मेरठ षड्यंत्र मामला एक विवादास्पद अदालत का मामला था। मार्च 1929 में ब्रिटिश सरकार ने 31 श्रमिक नेताओ को बन्दी बना लिया तथा मेरठ लाकर उन पर मुक़दमा चलाया। इनमें तीन ब्रिटिश साम्यवादी फिलिप स्प्रेड, बैन ब्रेडले तथा लेस्टर हचिंसन भी थे। इन तीनों ब्रिटिश कम्युनिस्टों को भारत से निष्कासित करने का विधेयक तैयार किया था। इन पर आरोप लगाया गया कि ये सम्राट को भारत की प्रभुसत्ता से वंचित करने का प्रयास कर रहे थे।

मेरठ षड्यंत्र केस के विरोध में 21 मार्च 1929 को मोतीलाल नेहरू में केंद्रीय विधानसभा में काम रोको प्रस्ताव पेश किया। आइंस्टाइन ने ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री मैकडोनाल्ड को पत्र लिखकर इस मुकदमे को हटा लेने की मांग की। मेरठ षड्यंत्र केस में फंसे कैदियों को बचाने के लिए जवाहरलाल नेहरू, एम ए अंसारी, कैलाश नाथ काटजू तथा एम.जी. छागला ने पैरवी की ।

मेरठ षड्यंत्र केस का फैसला 16 जनवरी 1933 ईस्वी को सुनाया गया। 27 अभियुक्तों को कड़ी सजा दी गई। मुजफ्फर अहमद को सबसे बड़ी और कड़ी सजा दी गई जिसके तहत उन्हें आजीवन काले पानी की सजा दी गई। इससे श्रमिक आंदोलन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा।

जेल के बाहर मेरठ जेल के कैदी

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