यमादा तोराजिरो (जन्म::23 अगस्त, 1866 - 13 फरवरी, 1957) एक जापानी व्यापारी और चाय मास्टर थे, जिन्हें जापानी-तुर्की संबंधों की नींव रखने वाला माना जाता है। [1] वह इस्लाम में धर्मांतरित होने वाले और मक्का में हज करने वाले पहले जापानी लोगों में से एक थे[उद्धरण चाहिए], और उन्होंने अपना नाम बदलकर अब्दुल हलील रख लिया, 1923 के बाद में इसे बदलकर यामादा सोयू (Japanese कर लिया।

वह 1892 में इस्तांबुल पहुंचे, जहां उन्होंने तुर्की फ्रिगेट एर्टुगरुल के डूबने के पीड़ितों के परिवारों को दान दिया। वे वहां 13 साल तक रहे, अंततः 1905 में जापान वापस चले गए। [2] यद्यपि वह इस्तांबुल में जापानी राजनीतिक या आर्थिक हितों को सुनिश्चित करने में सक्षम नहीं थे, लेकिन उनकी गतिविधि दोनों देशों के बीच संपर्क की तीव्रता की अवधि की शुरुआत थी। उन्होंने मानद वाणिज्यदूत के रूप में कार्य किया, तुर्कों को जापानी संस्कृति से परिचित कराने में मदद की तथा जापान लौटने के बाद तुर्की के बारे में कई पुस्तकें लिखीं।[उद्धरण चाहिए] उनके कार्य को सौहार्दपूर्ण जापान-तुर्की संबंधों का मूल आधार माना जाता है।

सूट पहने यामादा की तस्वीर

यह भी देखें

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  1. "125 Years Memory",125yearsmemory.com. Retrieved on 24 June 2020.
  2. Watari, Tsukiko (2017). 明治の男子は、星の数ほど夢を見た。 (Japanese में). Tokyo: Sangakusha. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-4-7825-3465-6.सीएस1 रखरखाव: नामालूम भाषा (link)