राजा यशवन्त सिंह
राजा यशवन्त सिंह जी (सं0 1806 से 1871) जो कि तिर्वा नरेश के नाम से जाने जाते हैं, हिन्दी के प्रसिद्ध रीति कवियों में से एक हैं। शिवसिंह सरोज (265/226) में इनके तीन ग्रंथों- ‘शृंगार शिरोमणि’, ‘भाषा भूषण’ और ‘शालिहोत्र’ का उल्लेख है। ‘शृंगार शिरोमणि’ की अनेक प्रतियाँ खोज में प्राप्त हुयी हैं पर ‘शालिहोत्र’ की प्रतियों का पता नहीं चल सका और ‘भाषा भूषण’ तिर्वा नरेश जसवन्त सिंह की रचना न होकर जोधपुर नरेश जसवंत सिंह राठौर की रचना है। भ्रम से कहीं-कहीं यह भी स्वीकार किया गया है कि प्रसिद्ध कवि ग्वाल ने ‘रसिकानन्द’ नामक ग्रंथ की रचना इन्हीं के दरबार में रहकर की थी, पर ऐसा नहीं है। ग्वाल ने इस ग्रंथ की रचना सं0-1879 में नाभा नरेश जसवंत सिंह के नाम पर की थी। ‘शृंगार शिरोमणि’ ग्रंथ का एक छन्द अवलोकनीय है-
लाल के भाल पै पावकु-सी अवलोकति जावक जोति जगाए।
दौरि के गोरी भरे अँसुआ जसवन्त सखी सों कहै चितलाए।
दीनै हमैं जुबताय हमारी सी बूझत तोहिं हितू हितु पाए।
कालि तौ दूजी को ही को हुतो अब आजु कहौ ये कहाँ हैं लगाए।।