वर हसन कमाल। कलमी नाम कमाल है। आपका जन्म भारत की रियासत उत्तर प्रदेश के शहर मुज़फ़्फ़र नगर में 9 अगस्त , 1959 ई. को हुवी। पिता सय्यद मुहम्मद हसन और माता उस्मानी बेगम। पत्नी राशिदा बेगम। पिता श्रीमान सय्यद मुहम्मद हसन काज़िमी भी अपने दौर के जाने माने शायर और लेखक थे।
सय्यद मुनव्वर हसन कमाल | |
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जन्म | मुज़फ़्फ़र नगर, उत्तर प्रदेश |
पेशा | संपादक |
बच्चे | ४ |
बचपन और शिक्षा
संपादित करेंआप एक तालीमी घराने में पैदा हुवे। इनके घर में और खांदान में लेखक और शायर भी थे। इन का बचपन मुज़फ़्फ़र नगर में गुज़रा। प्राथमिक विद्याभ्यास भी यहीं पर हुवी। आप धार्मिक विद्या भी ली। आप हाफ़िज़-ए-क़ुरान भी हैं। उर्दू में अदीब-ए-कामिल विद्या प्राप्त की। आग्रा विश्वविद्यालय से एम.ए. किया। फिर जामिया इसलामिया नई दिल्ली से पी.एच.डी. भी किया। जर्नलिज़म में विद्या जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय नई दिल्ली से किया।
पेशा और साहिती प्रस्थान
संपादित करेंआप धार्मिक विद्या प्राप्त करने के बावजूद समाजी जीवन में संपादकता और लेखक जीवन को चुना बहुत सारे उर्दू वार्ता पत्रिकाओं में काम किया। अब रोज़नामा सहारा, राश्ट्रीय सहारा नई दिल्ली के लिये काम कर रहे हैं इन की विशेशता यह है कि ये, खिलाफ़त पर, खिलाफ़त के इतिहास पर लिखा। और अली बिरादर पर भी कई लेख लिखे।
साहित्यिक सेवाएँ
संपादित करेंविभिन्न विषयों पर 100से ज्यादा मज़मून लिखे। विभिन्न विषयों पर एक हज़ार से ज्यादा किताबों पर व्याख्या और टिप्पणियां लिखी। उर्दू मुशायरे, सम्मेलन, सेमिनार, हाज़िर युवे। कई विशयों पर शोधपत्र लिखे। खास तौर पर पुस्तक समीक्षाकार के रूप में जाने पहचाने जाते हैं। और इनकी संरचनाएँ भी उर्दू साहित्यिक दुनिया मैं एक अच्छा स्थान रखती हैं। कमाल साहिब उर्दू लेखक, संपादक, समीक्षाकार, पत्रकार, शायर के रूप में भी जाने जाते हैं। दिल्ली के सहारा वार्तापत्रिका के उप-संपादक भी हैं।
संरचनाएँ
संपादित करेंकमाला साहिब खिलाफ़त पर बहुत सारी किताबें लिखी, जो उर्दू साहिती जगत में इनकी पहचान बनी।
- हज़रत थानवी और मुख्तसर हालात, खिद्मात और कारनामे
- अदीब और गाइड
- उर्दू के निसाबी शोरा
- तहरीक-ए-खिलाफ़त और जिद-ओ-जहद आज़ादी
- इदराक में आज़ादी हिन्द और तहरीक-ए-खिलाफ़त
- मौलाना मुहम्मद अली जोहर - सियासत
- इस्तियारा (कविता संकलन)
नमूना शायरी
संपादित करेंआइने में कैन है तेरे सिवा
- सरबसर, चेहा ब चेहरा हू ब हू
- यादों के आफ़ताब की गरमी झुलस न दे
- ज़ुलफ़ें ही चाहिये हैं ब जाये घटाओं के
- यादों के आफ़ताब की गरमी झुलस न दे
सम्मान
संपादित करें- फ़ख्रुद्दीन अली अहमद पुरस्कार
- उर्दू के निसाबी शायर
सन्दर्भ
संपादित करें- http://www.milligazette.com/Archives/2005/16-30Apr05-Print-Edition/163004200556.htm
- http://www.misgan.org/tabsera_kutub.html