मलाला क़न्दहार के करीब एक जगह मैवंद से सम्बंध रखनेवाली एक पश्तून स्त्री थी | इतिहास में मैवंद-युद्ध (जंग) (27 जुलाई 1880) के कारण से याद की जाती है क्योंकि मलाला ने पश्तूनों को उस समय प्रोत्साहित किया जब वह अंग्रेज़ सेना के विरुध लड़ रहे थे | युद्ध एक ऐसे समय पर हुआ जब मलाला की शादी तय हो चुकी थी। युद्ध में उसके मंगेतर और पिता भी शामिल थे। उस समय प्रचलित प्रथा के हिसाब से मलाला घायलों की देख-रेख करना शुरू कर चुकी थी। युद्ध में जब अंग्रेज़ों ने ज़ोर पकड़ा तो मलाला अपनी भाषा में शेर गाकर लोगों को लड़ने के लिए उभारने लगी। एक समय पर अंग्रेज़ों ने पश्तून झंडे को थामे आदमी को मार डाला तो मलाला ने झंडा अपने हाथों में लिया और रणभूमि में कूद पड़ी यहाँ तक कि उसे शहीद कर दिया गया। उस समय से मलाला एक लोकप्रिय नाम बन गया। पाकिस्तान में स्त्री-शिक्षा समर्थक मलाला यूसुफ़ज़ई का नाम भी इसी वीर महिला पर रखा गया है।[1]


सन्दर्भ संपादित करें

  1. "संग्रहीत प्रति". मूल से 1 मार्च 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 26 फ़रवरी 2014.