आचार्य रविषेण (सातवीं शती) प्रसिद्ध जैन ग्रंथ 'पद्मपुराण' के रचयिता हैं। यह ग्रंथ विमलसूरि रचित प्राकृत भाषा के 'पउम चरियं' का पल्लवित अनुवाद माना जाता है।

समय एवं रचना

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आचार्य रविषेण रचित पद्मपुराण (प्रकाशित संस्करण की झलक)

रविषेणाचार्य का समय निःसंदिग्ध रूप से सातवीं शताब्दी है। उन्होंने स्वयं अपने सुप्रसिद्ध ग्रंथ पद्मपुराण अथवा पद्म चरित के अंत में ग्रंथ के संपन्न होने के समय का उल्लेख करते हुए लिखा है कि जिनसूर्य श्री वर्धमान जिनेन्द्र के मोक्ष के बाद एक हजार दो सौ तीन वर्ष छह माह बीत जाने पर श्री पद्ममुनि का यह चरित्र लिखा गया है।[1] इस प्रकार इस ग्रंथ की पूर्णता विक्रम संवत् ७३४ अर्थात् ६७७ ई० में सिद्ध होती है।

इन्हें भी देखें

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  1. पद्मपुराण, आचार्य रविषेण, तृतीय भाग, संपादन-अनुवाद- डॉ० पन्नालाल जैन साहित्याचार्य, भारतीय ज्ञानपीठ, नयी दिल्ली, सोलहवाँ संस्करण-2017, पृष्ठ-425 (१२३-१८२).