याजपुर ओडिशा के तीन स्थल प्रख्यात हैं- भुवनेश्वर, याजपुर] तथा कोणार्क। पुराणों के अनुसार कालिका पुराण के अनुसार प्रथम पीठ 'औंड्र पीठ' है- "औंड्राख्यं प्रथमं पीठं द्वितीयं जाल शैलकम्।...औंड्रपीठं पश्चिमे तु तथैवोंड्रेश्वरी शिवाम्। कात्यायनीं जगन्नाथ मोड्रेशं च प्रपूजयेता॥"

यह औण्ड्रपीठ ही ओडिशा है तथा जगन्नाथ जी के प्रभु पुरुषोत्तम जगन्नाथ ही तंत्र चूड़ामणि के उल्लिखित भैरव (जगन्नाथ) हैं। याजपुर की विरजा देवी उत्कल की प्रधान देवी हैं जिनका वर्णन ब्रह्मपुराण में इस प्रकार मिलता है-

विरजे विरजा माता ब्रह्माणी संप्रतिष्ठिता। यस्याः संदर्शनात्मर्त्यः घुनात्या सप्तमं कुलम्॥

याजपुर को महत्त्वपूर्ण प्राचीन तीर्थस्थान माना जाता है। याजपुर मंदिर में द्विभुजी देवी विरजा तथा उनके वाहन सिंह की प्रतिमा है। कहते हैं, ब्रह्मा द्वारा यहाँ किए गए यज्ञ-कुण्ड से देवी का प्राकट्य हुआ। यह मंदिर वैतरणी नदी घाट से लगभग 2 किलोमीटर दूर प्राचीन गरुड़स्तंभ के पास है। यहाँ पर श्राद्ध-तर्पण आदि का विशेष महत्त्व है। इसे नाभि गयाक्षेत्र, चक्रक्षेत्र आदि भी कहते हैं।

ऐतिहासिकता संपादित करें

संपूर्ण ओडिशा (तत्कालीन उत्कल) भगवती का नाभि क्षेत्र कहा जाता है। उत्कल किसी नगर या गाँव का नहीं वरन् एक देश या राज्य का नाम है, जो विरजा क्षेत्र है- "वर्षाणां भारतं श्रेष्ठं देशानामुत्कलः स्मृतः। उत्कलेन समोदेशो देशों नाऽस्ति महीतले॥" 'विरजा' शब्द को 'क्षेत्र' शब्द के विशेषण के रूप में लेने पर समग्र उत्कल ही 'मलविमुक्त' है, जहाँ की आराध्या 'विमला' हैं तथा भैरव 'जगन्नाथ पुरुषोत्तम'। कुब्जिकातंत्र, ज्ञानार्णव तंत्रादि में भी इनका उल्लेख है तथा महाभारत के वनपर्व[6] में पाण्डवों के वनवास के दौरान वैतरणी स्थित विरजा देवी तीर्थ का उल्लेख है।