दाहिर (राजा)

सिंध के ब्राह्मण महाराजा जिन्होंने 679 से 712 तक शासन किया
(राजा दाहिर से अनुप्रेषित)

राजा दाहिर सिंह सेन सिंध के अंतिम हिंदू राजा थे।[2] उनके समय में ही अरबों ने सर्वप्रथम सन ७१२ में भारत (सिंध) पर आक्रमण किया था। मुहम्मद बिन क़ासिम मिशन 712 में सिंध पर आक्रमण किया था जहां पर राजा दाहरसेन ने उसे रोका और उसके साथ युद्ध लड़ा उनका शासन काल 663 से 712 ईसवी तक रहा उन्होंने अपने शासनकाल में अपने सिंध प्रांत को बहुत ही मजबूत बनाया था, परंतु अरब के खलीफा ने मोहम्मद बिन कासिम को भेजा और कासिम को मालूम था की इनसे युध्द मे जितना मुस्किल है, जिसके कारण कासिम ने इनके एक सिपहसालार को 'दाहिर को मारने के बाद उसे गद्दी पर बैठाने का ख्वाब दिखाया' जिससे उस सिपहसालार ने राजा दाहिर सिंह के साथ गद्दारी की इस कारण इनको हार का मुंह देखना पड़ा। राजा दाहिर सिंह अपने जीवन काल में कभी कोई युध्द नही हारे थे। 712 में राजा दाहिर सिंह सेन की सिंधु नदी के किनारे मृत्यु हो गयी।[3]

दाहिर
सिंध के महाराजा
सिन्ध के तीसरे व अंतिम राजा
शासनावधि695 - 712 ईसा पूर्व
पूर्ववर्तीचंदर
उत्तरवर्तीउमय्यद ख़िलाफ़त)
रीजेंटदाहिर सेन
जन्म25 अगस्त 669 ईसा पूर्व
अलोड़, सिंध
(वर्तमान में रोहड़ी, सिंध, पाकिस्तान)
निधन712 ईसा पूर्व (आयु 49 वर्ष)
सिन्धु नदी, सिंध
(वर्तमान में नवाबशाह, सिंध, पाकिस्तान)
जीवनसंगीलाडी बाई
संतानपुत्रियों राजकुमारी सूर्यकुमारी
व परमाल
घरानाब्राह्मण[1]
मातारानी सुहान्दी
धर्महिंदू धर्म

इनके पुत्र जय सिंह दाहिर भी 712 मे मारे गये।

अरोड़ की लड़ाई (712 ईस्वी) संपादित करें

आठवीं सदी में बगदाद के गवर्नर हुज्जाज बिन यूसुफ के आदेश पर उनके भतीजा और नौजवान सिपासालार मुहम्मद बिन कासिम ने सिंधु पर पर हमला करके राजा दाहिर को शिकस्त दी और यहां अपना शासन स्थापित किया । 712 में सिंधु नदी के किनारे उनकी मौत हो गयी। इनके पुत्र जय सिंह भी 712 मे मारे गए।[4][5]

अलाफ़ियों की बग़ावत संपादित करें

ओमान में माविया बिन हारिस अलाफ़ी और उसके भाई मोहम्मद बिन हारिस अलाफ़ी ने ख़लीफ़ा के विरुद्ध विद्रोह कर दिया , जिसमें अमीर सईद मारा गया. चचनामा के अनुसार मोहम्मद अलाफ़ी ने अपने साथियों के साथ मकरान में शरण प्राप्त की ली जहां राजा दाहिर का शासन था। बग़दाद के गवर्नर ने उन्हें कई पत्र लिखकर बाग़ियों को उनके सुपुर्द करने के लिए कहा लेकिन उन्होंने अपनी भूमि पर शरण लेने वालों को हवाले करने से मना कर दिया. हमले की एक वजह ये भी समझी जाती है।

शासकीय अराजकता संपादित करें

 
सिन्धु घाटी, लगभग ७०० ईसवी के दौरान।

राजा दाहिर सिंह के तख़्त पर आसीन होने से पहले इनके भाई चंद्रसेन राजा थे,जो बौद्ध मत के समर्थक थे,और जब राजा दाहिर सत्ता में आए तो उन्होंने सख़्ती की चचनामा के मुताबिक़ बौद्ध भिक्षुओं ने मुहम्मद बिन कासिम के हमले के वक़्त निरोनकोट और सिवस्तान में इनका स्वागत और मदद की थी। सिंध के क़ौम-परस्त रहनुमा जीएम सैय्यद लिखते हैं कि चन्द्रसेन ने बौद्ध धर्म को बढ़ावा दिया और भिक्षुओं और पुजारियों के लिए ख़ास रियायतें दीं. राजा दाहिर ने इन पर सख्तियां नहीं कीं बल्कि दो गवर्नर बौद्ध धर्म से थे।

राजा दाहिर की बहन के साथ शादी संपादित करें

चचनामा’ में इतिहासकार का दावा है कि राजा दाहिर सेन ज्योतिषों की बात का गहरा असर मानते थे। उन्होंने जब बहन की शादी के बारे में ज्योतिषों से राय ली तो उन्होंने बताया कि जो भी इससे शादी करेगा वो सिंध का राजा बनेगा। उन्होंने मंत्रियों व ज्योतिषों के मशविरे पर अपनी बहन के साथ शादी कर ली, इतिहासकारों का कहना है कि संभोग के अलावा दूसरी तमाम रस्में अदा की गईं।

जीएम सैय्यद इस कहानी को स्वीकार नहीं करते. उन्होंने लिखा है कि सगी बहन तो दूर की बात है, चचेरी या ममेरी बहन से भी शादी को नाजायज़ समझते थे,वो दलील देते हैं कि हो सकता है कि किसी छोटे राजा को रिश्ता न देकर लड़की को घर पर बिठा दिया गया हो क्योंकि हिन्दुओं में जातिगत भेदभाव होता है और इसीलिए किसी कम दर्जे वाले व्यक्ति को रिश्ता देने से इंकार किया गया हो।

डॉक्टर आज़ाद क़ाज़ी ‘दाहिर का ख़ानदान तहक़ीक़ की रोशनी में’ नामक शोध-पत्र में लिखते हैं कि चचनामे के इतिहासकार ने अरूड़ के क़िले से राजा दाहिर के हिरासत में लिए गए रिश्तेदारों का ज़िक्र करते हुए लिखा है कि इनमें राजा की भांजी भी शामिल थी जिसकी करब बिन मखारू नामक अरब ने पहचान की,अगर चचनामे की बात मानी जाए कि बहन के साथ रस्मी शादी थी तो ये लड़की कहां से आई।

राजा दाहिर की बेटियां और मोहम्मद बिन क़ासिम संपादित करें

चचनामा’ में इतिहासकार लिखता है कि राजा दाहिर की दो बेटियों को ख़लीफ़ा के पास भेज दिया गया, ख़लीफ़ा बिन अब्दुल मालिक ने दोनों बेटियों को एक दो रोज़ आराम करने के बाद उनके हरम में लाने का आदेश दिया।

एक रात दोनों को ख़लीफ़ा के हरम में बुलाया गया, ख़लीफ़ा ने अपने एक अधिकारी से कहा कि वो मालूम करके बताएं कि दोनों में कौन सी बेटी बड़ी है.

बड़ी ने अपना नाम सूर्या देवी बताया और उसने चेहरे से जैसे ही नक़ाब हटाया तो ख़लीफ़ा उनकी ख़ूबसूरती देखकर दंग रह गए और लड़की को हाथ से अपनी तरफ़ खींचा लेकिन लड़की ने ख़ुद को छुड़ाते हुए कहा, “बादशाह सलामत रहें, मैं बादशाह की क़ाबिल नहीं क्योंकि आदिल इमादुद्दीन मोहम्मद बिन क़ासिम ने हमें तीन रोज़ अपने पास रखा और उसके बाद ख़लीफ़ा की ख़िदमत में भेजा है. शायद आपका दस्तूर कुछ ऐसा है, बादशाहों के लिए ये बदनामी जायज़ नहीं.”

इतिहासकार के मुताबिक़ ख़लीफ़ा वलीद बिन अब्दुल मालिक, मोहम्मद बिन क़ासिम से बहुत नाराज़ हुए और आदेश जारी किया कि वो संदूक़ में बंद होकर हाज़िर हों. जब ये फ़रमान मोहम्मद बिन क़ासिम को पहुंचा तो वो अवधपुर में थे. तुंरत आदेश का पालन किया गया लेकिन दो रोज़ में ही उनका दम निकल गया और उन्हें दरबार पहुंचा दिया गया। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि राजा दाहिर की बेटियों ने इस तरह अपना बदला लिया।

चचनामा पर एतराज़ संपादित करें

चचनामा के अनुवादक अली बिन हामिद अबु बकर कोफ़ी हैं। वो अचशरीफ़ में रहने लगे और उस वक़्त वहां नासिरूद्दीन क़बाचा की हुकूमत थी,

वहां उनकी मुलाक़ात मौलाना क़ाज़ी इस्माइल से हुई जिन्होंने उन्हें एक अरबी किताब दिखाई जो इनके बाप-दादाओं ने लिखी थी, अली कोफ़ी ने उसका अरबी से फ़ारसी में अनुवाद किया जिसको फ़तेहनामा और चचनामा नाम से जाना जाता है।

कुछ इतिहासकार और लेखक चचनामा को शक की निगाह से देखते हैं,

डॉक्टर मुरलीधर जेटली के मुताबिक़ चचनामा सन 1216 में अरब सैलानी अली कोफ़ी ने लिखी थी जिसमें हमले के बाद लोगों से सुनी-सुनाई बातों को शामिल किया गया।

इस तरह पीटर हार्डे, डॉक्टर मुबारक अली और गंगा राम सम्राट ने भी इसमें मौजूद जानकारी की वास्तविकता पर शक ज़ाहिर किया है।

जीएम सैय्यद ने लिखा है कि हर एक सच्चे सिंधी को राजा दाहिर के कारनामे पर फ़ख़्र होना चाहिए क्योंकि वो सिंध के लिए सिर का नज़राना पेश करने वालों में से सबसे पहले हैं.।इनके बाद सिंध 340 बरसों तक ग़ैरों की ग़ुलामी में रहा, जब तक सिंध के सोमरा घराने ने हुकूमत हासिल नहीं कर ली।

इन्हें भी देखें संपादित करें

सन्दर्भ संपादित करें

  1. Pandey, Dhanpati (1998). Pracheen Bharat Ka Rajneetik Aur Sanskritik Itihas. Motilal Banarsidass Publishe. पृ॰ 237. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-208-2380-8.
  2. R. C. Majumdar, General Editor (1970). History and Culture of the Indian People, Volume 03, The Classical Age. Public Resource. Bharatiya Vidya Bhavan.
  3. "SITUATIONER: Nine trenches into the past of Sindh".
  4. Asif, Manan Ahmed (2016-09-19). A Book of Conquest: The Chachnama and Muslim Origins in South Asia (अंग्रेज़ी में). Harvard University Press. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-674-66011-3.
  5. "Dahar". pakistanspace.tripod.com. अभिगमन तिथि 2023-04-25.