मुल द्वारका यानि प्राचिन द्वारका, मुल द्वारका के बारे मे जानने से पहले हमे प्रभास तिर्थ के जानना होगा।। दैवतेरवि दुष्प्राको मयः संगमस्य रुपो सर्वधाम्‌। ॥तीर्थानां प्रधान तीर्थस्य रुपः प्रभास तीर्थमुत्तमम्‌॥ पश्र्चिम भारत के सौराष्ट्र प्रांत के सागरतटपर 20॰, 15॰ अक्षांश और 70॰,28॰ रेखांश पर अत्यंत प्राचिन प्रभास नामक तीर्थक्षेत्र है इसी जगह पर इतिहास प्रसिध्द सोमनाथ मंदिर है। प्रभास तीर्थ के हिरण नदी के किनारे भगवान श्रीकृष्ण ने अपना देहत्याग करके परमधाम को प्रस्थान किया था। प्रभास तीर्थ से 7 कि॰मी॰ की दुरी पर स्थित है वेरावल रेल्वेस्टेशन, वेरावल से प्रभास तीर्थ को बस, रिक्षा ऐसी अनेको सुविधाओसे जोडे रखा है। प्रभास के पासही मे भगवान श्रीकृष्ण की ऐतिहासीक नगरी द्वारका इस नगर को सागरतट पर होने के कारण एक ही द्वार यानी पुरे नगर को एक ही द्वार था, इसीलये द्वार+एका= द्वारका नाम दिया गया था। द्वारका आज के प्रभास से 36 कि॰मी॰ के दुरी पर पुरब की ओर है। इसे ही मुल द्वारका कहा जाता है। ये पुरातत्वीय पुरावे से सिध्द हो गया है की मुल द्वारका ही भगवान श्रीकृष्ण की ऐतिहासीक नगरी द्वारका है। भगवान श्रीकृष्ण ने द्वापार युग मे देवशिल्पी विश्वकर्मा से द्वारका नगर का निर्माण किया था तब इस के सभी महल घरो तथा पुरि नगरी ही सोने की थी। जब प्रभास तीर्थ के हिरण नदी के किनारे भगवान श्रीकृष्ण ने अपना देहत्याग करके परमधाम को प्रस्थान किया था तब सोने की द्वारका को अकस्मात गायब कर दिया क्यों की द्वापार युग खत्म होकर कलीयुग को शुरुआत होने वाली थी। महाभारत के अनुसार यादव 2 से 3 घंटो मे प्रभास से द्वारका पोहच सकते थे। भगवान श्रीकृष्ण ने अपना देहत्याग करके परमधाम को प्रस्थान करने से पहले एक भिल्ल (शिकारी) ने भगवान श्रीकृष्ण के पैर के अंगुठे को हिरण समजकर बान मार दिया। उसके बाद जिस प्रकार कपुर जलने के बाद उसकी कोइ राख नही बचती उसी प्रकार भगवान श्रीकृष्ण ने अपना अत्यंत सुदंर और पवित्र पार्थव शरीर पंचतत्व मे विलीन करके परमधाम को प्रस्थान किया। उसकी याद मे प्रभास तीर्थ नामक छोटासा गाव मात्र रह गया है। ईसवी सन 7 वे शतक मे वाराहीदास इसने उस छोटे गाव को भी नष्ट कर दिया, उस राजा ईश्वरजी चावडा इन्होने ओखा प्रदेश मे आजकी द्वारका नामक नगर बसाया जो आज आस्था का तीर्थस्थान बना हुआ है। भगवान श्रीकृष्ण की द्वारका 24 मैल पसरी हुई थी, उस वक्त का हरीकोट और आजका हीराकोट आजके कोडीनार गाव तक फैली थी। इस प्रकार भगवान श्रीकृष्ण की द्वारका आज की द्वारका नही है ओ वेरावल से पुरब की ओर 42 कि॰मी॰ की दुरी पर स्थित मुल द्वारका ही है।