रांवल गांव राजस्थान राज्य के सवाई माधोपुर जिले की सवाई माधोपुर तहसील में मोजूद हैं जो जिला मुख्यालय से 16 किलो मीटर दूर हैं जिसमे मीना जनजाति का सिर्रा गोत्र मुख्य रूप से निवास करता हैं ! ग्राम पंचायत में रावल , खवा , खंडोज , गोठडा गांव शामिल हैं रांवल ग्राम पंचायत की कुल जनसंख्या 2011 की जनगणना के अनुसार 2769 हैं ग्राम पंचायत रांवल में पपलाज ( सिर्रा माता ) का मंदिर और श्री हनुमान जी ( बम्बुल्या बालाजी ) का मंदिर भी मुख्य हैं और गांव एक सरकारी उच्च माध्यमिक विद्यालय भी हैं एंव बैंक ऑफ बड़ोदा भी शामिल हैं गांव के पास में छारोदा , उलियाना , कुंडेरा आदि हैं


गांव में विभिन्न समयो पर कई प्रकार की धार्मिक गतिविधिया होती रहती हैं।

  1. फेरी लगाना व हरि-कीर्तन गांव का एक नियमित कार्यक्रम हैं। गांव के लोग रोजाना प्रात:काल में जल्दी उठकर के पुरे गांव में फेरी लगाते हैं, इसकी शुरुवात हनुमानजी के मंदिर से होती हैं। दूसरे कई गाँवो और शहरो में यह कार्यक्रम किन्ही विशेष अवसरों पर ही होता हैं, पर रांवल में यह लोगो की धार्मिक सक्रियता के कारण नियमित तौर पर दैनिक होता हैं। गांव के कई लोग फेरी वालो की आवाज़ सुनकर उठते हैं और अपने कामकाज को जल्दी ही शुरू कर पाते हैं।
  2. भजन भी गांव में नियमित तौर पर होते हैं ,ये सायंकाल के समय हनुमानजी के मंदिर के प्रांगण में होते हैं। इनकी ख़ास बात यह हैं की इनमे बच्चे भाग लेते हैं। शाम होते ही पुरे गांव के बच्चे हनुमानजी के मंदिर में अगरबत्ती या दीपक जलाने आते हैं और भजन होने के बाद जाते हैं। इससे पता चलता हैं की गांव में बच्चो को एक अच्छा संस्कार बचपन से ही सीखा दिया जाता हैं।
  3. कृष्ण जन्मोत्सव हर साल कृष्ण जन्माष्टमी पर गांव के मंदिरो में आयोजित किया जाता हैं। लोग व्रत करते हैं। इस दौरान मंदिरो में रात को भजन-कीर्तन होते हैं। प्रसाद बटता हैं और तब लोग व्रत खोलते हैं। मंदिरो में कृष्ण जन्म की झाकी बनायी जाती हैं। कभी कभार मटकी फोड़ने का कार्यक्रम बच्चो के लिए रखा जाता हैं।
  4. ठाकुर जी निकालना यह कार्यक्रम भी सालाना नियमित रूप से होता हैं। इसमें मंदिरो से भगवान की मूर्तियों की झाकी पुरे धार्मिक हर्षोल्लास से निकाली जाती हैं, लोग भजन गाते हुए आगे चलते हैं, शंख बजाया जाता हैं। ठाकुरजीयो को किसी सार्वजनिक जलाशय पर ले जाय सामूहिक जाता हैं। पुरे गांव के स्त्री,पुरुष,बच्चे सभी इसमें भाग लेते हैं। लोग इस दौरान व्रत भी रखते हैं।
  5. गणेश चतुर्थी पर भी गांव में एक अलग ही उत्सुक माहौल रहता हैं। रणथम्भौर दुर्ग में स्थित त्रिनेत्र गणेशजी के मंदिर में मेला लगता हैं। पूर्वी राजस्थान के विभिन्न हिस्सों से लोग पैदल यात्रा करते हुए वहां पहुँचते हैं, पैदल यात्रियों की सेवा करने के लिए गांव में शिविर लगाया जाता हैं, उनके रात्रि विश्राम, पेयजल,खाने और चाय-नाश्ते की व्यवस्था ग्रामीणो के सहयोग से की जाते है। गांव के लोग चतुर्थी से एक दिन पहले गणेशजी की झांकी पुरे गांव से होकर निकालते हैं , जिसको रणथम्भौर ले जाया जाता हैं और वहां स्थित सरोवरों में विसर्जित किया जाता हैं। गांव के लोग भी झांकी के साथ नाचते-गाते पैदल यात्रा करते हैं।
  6. होलिका दहन गांव में हर साल होली के दिन होळी बळया नामक जगह ,जो की गांव के बीचोबीच हैं ,पर होता हैं। इसके लिए कई दिनों पूर्व होली का डाण्डा गांव के पंच-पटेलों द्वारा गाढ़ दिया जाता हैं। इसके बाद गांव के लोग वहां पर दहन की सामग्री इकट्ठी करते हैं और फिर होली के दिन शाम के समय मुहूर्त के हिसाब से दहन किया जाता हैं। लोग इस आग में गेहूं की बालियों को सेककर खाते हैं, माना जाता हैं की उनको खाने से मसूड़ों में दर्द की समस्या नही होती हैं। इस दौरान काफी लोग वहां पर इकट्टा हो जाते हैं।रात को युवा वही इकट्टा होकर कबड्डी खेलते हैं। दूसरे दिन धुलंडी का होता हैं। उस दिन पुरे गांव का माहौल रंगमय रहता हैं।
  7. गोवर्धन पूजा ऐसा कार्यक्रम हैं जिसे लोग सामूहिक तौर पर मनाते हैं। गांव की महिलाये सुबह जल्दी ही मंदिर के आगे गोबर इकट्टा कर देती हैं। शाम को गोवर्धन बनाया जाता हैं और प्रत्येक घर का कोई न कोई आदमी पूजन के लिए आता हैं। दूसरे लोग भी वहां इकट्टा होकर पटाखे चलाते हैं।