युवनाश्व अयोध्या के प्रतापी राजा कुलवाश्व के पुत्र थे। इनका विवाह राजा महापद्म की कन्या गौरी से हुआ था। युवनाश्व अपने आप में विशेष हैं। इन्होंने पुरुष होते हुए गर्भ धारण किया था।

जन्म संपादित करें

युवनाश्व का जन्म राजा कुलवाश्व की पत्नी सुपर्णा के गर्भ से हुआ था।

विवाह एवम् संतान संपादित करें

इनका विवाह राजा महापद्म की कन्या गौरी से हुआ था और इनके पुत्र मान्धाता हुए जो इनके गर्भ से ही उत्पन्न हुए थे।

गर्भ धारण की रोचक कथा संपादित करें

राजा युवनाश्व के विवाह के वर्षों बाद भी उन्हें संतान नहीं हुई। इस दुःख को उन्होंने महर्षि भृगु के पुत्र महर्षि च्यवन को बताया। महर्षि च्यवन ने पुत्र कामेष्टी यज्ञ द्वारा एक मटके में जल को अभिमंत्रित कर उसे हवन कुण्ड के पास रख दिया। कुछ समय बाद रात्रि हो गई। रात्रि होने के बाद सभी विश्राम करने लगे। इसके बाद राजा युवनाश्व को बहुत जोरदार प्यास लगी। उन्होंने जल के लिए बहुत पुकारा लेकिन सभी के गहरी निद्रा में होने के कारण कोई उन्हें नहीं सुन सका। इसके बाद युवनाश्व ने मटके में रखे अभिमंत्रित जल को पी लिया और सो गए। सुबह होने के पश्चात् महर्षि च्यवन ने जब मटके को खाली देखा तो उन्होंने सबसे पूछा। युवनाश्व की निद्रा खुलने के बाद उन्होंने बताया कि वो जल तो उन्होंने पी लिया है। इसके बाद च्यवन बोले कि अब उनके गर्भ से ही संतान उत्पन्न होगी। इसके बाद युवनाश्व को अपने में कुछ बदलाव होता दिखा। वे गर्भवती हो गए और प्रसव पीड़ा में चिल्लाने लगे। इसके बाद अश्विनी कुमारों का स्मरण किया गया। उन्होंने युवनाश्व की कोख को कमल की टहनी द्वारा चीर दिया और युवनाश्व के गर्भ से एक तेजस्वी पुत्र हुआ। उसके जन्म के बाद उसके दुग्ध की समस्या सामने आई। देवताओं के राजा इन्द्र ने कहा कि वे स्वयं उसकी माता की कमी पूरी करेंगे। इन्द्र ने अपनी तर्जनी उंगली बालक के मुख में डाल दी और उसी से ही दुग्ध पान कराया। इसी कारण उसका नाम मम धाता या मान्धाता पड़ा।

मृत्यु संपादित करें

युवनाश्व की मृत्यु अयोध्या में हुई और उनकी मृत्यु के बाद मान्धाता को गद्दी पर बैठाया गया।