लच्छाशाख (Lachchasakh) राग हिंदुस्तानी संगीत में एक मिश्र राग है जो बिलावल थाट से लिया गया है। इस राग में सांगत और शुद्ध धूँड ध्वनि समावेश होते हैं। इसकी आरोहण सुरों की क्रमिक पकड़ में धूड़, ग, म रे, प ध नि से होती है। इसकी अवरोहण धूड़, प, ध नि से निचले स्वरों की क्रमिक पकड़ में होती है। इस राग में शुद्ध ग और कुछ मामूली अंतर से तीव्र माध्यम (म) भी प्रयुक्त होता है।

लच्छाशाख राग का विकास बिलावल थाट पर आधारित होता है लेकिन इसमें गंभीर वाद्य बांसुरी या सारंगी और उसके अलावा तबला या पखावज आदि तबलावाद्य का उपयोग किया जाता है। इस राग को साधारणतया संध्या काल और रात्रि काल में गाया जाता है।

लच्छाशाख राग के विभिन्न जाति होती हैं, जिनमें शुद्ध लच्छाशाख, तीव्र माध्यम लच्छाशाख और शुद्ध लच्छाशाख विवादी शामिल होते हैं।

शुद्ध लच्छाशाख जाति में, सांगत सुध-ध्वनि के अलावा माध्यम और पंचम स्वर भी शुद्ध होते हैं। तीव्र माध्यम लच्छाशाख जाति में, माध्यम स्वर को तीव्र किया जाता है जो कि एक विशेष शोभा देता है। इस जाति में रीढ़ से उठती धूड़ स्वर और मध्य अवस्था की माध्यम तीव्र माध्यम पर बहुत कुछ निर्भर करता है।

शुद्ध लच्छाशाख विवादी जाति में, माध्यम स्वर को कुछ हद तक कम शुद्ध बनाया जाता है। यह विवादी स्वर राग के आने जाने वाले स्वरों के संबंध में उत्पन्न होता है जो कि कुछ वाद्य संगतियों में नज़र आता है।

लच्छाशाख राग का उद्दंड उपयोग भावपूर्ण गीतों में होता है। इस राग को कुछ प्रसिद्ध गायक और संगीतकार जैसे कि उस्ताद अमजद अली खान, पंडित भीमसेन जोशी, उम्मेद हुसैन ने प्रयोग में लाया हैं।

लच्छाशाख राग हिंदुस्तानी संगीत के विशेष रागों में से एक है जो शुद्ध माध्यम तीव्र निषाद से मिलकर बनता है। इस राग के विकास में मूलतः उत्तर भारतीय शास्त्रीय संगीत का अहम योगदान है।

लच्छाशाख राग के विभिन्न गतिविधियाँ और उनके विविध वाद्य उपकरण इस राग को एक अनुभव से भरपूर बनाते हैं। इस राग में दर्शकों के आंखों में दराज बंद कर देने वाला एक उदात्त भाव छिपा होता है जो संगीत श्रद्धेयों को मग्न कर देता है।

लच्छाशाख राग का विकास और संगीत दुनिया में इसकी उपयोगिता को ध्यान में रखते हुए, इसे आधुनिक संगीत के साथ जोड़कर नए रूपों में उपयोग किया जा रहा है। इस राग के बच्चों और इसके अनुयायियों की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है।