रंगरूटी खेड़ा

भारत का गाँव

1914 प्रथम विश्वयुद्ध में स्वेच्छा से भर्ती होने वाले रंगरूटों को अंग्रेजों ने प्लाॅट अलाॅट कर गांव बसाया था। गांव का नाम भी रंगरूटी खेड़ा रखा गया। अब इस गांव में सभी सुविधा उपलब्ध हैं। संयुक्त हरियाणा-पंजाब के सैनिक स्वेच्छा से प्रथम विश्वयुद्ध की लड़ाई में कूदे थे। जब ब्रिटिश हुकूमत लोगों को जबरदस्ती फौज में भर्ती कर रही थी। इसी दौरान करनाल, रोहतक और अम्बाला जिलों के सैकड़ों सैनिक स्वेच्छा से भर्ती हुए थे। देश भक्ति की भावना को देखते हुए ब्रिटिश हुकुमत ने 1914 के प्रथम विश्वयुद्ध में भर्ती हुए उन जवानों को असंध के गांव खांडाखेड़ी के रकबा में जमीन अलॉट की। जहां सैनिकों के परिवारों ने 1920 में अपना एक अलग गांव रंगरूटी खेड़ा बसाया। रंगरूटीखेड़ा जिला मुख्यालय से 40 किलोमीटर और असंध तहसील से 6 किमी की दूरी करनाल रोड से कुछ दूरी पर स्थित है। यह ऐसा गांव है, जिसको सेना के जवानों ने बसाया है।

1914 के प्रथम विश्वयुद्ध में हरियाणा-पंजाब के रंगरूटों को अंग्रेजों ने अलॉट किए थे प्लाट, 1920 में बसा गांव रंगरूटी खेड़ा

रंगरूटों के गांव के गौत्र की नहीं होती आपस में शादी

सौ साल का होने वाला है गांव: गांव के बुजुर्गों का कहना है कि इस गांव को बसे 100 साल होने जा रहे हैं। 36 बिरादरी के इस गांव की विशेषता आपसी भाईचारा है। गांव की एक खास बात यह है कि यहां पर लगभग 43 गांवों से लोग आकर बसे हुए हैं।

भाईचारा है मिसाल

गांव के सबसे बुजुर्ग 95 वर्षीय फते सिंह व 85 वर्षीय रूपचंद, रणबीर चौहान, आजाद सिंह, धर्मबीर सिंह, दिलभाग, परसराम पूर्व सरंपच, सत्यनाराण शर्मा ने बताया कि गांव में ज्यादा जाट जाति के रंगरूट थे। वहीं जिस गौत्र के रंगरूटों को गांव में जमीन अलॉट हुई थी। तब एक फैसला लिया गया था कि जो गौत्र गांव में हैं। इन गौत्रों के गांव में कोई भी रिश्ता नहीं होगा। वहीं इन गौत्रों का सदा के लिए आपसी भाईचारा रहेगा। बुजुर्ग बताते हैं कि गांव भाईचारे की वही मिसाल बनाए हुए है। किसी गौत्र में ना तो रिश्ता हुआ है और ना ही होगा।

गांव की विशेषताएं

1952 में 5वीं कक्षा तक का राजकीय स्कूल खोला गया, जिसे 2007 में अपग्रेड कर 8वीं तक कर दिया। 2007 में ही इसे निर्मल गांव का दर्जा मिला। गांव में 2 आंगनबाड़ी केंद्र, पंचायत भवन व एक पशु अस्पताल है। गांव में 1992 में शिव मंदिर बनाया गया। इसके बाद 2010 में पूरे गांव ने रविदास मंदिर बना कर भाईचारे की मिसाल पेश की। गांव छोटा होने के कारण लगभग 70 लोग सरकारी नौकरी में भी हैं। ग्रामीणों का कहना है कि गांव से लगभग हर दूसरे परिवार से एक सदस्य विदेश में रह रहा है। गांव में वन विभाग का रेंज का कार्यालय भी है।