रमेश कुंतल मेघ
रमेश कुंतल मेघ (जन्म: १९३१ मृत्यु : 2023) हिंदी साहित्य के वरिष्ठ साहित्यकार व समालोचक हैं। इन्होंंने प्रगतिवादी आलोचना का क्षेत्र विस्तार किया। मेघ ने आलोचना में अंतरानुशासन को विशेष महत्व दिया है। आधुनिकता, सौंदर्यशास्त्र और समाजशास्त्र उनके अध्ययन के प्रमुख क्षेत्र हैं। विश्वमिथकसरित्सागर इनकी महत्वपूर्ण कृति है इस पर इन्हें 2017 का साहित्य अकादमी पुरस्कार भी मिला।
आलोचनात्मक पद्धति
संपादित करेंअपने आलोचनात्मक कर्म का आरंभ जयशंकर प्रसाद और उनकी कामायनी से करने वाले मेघ ने मध्यकालीन साहित्य के सौंदर्यशास्त्रीय विश्लेषण में विशेष योगदान दिया। सौंदर्य दृष्टि और सामाजिक भूमिका उनकी आलोचना के बीज शब्द हैं जिनके माध्यम से वे रचना का समग्र आंकलन करते हैं।[1]
पुरस्कार
संपादित करेंरमेश कुंतल मेघ को २०१७ में उनकी साहित्यिक समालोचना विश्व मिथक सरित सागर के लिए हिंदी का साहित्य अकादमी पुरस्कार प्रदान किया गया।[2]
प्रमुख कृतियाँ
संपादित करें- मिथक और स्वप्न[3]
- कामायनी की मनस्सौंदर्य सामाजिक भूमिका (१९६७)
- तुलसी: आधुनिक वातायन से (१९६७)[4]
- आधुनिकता बोध और आधुनिकीकरण (१९६९)
- मध्ययुगीन रस दर्शन और समकालीन सौन्दर्य बोध
- क्योंकि समय एक शब्द है (१९७५)[5]
- कला शास्त्र और मध्ययुगीन भाषिकी क्रांतियां
- सौन्दर्य-मूल्य और मूल्यांकन
- अथातो सौन्दर्य जिज्ञासा (१९७७)[6]
- साक्षी है सौन्दर्य प्राश्निक (१९८०)
- वाग्मी हो लो!
- मन खंजन किनके? (१९८५)
- कामायनी पर नई किताब
- खिड़कियों पर आकाशदीप
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ हिंदी आलोचना का विकास. इलाहाबाद: सुमित प्रकाशन. २००४. पृ॰ १९२.
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in first1 (मदद) - ↑ "साहित्य अकादमी पुरस्कार 2017: हिंदी में रमेश कुंतल मेघ और उर्दू में बेग एहसास को मिलेगा अवॉर्ड". http://abpnews.abplive.in. मूल से 28 दिसंबर 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 28 दिसम्बर 2017.
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में बाहरी कड़ी (मदद) - ↑ रमेश कुंतल मेघ (September 2007). मिथक और स्वप्न. Rajkamal Prakashan Pvt Ltd. पपृ॰ 229–. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-8361-084-1.
- ↑ रमेश कुंतल मेघ (September 2007). तुलसी : आधुनिक वातायन से. Rajkamal Prakashan Pvt Ltd. पपृ॰ 13–. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-8361-083-4.
- ↑ रमेश कुंतल मेघ (2007). क्योंकि समय एक शब्द है. Rajkamal Prakashan Pvt Ltd. पपृ॰ 4–. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-8031-171-0.
- ↑ रमेश कुंतल मेघ. अथातो सौंदर्य जिज्ञासा. Vani Prakashan. पपृ॰ 32–.