रतनूं
रतनूं (आईएएसटी : Ratanūṃ; अथवा रतनुं, रत्नू) राजस्थान और गुजरात में चारणों का एक प्रमुख वंश एंव गोत्र है। [1]
उद्भव
संपादित करेंरतनूं चारणों की उत्पत्ति सिंढायच चारणों के समकालीन मानी जाती है, लगभग 8वीं से 9वीं शताब्दी ई में। वे चारण रतनजी के वंशज हैं जिन्होंने बाल्यकाल में रावल देवराज की जान बचाई थी। रावल देवराज एक भाटी राजपूत थे जिन्होंने बाद में देरावर दुर्ग की स्थापना की। [2] [3] देरावर की स्थापना के बाद रावल देवराज ने अपने बचपन के मित्र रतनजी को बुलाया और उन्हें भाटी वंश के प्रोलपात-पाटवी के पद से सम्मानित किया। [4] इसके बाद इनके वंशज, रतनूं चारण जैसलमेर और पूगल के राज्यों में प्रोलपात के पद पर स्थापित रहे। [5] [6]
इतिहास
संपादित करेंरतनूंओं ने क्षेत्र के इतिहास, प्रशासन और राजनीति में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। राजस्थान में रतनूं व्यापक सांसण जागीरों के शासक रहे। कई रतनूं प्रभावशाली कवि, लेखक और इतिहासकार हुए। उदाहरणतया 19-20 वीं सदी मेँ, सीकर के रतनूं परिवार के सदस्य सीकर, ईडर, किशनगढ़ और झालावाड़ रियासतों के दीवान (प्रधान मंत्री) थे । [7] [8]
उल्लेखनीय लोग
संपादित करेंसंदर्भ
संपादित करें- ↑ Ellinwood, DeWitt C. (2005). Between Two Worlds: A Rajput Officer in the Indian Army, 1905-21 : Based on the Diary of Amar Singh of Jaipur (अंग्रेज़ी में). University Press of America. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-7618-3113-6.
The Ratnus were one of the Charan clans (Gahlot, Sukhvir Singh, Castes and Tribes of Rajasthan (Jodhpur : Jain Brothers, 1989), 132.
- ↑ कविया, संपादक, मगराज उज्ज्वल ; प्रस्तावना, शक्तिदान. "उदयराज उज्ज्वल ग्रन्थावली". 東京外国語大学附属図書館OPAC. अभिगमन तिथि 2022-08-24.
चारणों की 120 प्रमुख शाखाओं में अधिकांशतः प्रसिद्ध पूर्वपुरुषों के नामों से ही प्रवर्तित हैं, यथा – आढा, सांदू आशिया, कविया, खिड़िया, रतनू, देथा, वणसूर, लाळस, संढायच, देभल, रोहड़िया, कनिया इत्यादि ।
- ↑ Singh, Hardyal (1990). The castes of Marwar, being census report of 1891 (English में). Jodhpur: Books Treasure. पपृ॰ xi. OCLC 977890782.सीएस1 रखरखाव: नामालूम भाषा (link)
- ↑ Goswami, Sambodh (2007). Female Infanticide and Child Marriage (अंग्रेज़ी में). Rawat Publications. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-316-0112-9.
The Sodas were the pol - paats of the Maharana of Mewar, the Rohariyas were the pol - paats of the Rathores of Marwar, Bikaner and Kishangarh and of the Kachwahas of Jaipur and Alwar, the Adas were the pol - paats of the Deora sect of the Chauhan clan of Sirohi, and the Ratnus were the pol - paats of the Bhatis of Jaisalmer.
- ↑ Kothiyal, Tanuja (2016-03-14). Nomadic Narratives: A History of Mobility and Identity in the Great Indian Desert (अंग्रेज़ी में). Cambridge University Press. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-1-316-67389-8.
After Devraj grew up and gained control of Jaisalmer, he recalled Ratnu from Sorath and made him his Barhat. The descendants of Ratnu are the Charans to the Bhatis.
- ↑ Sardeshpande, S. C. (1989). Pugal, the Desert Bastion (अंग्रेज़ी में). Lancer. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-7062-060-0.
Rawal Devraj, the great Bhati king who founded Derawar and from whom Jaisalmer Bhatis derived their title Rawal, was also the ancestor of Pugal Bhatis . He was the beneficiary of a great boyhood friend of his, Ratan, who stood by Devraj in his initial lean days of struggle . Devraj in his sunnier days called Ratan, showered gifts on him and made him Polbarat .
- ↑ Rudolph, Susanne Hoeber; Rudolph, Lloyd I. (1984). Essays on Rajputana: Reflections on History, Culture, and Administration (अंग्रेज़ी में). Concept Publishing Company.
At the outer edge of qualification norms is standing in one of the respectable (usually twice-born) and traditionally literate castes or communities of Rajputana-such as Rajputs, Oswals, Maheshwaris, Kayasths, Charans, Brahmans, and Muslims....the bureaucratic lineages in and out of power, whether from within (mutsaddi, Rajput, Muslim, Charan etc.)...Prominent Charan Dewans or senior court servants included Kaviraj (court poet) Shyamaldas at Udaipur and Kaviraj Murardan at Jodhpur.
- ↑ Śekhāvata, Raghunāthasiṃha (1998). Shekhawati Pradesh ka rajnitik itihas. Ṭhā. Mallūsiṃha Smr̥ti Granthāgāra.
दीवानजी का बास तेजमालजी नामक रत्नू चारण को सीकर ठिकाने की ओर से 1500 बीघा भूमि चंदपुरा गांव की सीमा में दी । तेजमालजी के तीन पुत्र रामनाथ, बद्रीदान व स्योबक्सजी बताये जाते हैं । रामनाथ किशनगढ़ राज्य के दीवान बने, स्योबक्स जी झालावाड़ व बद्रीदान माधोसिंह सीकर के दीवान थे । बद्रीदान को माधोसिंह ने बोदलासी ( नेछवा के पास ) की छः हजार बीघा भूमि प्रदान की । इनके पुत्र कुमेरदानजी सीकर ठिकाने में दीवान थे । चंदपुरा आज दीवानजी का बास के नाम से जाना जाता है । बद्रीदान के वंशज दीवानजी का बास व बोदलासी दोनों जगह रहते हैं ।