यक्षगान

रंगमंच नृत्यनाट्य कला

यक्षगान भारत के कर्णाटक राज्य का एक प्रसिद्द नाट्य रूप है। ये नाटक दक्षिण भारत के दक्षिण कन्नड़, उडुपी, उत्तर कन्नड़, शिमोगा, चिकमंगलूर और कासरगोड के जिलों में प्रचलित है। इस नाट्य में नृत्य, संगीत, संवाद और वेशभूष का प्रयोग किया जाता है। इस विशेष रूप में धार्मिक और पौराणिक कथाओ को प्रदर्शित करने के लिए माना जाता है। इसकी कहानियाँ रामायण, महाभारत, पुराण, भगवद गीता और अन्य प्राचीन महाकाव्यों से ली गई है। यक्षगान दो शब्दों से मिलकर बना है, पहले है यक्ष जिसका मतलब भूत या प्रेत और गान जिसका मतलब है गीत।   

इतिहास

यक्षगान की शुरुआत सोलहवीं शताब्दी में हुई थी, और इसकी शुरुआत कर्नाटक के समुद्रतटीय क्षेत्रों में हुई थी।  इसे नाट्य पहली बार कर्णाटक के लक्ष्मीनारायण मंदिर में एक मूर्ति पुर दर्शाया गया था।  यह भक्ति आंदोलन से प्रभावित था और माना जाता है की श्री मध्वाचार्य के शिष्यों ने इस कला को शुरू किया था। यक्षगाना के कुछ प्रसिद्ध प्राचीन कवी है जैसे अजापुरा विष्णु, श्री पुरंदरदास, पार्थी सुब्बा, और नागिरे सुब्बा। मैसूरु के वडियार राजवंश इस कला के संरक्षक थे। यह नाट्य मंदिरों, अनुष्ठानों, दरबारों और कर्नाटिक संगीत से प्रेरणा लेते हुए विकसित हुआ है । यह नाट्य आज भी कर्णाटक और केरल के कुछ हिस्सों में एक लोकप्रिय और जीवित कलारूप है।  

यक्षगान के भाग

यक्षगान कला एक बहुत समृद्ध और सांस्कृतिक नाट्यरूप है। इस कला में कलाकार हिन्दू पौराणिक कथाए जैसे रामायण, महाभारत, हिन्दु पुराण और भगवत गीता का प्रदर्शन करते है। इस कला में बहुत सारी विशेषताऐं है, जैसे नाटक के पहले सारे कलाकार गणेश जी के प्रार्थन करते है। इस नाट्यरूप में कर्नाटिक संगीत के तत्व है, जैसे राग, ताल और संगीत वाद्य। कार्यक्रम के दौरान गायक कविता गाता है और नर्तक नाचता है। नर्तक रंगीन पहनावा और मेकप पहनकर देवताओ और राक्षसों की भूमिका निभाते हैं। इसके साथ ढोलक, हारमोनियम, बांसुरी, घंटिया, जैसे वाद्य बजाए जाते हैं।

यक्षगान के बदलाव

यक्षगान एक बहुत विविध कला रूप है जिसमें बहुत सारी प्रकार है जो अलग अलग क्षेत्रो से आते है। यक्षगान के बहुत सरे प्रकार हे जैसे-

1.     मुदालोपाया यक्षगान- कर्णाटक के उत्तरी क्षेत्रों से आता है जैसे तुमकुर, हीरियर, चित्रदुर्गा, मांड्या और अर्सिकेरे

2.     पडुवलोपया यक्षगान- पश्चिमी कर्नाटक के क्षेत्रो से आता है जैसे दक्षिण कन्नड़ और बँटवाला

3.     टेंकुटिटु- दक्षिणी कर्नाटक और केरल के कुछ हिस्सों से आता है जैसे कासरगोड, मंगलुरु, उडुपी और पुट्टुर

4.     बडगुतिट्टू - उत्तरा कन्नड़ और कुन्दपुर जिलों से आता है

5.     उत्तरा कन्नदतिट्टु - उत्तर कर्नाटक के जिलों से आता है

यक्षगान एक बहुत ही विविध कला रूप है जिसमें गायन, नृत्य, अभिनय आदि तत्व शामिल हैं। यह कला कर्णाटक राज्य में बहुत लोकप्रिय है और हमारे संस्कृति के लिए बहुत गर्व की बात है। हम सभी को इस संस्कृति की रक्षा करनी चाहिए ताकि आने वाली पीढ़ियां इस कला का आनंद ले सकें।   

  1. Bishnupriya Dutt; Urmimala Sarkar Munsi (9 September 2010). Engendering Performance: Indian Women Performers in Search of an Identity. SAGE Publications. पपृ॰ 216–. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-321-0612-8.