मेरुवक्रता या स्कोलिओसिस (scoliosis) के रोग के कारण मेरुदण्ड सीधी न रहकर किसी एक तरफ झुक जाती है। इससे ज्यादातर छाती और पीठ के नीचे के हिस्से प्रभावित होते हैं। इसे 'रीढ़ वक्रता' या 'पार्श्वकुब्जता' भी कहते हैं।

आमतौर पर स्कोलियोसिस की शुरूआत बचपन या किशोरावस्था में होती है। जब शरीर की वृद्धि या बढ़त (शारीरिक विकास) रुक जाती है, तब तक यह झुकाव साफ नजर आने लगता है। कई बार देखा जाता है कि रीढ़ मुड़कर अंग्रेजी के ‘ऽ’ अक्षर के आकार की हो गई है। इस समस्या के किसी ठोस कारण का अभी तक पता नहीं चल सका है। यदि समय रहते इसका उपचार न कराया जाए तो यह शरीर में विकृति व विकलांगता पैदा कर सकती है। रीढ़ की हड्डी में किसी जन्मजात असामान्यता के चलते या रीढ़ की हड्डी के दुर्घटना का शिकार हो जाने पर भी स्कोलियोसिस हो सकती है। कभी-कभी श्रोणि प्रदेश के झुक जाने के कारण एक पैर छोटा, एक पैर बड़ा हो जाता है। नतीजतन रीढ़ भी झुक जाती है। अगर स्कोलियोसिस के सही कारण का पता चल जाए जैसे कि यह स्लिपडिस्क की वजह से है तो ‘बेडरेस्ट’ के जरिए, पैरों की लम्बाई असमान होने की वजह से है तो विशेष किस्म के आर्थोपैडिक जूतों के उपयोग से इससे बचा जा सकता है। यदि रीढ़ का झुकाव लगातार होता रहे तो आर्थोपैडिक सर्जन से परामर्श करके शल्यक्रिया भी कराई जा सकती है।

मेरुवक्रता की तरह-तरह की स्थितियाँ

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