मृगावती वैशाली नरेश चेटक की पुत्री, महावीर की ममेरी बहन और राजा शतानीक की पत्नी। इनकी गणना जैन धर्म में १६ सतियों में की जाती है। इनकी कथा भारतीय साहित्य में प्रसिद्ध है। उसके अनुसार जब वे गर्भवती हुई तो एक दिन उन्हें रुधिरस्नान का दोहद हुआ। उसे पूरा करने के लिए प्रधान मंत्री युगंधर ने बावली को लाल रंग के पानी से भरवा दिया। उसमें स्नान कर ज्यों ही मृगावती बाहर आई, मांसपिंड जानकर मारंड नामक पक्षी उन्हे अपने पंजे में दबोचकर उड़ गया। १४ बरसों तक शतानीक ने उनकी खोज कराई पर कुछ पता न चला। एक दिन एक वनवासी कंकण बेचते हुए पकड़ा गया जिस पर राजा का नाम अकिंत था। उसे ही रक्तस्नान के दिन मृगावती ने पहना था। राजा ने कंकण देखते ही पहचान लिया। इस प्रकार वनवासी की सहायता से रानी मृगावती अपने पुत्र उदयन के साथ शतानीक को पुन: प्राप्त हुई। कुछ दिनों पश्चात् एक चित्रकार के पास मृगावती का चित्र देखकर उज्जैन नरेश प्रद्योत उन पर मुग्ध हो गया और शतनीक से उनकी माँग की। किंतु शतानीक ने देने से मना कर दिया। इस पर दोनो में युद्ध छिड़ गया। इसी बीच शतानीक की मृत्यु हो गई और महावीर कौशांबी पधारे। मृगावती ने उनसे दीक्षा ग्रहण की और ६० समय उपवास कर मोक्ष प्राप्त किया।

जैन साहित्य में इस कथा की चर्चा है ही ; महायान बौद्ध पिटक में भी सुधन मनोहरा की कथा के रूप में इसकी चर्चा है।