मुरुद जंजीरा किला

(मुरुद-जंजीरा से अनुप्रेषित)

मुरुद-जंजीरा Archived 2020-05-19 at the वेबैक मशीन भारत के महाराष्ट्र राज्य के रायगड जिले के तटीय गाँव मुरुड में स्थित एक किला हैं। जंजिरा किला पर्यटन के लिए काफी प्रसिद्ध है। यह भारत के पश्चिमी तट का एक मात्र किला हैं, जो की कभी भी किसी ने जीता नही

मुरुद-जंजीरा

....इसको बनाने वाले 22 सिद्दीकी कबीले वाले...

यह किला 650 वर्ष पुराना है।

स्‍थानीय लोग इसे अजेय किला कहते हैं, जिसका शाब्दिक अर्थ अजेय होता है। माना जाता है


यह किला पंच पीर शेख पंजातन शाह बांडया बाबा के संरक्षण में है। शेख सिद्दीकी का मकबरा भी इसी किले में बांध है ।मराठा ने । यह किला समुद्र तल से 90 फीट ऊंचा है। इसकी नींव 20 फीट गहरी है। यह किला मराठा यादव शासको द्वारा बनवाया गया था। इस किले का निर्माण 22 वर्षों में हुआ था। यह किला 22 एकड़ में फैला हुआ है। इसमें 22 सुरक्षा चौकियां 22सिद्दीकी कबीलों ने बनवाया था

छत्रपती शिवाजी महाराज Archived 2020-03-18 at the वेबैक मशीन , कान्‍होजी आंग्रे, तथा संभाजी महाराज इस किले को जीतने का काफी प्रयास किया था, लेकिन कोई सफल नहीं हो सका।

जंजीरा का किला जाने के लिए ऑटोरिक्‍शा से मुरुड से राजपुरी जाना होता है। यहां से नाव द्वारा जंजीरा का किला जाया जा सकता है। एक व्‍यक्‍ित का नाव का किराया 20 रु. है। समय: सुबह 7 बजे से शाम 6 से 7 के बीच। यह किला शुक्रवार को दोपहर से 2 बजे तक बंद रहता है।

इतिहास जंजिरा यह शब्द अरबी भाषा से अपने यहॉ परसिद्ध हुआ है। अरबी भाषा में जंजिरा इस शब्द से वो आया है। जंजिरा मतलब बंदरगाह। इस बंदरगाह पर पहले एक मेढेकोट था। उस समय राजपुरी में कुख्यात टोली लोगोंकी बस्ती थी। इन टोली लोगों को लुटेरे और चोरों से कबीले के लोगों की हमेशा ही परेशानी होती थी। तब इन चारो की परेशानी पर प्रतिबंध करने के लिए इस बंदरगाह पर मेढेकोट बनाया गया । मेढेकोट मतलब लकडी के बडे 'ओंडके'(बुंदा)एक के पास एक गाडकर तयार की हुई तटबंदी। इस तटबंदी में किला के लोग सुरक्षित रहते थे। उस समय उनका प्रमुख थे राम पाटील । इस मेढेकोट बनाने के लिए उस समय निजामी ठाणेदार की सहमति लेनी पडी थी। मेढेकोटा की सुरक्षितता मिलते ही राम पाटील उस ठाणेदार की बात सुनता न था इसलिए ठाणेदार ने उसका बंदोबस्त करने के लिए पिरमखान नियुक्ती की।

राम पाटील अपने को मेढेकोटा के पास आने नहीं देगा इसकी कल्पना पिरमरखान को थी। वह बहुत चतुर था।उसने स्वयं को शराब काे व्यापारी बताया और अपनी गलबते खाडी में लगाई। राम पाटील से स्नेहवत संबंध रहे इसलिए शराब की कुछ टंकिया उन्हें भेट भेजी इस कारण राम पाटील खूप खुश हुए। पिरमखान ने मेढेकोट देखने की इच्छा व्यक्त की। पिरमखान मेढेकोट गए। रात् को सब कोली दारू पिकर झूम रहे थे तभी पिरमखान ने बाकी की जगह के अपने सैनिक बुलाकर मेढेकोट के सब लोगों की कत्तल करके मेढेकोट अपने हाथों लिया।

इसके बाद पिरमखान की जगह बुर्‍हान सिद्दीकी की नियुक्ती हुई । उसने वहीं पर भक्कम दुर्ग बनाने की इजाजत निजाम से ली और अभी जो दुर्ग है बुर्‍हान सिद्दीकी साहब ने ही बांधा हुआ है। आगे इ.स.१६१७ में सिद्दीकी अंबर ने बादशह से जहागिरी प्राप्त की। जंजिरा संस्था का यह मुख्य पुरुष समझा जाता है।

जंजिऱा का पुरातन झंडा जंजिरा के सिद्दीकी कबीला अबिसीनिया के थे वे दर्यावर्दी, शूर थे।उन्होंने प्राणपण से जंजिरा की लडाई की अनेकाें ने जंजिरा जीतने का प्रयत्‍न किया परंतु कोई कभी भी सफल हो सका नही। छत्रपती शिवाजी राजा भी जंजिरा पर स्वामित्व नही प्राप्त कर सके। इ.स.१६१७ से इ.स.१९४७ ऐसे ३३० वर्ष जंजिरा अंजिक्य रहा। जंजिरा का प्रवेशद्वार पूर्वाभिमुख है। होडी से किले के प्रवेश द्वार तक पहुँचने का एक प्रवेशद्वार एक उपदार है। प्रवेशद्वार के पास एक शिल्प है। बुर्‍हान सिद्दीकी की दर्पोक्तीच इस चित्र में दिखाई देती है। एक शेर ने चारों पाव में चार हाथी पकडे है और पूँछ में एक हाथी पकडा है ऐसा यह चित्र है। बुर्‍हान सिद्दीकी अन्य सत्ताधारियों को सुझाव देते है कि "तुम हाथी हो तो मैं भी शेर हूँ। "इस किले की ओर बुरी नजर से देखने की हिम्मत न करें। " इस किले का सिद्दीकी कबीला वालों ने किला को हमेशा अजेय रखा।

संभाजी महाराज ने तो यह किला हस्तगत करने के लिए इस किले के नजदीक पाच छ: किलोमीटर अंतर पर पद्मदुर्ग नाम का मजबूत किला बनाया था। पर फिर भी मुरुड का जंजिरा जीतना महाराज को असंभव ही रहा। 

किले की अवस्था जंजिरे की तटबंदी बुलंद है। उसे सागर की ओर एक दरवाजा है। ऐसे १९ बुलंद बुरूज है। दो बुरुज में अंतर ९० फुट से जास्त है। तटबंदी पर जाने के लिए जगह- जगह सीढियॉ है। तटबंदी में कमान है। उस कमान में मुँह करके तोफ रखी गई है। जंजिरा पर ५१४ तोफा होने का उल्लेख है। उसमें से कलालबांगडी, लांडाकासम और चावरी ये तोफे आज भी देखने को मिलती है।

किले के मध्यभाग में सुरुलखाना का भव्य बाडा आज जर्जर अवस्था में है। पानी के दो बडे़ तालाब है। किले में पहले तीन मोहल्ले थे। इसमें दो मोहल्ले शैख सिद्दीकी कबीले और एक अन्य लोगों के थे। पहले किले में बडी बस्ती थी।

धीरे धीरे सिद्दीकी कबीले वालो का व्यवसाय ब्रिटिश राज की वजह से खतम होता गया सैकड़ो की तादाद में सिद्धि की वंशज सर्व बस्ती वहॉ से उठ गई। सैकड़ो की तादाद में सिद्दीकी परिवार के लोग हिंदुस्तान के कई शहरों की तरफ रवाना हो गए जंजिरे की तटबंदी से विस्तृत प्रदेश दिखता है। इसमें समुद्र में बांधा कासा उर्फ पद्मदुर्ग और किनारे पर सामराजगड यह भी यहॉ से येथून दिखता है। ३३० वर्ष अभेद्य और अंजिक्य रहा जंजिरे का मेहराब देखने का इतिहास के अनेक पर्व का उल्लेख है सबकी नजर के सामने से जाता है। थोडा और इतिहास का अभ्यास किया तो जंजिरा किला के , २२ अलग अलग सिद्दीकी परिवार १७५५ में सिद्दीकी वंशजों ने अपना मूल घर त्याग कर हिंदुस्तान के कई शहरों में अपना व्यवसाय के और घर बना लिए और सभी सिद्दिकी वंशज चित्र बितर हो गए

क्योंकि पुराने दौड़ में अंग्रेजो से मुस्लिम राजा अपनी जान की हिफाजत के लिए रंगनुन की तरफ यात्रा करके बंगाल वगैरह में छुप जाते थे जिसकी वजह से अंग्रेजी कैद में जाने से बच जाते थे इसलिए किला के सरदार और उनके साथ उनका कुछ परिवार बिहार के रास्ते बंगाल रंगनून, मायम्मर की तरफ अपने वंशजों के साथ महीनों यात्रा के बाद दरभंगा राजा के शरण में एक जमीन हिस्सा १७५९ में मिला जहां पर कबीले का कुछ वंशज रहने लगे और कुछ वहां से १७६४ बंगाल की तरफ चले गए,आज भी बंगाल से लेकर पूर्णिया कटिहार मधुबनी दरभंगा वगैरह वगैरह में शेख सिद्दीकी परिवार के लोग पाए जाते हैं पाए जाते हैं

हे सुद्धा पहा जंजिरा (पुस्तक) बाह्य दुवे मुरुड जंजिरा किल्ला