रविशङ्कर महाराज

भारतीय कार्यकर्ता और सामाजिक कार्यकर्ता

रविशङ्कर महाराज गुजरात राज्य के खेडा जिले के समाजसेवी थे। उन्होंने वात्रक नदी के आसपास के गाँवो में लोगों का जीवन सुधारने का, डाकुओं को पुनः मुख्यधारा में लाने का, अन्धश्रद्धा निवारण आदि कार्य किये थे। रविशङ्कर महाराज ने भारत के स्वतन्त्रता सङ्ग्राम मे भाग लिया था। वे आर्य समाज से प्रभावित हुए थे। वो सन १९१५ मे महात्मा गांधी से मिले थे।

रविशङ्कर महाराज
जन्म रविशङ्कर व्यास
25 फ़रवरी 1884
राधू गाँव, खेड़ा जिला, गुजरात, भारत
मौत जुलाई 1, 1984(1984-07-01) (उम्र 100)
बोरसद, गुजरात, भारत
राष्ट्रीयता भारतीय
पेशा समाजसेवक
जीवनसाथी सुराजबा
माता-पिता पीताम्बर शिवराम व्यास, नाथी बा
हस्ताक्षर

जीवन संपादित करें

रविशङ्कर व्यास का जन्म २५ फरवरी १८८४ को, राधू गांव में (हालमें भारत के गुजरात राज्य के खेड़ा जिले में) महाशिवरात्रि के दिन, पिताम्बर शिवराम व्यास एवं नाथी बा के एक हिन्दु किसान परिवार में हुआ था। उनके परिवार का मूल महेमदावाद के पास सरसवनी गांव था। बालक रविशङ्कर ने अपने माता-पिता को कृषि कार्य में मदद करने के लिए छठ्ठी कक्षा के बाद पढाइ छोड़ दी थी।[1][2] उन्होंने सूरजबा से विवाह किया। १९ वर्ष की उम्र में उनके पिता की मृत्यु हो गई और २२ वर्ष की उम्र में उनकी मां की मृत्यु हो गई थी।[3]

वह आर्य समाज से प्रभावित थे। वह १९१५ में महात्मा गांधी से मिले और उनकी आजादी और सामाजिक सुधार के कार्यो में सम्मिलित हो गए। वह १९२० और १९३० के दशक में गुजरात में राष्ट्रवादी विद्रोहियों के मुख्य आयोजक, दरबार गोपालदास देसाई, नरहरि परीख और मोहनलाल पंड्या के साथ गांधी और सरदार वल्लभभाई पटेल के सबसे शुरुआती और निकटतम सहयोगियों में से एक थे। उन्होंने तटीय एवं केंद्रीय गुजरात के बारैया और पाटनवाडिया जातियों के पुनर्वास के लिए सालों तक काम किया था।[4][5] उन्होंने १९२० में सुनव गांव में राष्ट्रीय शाला (नेशनल स्कूल) की स्थापना की। उन्होंने पत्नी की इच्छा के विरुद्ध पैतृक संपत्ति पर अपने अधिकार छोड़े और १९२१ में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में सम्मिलित हो गए। उन्होंने १९२३ में बोरसद सत्याग्रह में भाग लिया और हदिया टेक्ष का विरोध किया। उन्होंने १९२६ में बारडोली सत्याग्रह में भाग लिया और उन्हे छह महीने तक ब्रिटिश प्राधिकरण द्वारा कैद किया गया। उन्होंने १९२७ में बाढ़ के राहत कार्यों में भाग लिया जिसमें उन्होंने खाति प्राप्त की। वह १९३० में नमक सत्याग्रह के लिए दाण्डि कुच के लिए गांधी जी से जुड़ गए और दो साल तक कैद में रहें। १९४२ में उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन में भी भाग लिया और अहमदाबाद में सांप्रदायिक हिंसा को शांत करने का भी प्रयत्न किया।

१९४७ में भारत की आजादी के बाद, उन्होंने स्वयं को सामाजिक कार्य के लिए समर्पित किया। वह भूदान आंदोलन में विनोबा भावे से जुड़ गए और १९५५ और १९५८ के बीच उन्होने ६००० किलोमीटर की यात्रा की। १९६० में, उन्होंने सर्वोदय आंदोलन का आयोजन और समर्थन किया। 1 मई १९६० को जब गुजरात राज्य की स्थापन हुई तब उन्होंने गुजरात राज्य का उद्घाटन किया था। उन्होंने १९७५ में कोंग्रेस की सरकार द्वारा डाले गए आपातकाल का भी विरोध किया। उनकी मृत्यु तक, यह एक परंपरा रही कि गुजरात के हर नए नियुक्त मुख्यमंत्री कार्यालय की शपथ लेने के बाद उन्हें आशीर्वाद के लिए जाते हैं। १ जुलाई १९८४ को गुजरात के बोरसद में उनकी मृत्यु हो गई। उनके लिए समर्पित स्मारक बोचसान के अध्यापन मंदिर, वल्लभ विद्यालय में स्थित है।

कार्य संपादित करें

उन्होने शिक्षण, ग्राम्य पुन:निर्माण और कोलकाता के बारे मे लिखा है।

ख्याति संपादित करें

भारत सरकार ने १९८४ में उनके सम्मान में डाक टिकट जारी किया। सामाजिक कार्य के लिए 1 लाख रुपये के लायक, रविशंकर महाराज पुरस्कार, गुजरात सरकार के सामाजिक न्याय विभाग द्वारा, उनके सम्मान में स्थापित किया गया है।

साहित्य में संपादित करें

झवेरचंद मेघाणी ने जनजातियों के बीच अपने सामाजिक कार्य के दौरान रविशङ्कर महाराज के साथ अपने अनुभवों के आधार पर "माणसाइ ना दिवा" नामक पुस्तक लिखा है। पन्नालाल पटेल ने उनके ऊपर एक जीवनी उपन्यास 'जेणे जिवी जाण्यु (१९८४)' भी लिखा है जो दोनों ग्रंथ गुजराती भाषा में हैं।।

सन्दर्भ संपादित करें

  1. Lal (1992). Encyclopaedia of Indian Literature: Sasay to Zorgot. Sahitya Akademi. पपृ॰ 4607–4608. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-260-1221-3. मूल से 23 जुलाई 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 28 मई 2018.
  2. M. V. Kamath (1996). Milkman from Anand: the story of Verghese Kurien. Konark Publishers. पृ॰ 24.
  3. "પ.પૂ.રવિશંકર મહારાજ". WebGurjari (गुजराती में). 2014-05-01. मूल से 11 मई 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2016-12-24.
  4. David Hardiman (1981). Peasant nationalists of Gujarat: Kheda District, 1917-1934. Oxford University Press. पपृ॰ 175, 272–273.
  5. Thomas Weber (1996). Gandhi's Peace Army: The Shanti Sena and Unarmed Peacekeeping. Syracuse University Press. पपृ॰ 74, 108, 125. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-8156-2684-8.