मेवाड़ भील कॉर्प
मेवाड़ भील कॉर्प का सेवा और देशभक्ति का एक लंबा, बहादुर और सफल इतिहास है । 1837 में, महिकांता के राजनीतिक एजेंट कर्नल जेम्स आउट्राम ने एक ब्रिटिश अधिकारी की कमान में भील वाहिनी की स्थापना का प्रस्ताव रखा। परिणामस्वरूप, 1 जनवरी 1841 को मेवाड़ भील कोर की स्थापना हुई। अप्रैल 1841 में गवर्नर जनरल ने अपनी सलाहकार परिषद की सलाह पर मेवाड़ भील कोर के गठन को स्वीकृति प्रदान की। मेवाड़ भील कोर का मुख्यालय उदयपुर राज्य में खेरवाडा रखा गया । मेवाड़ भील कॉर्प ने उस दौरान महत्वपूर्ण भूमिका निभाई भिलप्रांत में पक्की सड़कों का निर्माण कराने और बाहरी दुनिया से व्यापार शुरू करने का श्रेय मेवाड़ भील कॉर्प को ही है , यदि उस दौरान यह भील सेना नहीं होती तो राजाओं की जमीन बिक जाती थी [1]।
इतिहास
संपादित करेंजब मेवाड़ रियासत ने अंग्रेजो से सन्धि की तब से वे विद्रोहियों को रोकने के लिए दिन में पुलिस थाने बनाते और खेरवाडा के आदिवासी लोग उन्हें रात में तोड़ कर पहाड़ों में चले जाते तो अंग्रेज परेशान हो गए थे तब यहां के एक भील नेता के साथ सन्धि की तब उन्होंने यह बात कही की एक सेना जिसमें केवल आदिवासी ही उन्हीं को भर्ती किया जाए , तब ही हम आप लोगों का साथ देने के लिए तैयार हैं इस तरह से 1841 मे मेवाड़ भील कॉर्प की स्थापना हुईं और प्रथम कमांडेंट भी भील नेता ही बना ।
यह देखे
संपादित करेंसन्दर्भ
संपादित करें- ↑ Shrinivas, M. N. (2000-01-01). Bharat Ke Gaon. Rajkamal Prakashan. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-267-0025-7.