मूल मंतर (पंजाबी: ਮੂਲ ਮੰਤਰ) सिख धर्म पुस्तक आदि ग्रन्थ का सर्वप्रथम छंद है जिसमें सिख मान्यताओं को संक्षिप्त रूप में बताया गया है। यह गुरु ग्रन्थ साहिब में सौ से अधिक बार आया है।[1]

आदि ग्रन्थ का एक अंश जिसपर मूल मंतर दर्ज है
मूल मन्तर

मंत्र संपादित करें

मूल
लिप्यन्तरण
अनुवाद
ੴ ਸਤਿ ਨਾਮੁ
ਕਰਤਾ ਪੁਰਖੁ
ਨਿਰਭਉ ਨਿਰਵੈਰੁ
ਅਕਾਲ ਮੂਰਤਿ
ਅਜੂਨੀ ਸੈਭੰ
ਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
इक्क ओंकार सत नाम
करता पुरख
निरभऊ निरबैर
अकाल मूरत
अजूनी सैभं
गुर प्रसाद ॥
एक परमात्मा, जिसका नाम सत्य है
सृजनकर्ता पुरुष
निर्भय, द्वेष-रहित
अकाल मूर्ति (सनातन छवि)
अजन्मा स्वयंभु (स्वयं से उत्पन्न हुआ)
गुरु-कृपा से प्राप्त ॥

ध्यान दें कि हालांकि गुरमुखी और देवनागरी के रूप मिलते हैं, गुरमुखी शब्दों में बहुत-सी अंतिम छोटी मात्राओं को उच्चारित नहीं किया जाता। उदाहरण-स्वरूप 'ਪ੍ਰਸਾਦਿ' का सही लिप्यन्तरण 'प्रसाद' है, 'प्रसादि' नहीं।[2]

इन्हें भी देखें संपादित करें

बाहरी कड़ियाँ संपादित करें

सन्दर्भ संपादित करें

  1. Ik Onkar One God, Simran Kaur Arneja, pp. 12, Rashmi Graphics, ISBN 978-81-8465-093-8, ... 'Ik Onkar. Satnam. Karta Purakh. Nirbhau. Nirvair. Akaal Moorat. Ajooni. Saibhang. Gurparshaad.' God is only One. His name is True ...
  2. The gospel of the Guru-Granth Sahib, Duncan Greenlees, Nānak (Guru), Theosophical Pub. House, 1975, ISBN 978-0-8356-7132-3, ... mark off as silent certain vowels at the end of many words. These vowels are akin to those used at the end of Arabic words, which are written but not uttered in the common speech ...