मैक्स प्लांक

जर्मन वैज्ञानिक मैक्स प्लांक को नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था
(मैक्स प्लैंक से अनुप्रेषित)

जर्मन वैज्ञानिक मैक्स प्लांक (Max Planck) का जन्म 23 अप्रैल 1858 को हुआ था। ग्रेजुएशन के बाद जब उसने भौतिकी का क्षेत्र चुना तो एक अध्यापक ने राय दी कि इस क्षेत्र में लगभग सभी कुछ खोजा जा चुका है अतः इसमें कार्य करना निरर्थक है। प्लांक ने जवाब दिया कि मैं पुरानी चीज़ें ही सीखना चाहता हूँ. प्लांक के इस क्षेत्र में जाने के बाद भौतिकी में इतनी नई खोजें हुईं जितनी शायद पिछले हज़ार वर्षों में नहीं हुई थीं।

युवा मैक्स प्लांक (१८७८)

प्लांक ने अपने अनुसंधान की शुरुआत ऊष्मागतिकी (Thermodynamics) से की। उसने विशेष रूप से उष्मागतिकी के द्वितीय नियम पर कार्य किया। [1]उसी समय कुछ इलेक्ट्रिक कंपनियों ने उसके सामने एक ऐसे प्रकाश स्रोत को बनाने की समस्या रखी जो न्यूनतम ऊर्जा की खपत में अधिक से अधिक प्रकाश पैदा कर सके। इस समस्या ने प्लांक का रूख विकिरण (Radiation) के अध्ययन की ओर मोड़ा . उसने विकिरण की विद्युत् चुम्बकीय प्रकृति (Electromagnetic Nature) ज्ञात की। इस तरह ज्ञात हुआ कि प्रकाश, रेडियो तरंगें, पराबैंगनी (Ultraviolet), इन्फ्रारेड सभी विकिरण के ही रूप हैं जो दरअसल विद्युत् चुम्बकीय तरंगें हैं।

प्लांक ने ब्लैक बॉडी रेडियेशन पर कार्य करते हुए एक नियम दिया जिसे वीन-प्लांक नियम के नाम से जाना जाता है। [2]बाद में उसने पाया कि बहुत से प्रयोगों के परिणाम इससे अलग आते हैं। उसने अपने नियम का पुनर्विश्लेषण किया और एक आश्चर्यजनक नई खोज पर पहुंचा, जिसे प्लांक की क्वांटम परिकल्पना कहते हैं। इन पैकेट्स को क़्वान्टा कहा जाता है। हर क़्वान्टा की ऊर्जा निश्चित होती है तथा केवल प्रकाश (विकिरण) की आवृत्ति (रंग) पर निर्भर करती है। (सूत्र E = hν जहाँ h प्लांक नियतांक तथा ν आवृत्ति है।)

प्लांक की इस परिकल्पना ने भौतिक जगत में हलचल मचा दी। यहीं से जन्म हुआ भौतिकी की नई शाखा क्वांटम भौतिकी का. बाद में इसी परिकल्पना का उपयोग करते हुए आइन्स्टीन ने प्रकाश विद्युत प्रभाव की व्याख्या की, जिसके लिए उसे नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।[3] इस परिकल्पना के अनुसार प्रकाश तथा अन्य विद्युत चुम्बकीय विकिरण ऊर्जा का सतत प्रवाह न होकर ऊर्जा के छोटे छोटे पैकेट के रूप में चलता है।

क्वांटम भौतिकी की स्थापना के लिए प्लांक को 1918 के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। धार्मिक रूप से वह ईसाई था। वह तथा आइन्स्टीन गहरे दोस्त थे। उनकी पिआनो की महफिलें साथ में जमती थीं। 4 अक्टूबर 1947 को नब्बे वर्ष की अवस्था में उसकी मृत्यु हुई।

इन्हें भी देखें

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  1. "संग्रहीत प्रति". मूल से 7 सितंबर 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 30 अगस्त 2018.
  2. "संग्रहीत प्रति". मूल से 7 सितंबर 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 30 अगस्त 2018.
  3. "संग्रहीत प्रति". मूल से 30 अगस्त 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 30 अगस्त 2018.

बाहरी कड़ियाँ

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