राइट टू रिजेक्ट का अर्थ है चुनाव लड़ने वाले सभी उम्मीदवारों को ख़ारिज करने का अधिकार।

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने 26 सितम्बर 2013 को एक ऐतिहासिक फ़ैसला देते हुए देश के मतदाताओं को यह अधिकार दे दिया है कि वे अब मतदान के दौरान सभी प्रत्याशियों को खारिज कर सकेंगे। भारत की शीर्षस्थ अदालत ने चुनाव आयोग को निर्देश दिया कि वह इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) में 'इनमें से कोई नहीं' के विकल्प का एक बटन उपलब्ध कराए।

आदेश में यह भी कहा गया कि यह व्यवस्था 2013 में होने वाले विधानसभा चुनाव से ही शुरू कर दी जाए।

यह फैसला मुख्य न्यायाधीश पी. सतशिवम की अध्यक्षता वाली पीठ ने एक गैर सरकारी संगठन पीयूसीएल की ओर से दाखिल जनहित याचिका पर सुनाया। याचिका में मांग की गई थी कि वोटिंग मशीन ईवीएम में एक बटन उपलब्ध कराया जाए, जिसमें कि मतदाता के पास 'उपरोक्त में कोई नहीं' पर मुहर लगाने का अधिकार हो।[1][2]

हालांकि चुनाव आयोग ने यह स्पष्ट किया है कि अगर नोटा (नन ऑफ द अबव-इनमें से कोई नहीं) बटन दबाने वाले मत चुनाव लड़ रहे प्रत्याशियों से भी ज्यादा पडे़गे तो भी उसका चुनाव परिणाम पर कोई असर नहीं होगा और अधिक मत हासिल करने वाला उम्मीदवार ही विजय घोषित किया जाएगा।[3],[4]

  1. "राइट टू रिजेक्ट' पर अब सुप्रीम कोर्ट ने लगाई मुहर". हिन्दुस्तान. 7-09-13 11:10 AM. मूल से 3 जनवरी 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 6-10-13. |accessdate=, |date= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
  2. "मतदाताओं को मिला 'राइट टू रिजेक्ट'". बी बी सी हिन्दी. 27 सितम्बर 2013. मूल से 8 अक्तूबर 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 6 अक्टूबर 2013.
  3. "ईवीएम में नोटा की व्यवस्था से परिणाम पर कोई असर नहीं". मूल से 29 अक्तूबर 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 27 अक्तूबर 2013.
  4. "चुनाव आयोग का 'नोटा' पर स्‍पष्‍टीकरण". चुनाव आयोग. 28 अक्टूबर 2013. मूल से 3 जनवरी 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 29 अक्तूबर 2013.