रत्नागिरि हिन्दू सभा की स्थापना १९२४ में हिन्दुओं को संगठित करने तथा उनमें एकता का भाव जगाने के लिए किया गया था ताकि हिन्दु किसी प्रकार का अन्यायपूर्ण 'आक्रमण' का प्रतिकार कर सकें और अपने सांस्कृतिक, आर्थिक एवं धार्मिक अधिकारों की रक्षा कर सकें।

इस सभा ने बहुत से लोगों को पुनः हिन्दू धर्म में धर्मान्तरित किया। किन्तु इनके हिन्दू धर्म में वापसी के कार्यक्रम का ईसाई, मुसलमान और पुरातनपन्थी हिन्दू विरोध करते थे। [1]

सन्दर्भ संपादित करें

  1. Jai Narain Sharma (1 January 2008). Encyclopaedia of eminent thinkers Archived 2014-07-11 at the वेबैक मशीन. Concept Publishing Company. pp. 22–. ISBN 978-81-8069-492-9. Retrieved 4 March 2012.