खान सिद्दिकी अल हिन्दी के नाम से मशहूर मोहम्मद रफीक साबिर भारत विभाजन के घोर विरोधी स्वतंत्रता सेनानी थे। उन्होंने मुसलिम लीग प्रमुख और पाकिस्तान के कायदे आजम मोहम्मद अली जिन्ना को भारत विभाजन कर पाकिस्तान की माँग करने के कारण देश की आजादी में सबसे बड़ा दुश्मन माना था और मुंबई में उनके घर पर चाकू से हमला कर उन्हें जान से मारने की कोशिश की थी।

जीवन वृत्त संपादित करें

मोहम्मद रफीक साबिर मूल रूप से लाहौर के रहने वाले थे। उनके पिता वहां पर उमरदीन लाहौर की जिला अदालत में मुंशी थे। ये मोजअ कोट अब्दुल्लाह मजंग के रहने वाले थे। यह इलाका आज भी पाकिस्तान में प्रसिद्ध पीर अब्दुल अजीज के नाम से जाना जाता है। आजादी की लड़ाई में इन्होंने सबसे पहले मुस्लिम लीग और उसके बाद अन्य लोगों के साथ जुड़कर बढ़-चढ़कर भाग लिया। उस वक्त कांग्रेस और मुस्लिम लीग के रूप में दो ही दल हुआ करते थे। 1925 में मोहम्मद साबिर ने आजादी के लिए अंग्रेजों के खिलाफ एक आंदोलन को देखा तो वो भी आजादी की लड़ाई में शामिल हो गए। जेल से रिहा होने के बाद खान सिद्दिकी कुछ दिन मुंबई में रहे और उसके बाद इंदौर आ गए। 24, गफूर खां की बजरिया और रानीपुरा में वह सालों तक लकड़ी का बिजनेस करते रहे। साथ ही आजादी के बाद इंदौर की समस्याओं के लिए उन्होंने कई बार सरकार के खिलाफ आंदोलनों में भाग लिया। उन्होंने जीते जी कभी भी सरकार से सीधे कोई मदद नहीं मांगी। उनका कहना था कि जो सबको दिया जा रहा है, उन्हें भी अपने आप मिलना चाहिए। इन्हें आजादी के बाद में खान सिद्दिकी अल हिन्दी के रूप में जाना जाता था। प्रदेश शासन द्वारा उन्हें स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मानते हुए पेंशन भी दी जाती रही।

तीन अगस्त 1990 को खान सिद्दिकी का इंतकाल होने गया।

जिन्ना पर हमला संपादित करें

खान सिद्दिकी मोहम्मद अली जिन्ना को आजादी में सबसे बड़ा रोड़ा मानते थे। उनका मानना था कि कायदे आजम जिन्ना हिंदुस्तान की आजादी के रास्ते में रुकावट के साथ-साथ अंग्रेजी साम्राज्य के हाथ में एक खिलौना है। वे मानते थे कि उस समय सबसे ज्यादा जरूरत आजादी की थी, जबकि जिन्ना आजादी के साथ-साथ, इससे ज्यादा देश को दो टुकड़ों में बांटने की कवायद करने में लगे थे।

उन्होंने 26जुलाई 1943 को मुम्बई में तत्कालीन मुस्लिम लीग के प्रमुख मोहम्मद अली जिन्ना पर चाकू से हमला कर दिया। यह हमला उनके घर में घुसकर किया गया। इस हमले का मकसद जिन्ना को मारना था। हमले के लिए 25 वर्षीय साबिर लाहौर से मुंबई आए थे। हमले में जिन्ना की गर्दन, बाए कंधे, थोड़ी और कलाई में काफी चोट आई। जिन्ना के साथियों ने मोहम्मद साबिर को पकड़कर जिन्ना की रक्षा की थी। मुंबई में हिज लार्ड शिप की अदालत में उनके खिलाफ मुकदमा चलाया गया। कोर्ट में भी उन्होंने जिन्ना को आजादी में रुकावट बताया। गवाहों के बयान के बाद खान सिद्दिकी को मौत की सजा देने की मांग की गई। न्यायालय ने उन्हे धारा ३क्७ के अंतर्गत पांच साल कैद की सजा दी। उन्हें पहले 4 नवम्बर 1943 से यरवदा सेंट्रल जेल में रखा गया। उसके बाद 12-4-1945 को उन्हें आर्थर रोड सेंट्रल जेल मुंबई में शिफ्ट कर दिया गया। बाद में उन्हें रिहा किया गया।

पाकिस्तान में मोहम्मद अली जिन्ना को जनक और कायदे आजम का दर्जा दिया गया है इसलिए पाकिस्तान के इतिहास में खान सिद्दिकी को बड़ा आतंकी माना जाता है। वहां की कई किताबों में खान सिद्दिकी द्वारा जिन्ना को मारने की कोशिश का प्रमुखता से उल्लेख किया गया है।

बाहरी कड़ियाँ संपादित करें