हिंदू विधि के अनुसार राजासत्करण (escheat) उस अवस्था में होता है जब वारिस न होने के कारण संपत्ति राज्य की हो जाती है। जहाँ राज राजसात्करण के अनुसार किसी संपत्ति का दावा करता है, वहाँ यह सिद्ध करने का भार राज्य पर आ पड़ता है कि अंतिम स्वामी मरते समय कोई वारिस नहीं छोड़ गया था।

राजासत्करण: एक प्रथाविरोधी प्रक्रिया।

इस संबंध में मनु की व्यवस्था यह है कि जहाँ कहीं भी वारिस नहीं होगा वहाँ संपत्ति राज्य के अधिकार में चली जाएगी। परंतु यह नियम किसी ब्राह्मण की संपत्ति पर लागू नहीं होगा। इस निदेश के प्रसंग में कलेक्टर ऑव मसूलीपत्तम बनाम कवेली वेंकट 1860 (8 मूर्स इंडियन अपील्स 500) का मामला उल्लेखनीय है, जहाँ इस निदेश को मान्यता नहीं दी गई। इसमें ब्राह्मण जाति के एक ऐसे हिंदू की संपत्ति के राजसात्करण के रूप में राज्य द्वारा लिए जाने के अधिकर के बारे में आपत्ति की गई जो मरते समय अपना कोई वारिस नहीं छोड़ गया था। इस संबंध में यह व्यवस्था दी गई थी कि ब्राह्मण जाति के किसी हिंदू की मृत्यु बिना वारिस के होती है तो उसकी संपदा सम्राट् के अधिकार में चली जाएगी। मिताक्षरा के अध्याय 2, धारा 8 और अनुच्छेद 5 मे राजसात्करण की विधि दी गई है। इस बारे में माननीय न्यायाधिपतियों का यह मत था कि मिताक्षरा द्वारा उद्धृत नारद के वाक्यसमूह का उस धारा में होना, जिसमें मनु के प्रतिषेध का उद्धरण दिया हुआ है, यह बताता है कि इस विधि का कठोरतम रूप क्या था अर्थात्‌ राजा को संपत्ति लेनी तो है परंतु इस कर्तव्य के साथ, जिसकी वह निष्पाप होकर अवहेलना नहीं कर सकेगा, लेनी है कि वह उस संपत्ति का अपने विवेक से उस प्रकार के ब्राह्मणों के बीच निपटारा कर देगा जिनका पिछले पाठों में प्रस्ताव किया गया है। यदि ऐसी स्थिति है तो न्यायाधिपतियों को यह प्रतीत होता है कि हिंदू विधि के अनुसार बिना वारिस के मरने वाले किसी ब्राह्मण की संपत्ति पर राजसात्करण द्वारा राजा का स्वत्व किसी ऐसे दावेदार के स्वत्व पर अभिभावी होना चाहिए जो और अच्छा स्वत्व सिद्ध नहीं कर सकता।

जब राजसात्करण द्वारा कोई संपदा ली जाती है तो उसके अधीन संपदा पर पड़नेवाले इस प्रकार के न्यास और प्रभार भी आ जाते हैं जैसे विधवाओं का पोषण और विधवा द्वारा वैधिक आवश्यकता के लिए किए गए बंधक। उदाहरण के लिए-'क' किसी हिंदू विधवा को धन देता है तथा उस विधवा के स्वर्गीय पति की अचल संपदा पर बंधक द्वारा इसको प्रतिभूत करता है। इस प्रकार दिया गया धन उस विधवा द्वारा उन प्रयोजनों पर लगाया जाता है, जिनके लिए हिंदू विधि उस विधि उस विधवा को अपने पति की संपदा का उसके वारिसों की संपत्ति के बिना प्रभरण अथवा उसके अन्य संक्रामण की शक्ति प्रदान की गई है। विधवा की मृत्यु हो जाने पर राज्य कोई वारिस न होने के कारण राजसात्करण द्वारा उस संपदा को अपने अधिकार में ले लेता है तो उस दशा में राज्य की अपेक्षा वह व्यक्ति जिसने धन दिया है, राज्य के मोचन अधिकार के अधीन रहते हुए दी गई धनराशि तथा ब्याज के लिए प्रतिभूति के रूप में बंधकाधीन संपदा को धारण करने का अधिकारी होगा।

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