राजेश्वरी सुंदर राजन (जन्म 1950), एक भारतीय नारीवादी विद्वान, अंग्रेजी की प्राध्यापक और नारीवाद और लिंग से संबंधित मुद्दों पर कई पुस्तकों की लेखिका हैं। उनकी शोध रुचि में कई विषय शामिल रहे हैं: जैसे औपनिवेशिक काल के पूर्व और बाद के काल, भारतीय अंग्रेजी लेखन, लिंग और दक्षिण एशिया से संबंधित सांस्कृतिक मुद्दे और विक्टोरियन युग के अंग्रेजी साहित्य। उन्होंने "समकालीन भारतीय नारीवाद में मुद्दे" और "साइनपोस्ट्स: जेंडर इशूज़ इन पोस्ट-इंडिपेंडेंस इंडिया" नामक एक श्रृंखला भी संपादित की है। उन्होंने कई किताबें लिखी हैं, जिनमें से: स्कैंडल ऑफ़ द स्टेट: वीमेन, लॉ एंड सिटिजनशिप इन पोस्टकोलोनियल इंडिया और रियल एंड इमेजिनेटेड वुमन: जेंडर, कल्चर एंड पोस्टकोलोनियलिज़्म उल्लेखनीय हैं।[1] [2]

राजेश्वरी सुंदर राजन
जन्म 3 नवम्बर 1950
मुम्बई, भारत
राष्ट्रीयता भारतीय
पेशा अंग्रेजी की प्राध्यापक, संपादक और लेखिका।
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जीवनी संपादित करें

राजन का जन्म बॉम्बे में हुआ था, जिसे अब मुम्बई के रूप में जाना जाता है। उनकी प्रारंभिक कॉलेज शिक्षा बॉम्बे विश्वविद्यालय में हुई, जहाँ से उन्होंने 1969 में अंग्रेजी में बैचलर ऑफ़ आर्ट्स (बीए) की डिग्री और 1971 में मास्टर ऑफ़ आर्ट्स (एमए) की डिग्री प्राप्त की। बाद में, उन्होंने जॉर्ज वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी, वाशिंगटन डीसी से अंग्रेजी में डॉक्टरेट की डिग्री हासिल की और पीएचडी की उपाधि प्राप्त की।[1]

भारत में एक व्याख्याता के रूप में काम करने के बाद वह यूनाइटेड किंगडम चली गईं, जहाँ वह वोल्फसन कॉलेज में फेलो थीं और फिर ऑक्सफ़र्ड विश्वविद्यालय में अंग्रेजी में रीडर के रूप में काम किया। नई दिल्ली में, नेहरु स्मारक संग्रहालय एवं पुस्तकालय और महिला विकास अध्ययन केंद्र (सीडब्ल्यूसी) में सीनियर फेलो के रूप में उनके कार्यरत रही हैं। उन्होंने ओबेरिन कॉलेज, ओहायो में शैंसी विजिटिंग प्रोफेसर के रूप में भी काम किया है।[3]

राजन ने स्वतंत्र भारत में राष्ट्रवादी मुद्दों के संबंध में लिंग, उत्तर औपनिवेशिकता और संस्कृति के मुद्दों पर बहस की है। उनके शोध कार्य में उन्नीसवीं शताब्दी के संयुक्त ब्रिटेन के अंग्रेजी साहित्य को शामिल किया गया है, जिसमें एंग्लोफोन पोस्टकोलोनियल अवधि का साहित्य भी शामिल है। उनके संपादन कार्य में भारतीय नारीवाद के मुद्दे शामिल हैं। वह इंटरवेंशन की एक संयुक्त संपादक भी हैं, जो पोस्टकोलोनियल अध्ययनों की एक अंतरराष्ट्रीय पत्रिका है।[3] सती प्रथा (१९९०) पर उनका निबंध येल जर्नल ऑफ क्रिटिसिज्म में छपा था और उनकी पुस्तक द ली ऑफ द लैंड (१९९२) आजादी के बाद के अंग्रेजी अध्ययनों पर आधारित है। उन्होंने द क्राइसिस ऑफ़ सेकुलरिज़्म इन इंडिया (2006) के सह-संपादक के रूप में काम किया है।[3]

प्रकाशन संपादित करें

  • द लाई ऑफ द लैंड: भारत में अंग्रेजी साहित्यिक अध्ययन (1992)
  • द प्रोस्टीटूशन क्वेश्चन(स): (फीमेल) एजेंसी, सेक्सुअलिटी एंड वर्क (1996)
  • इज़ द हिन्दू गॉडेस अ फेमिनिस्ट? (1997)
  • साइनपोस्ट्स: आजादी के बाद के भारत में लैंगिक मुद्दे (1999)
  • वास्तविक और काल्पनिक महिलाएं: लिंग, संस्कृति और उत्तर औपनिवेशिकता (2003)
  • द स्कैंडल ऑफ़ द स्टेट: महिला, कानून और भारत में नागरिकता (2003)
  • पोस्टकोलोनियल जेन ऑस्टेन (यू-मी पार्क के साथ) (2015) [3]

सन्दर्भ संपादित करें

  1. "Rajeswari Sunder Rajan:Global Distinguished Professor of English". New York University. मूल से 14 मार्च 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 9 March 2016. सन्दर्भ त्रुटि: <ref> अमान्य टैग है; "New" नाम कई बार विभिन्न सामग्रियों में परिभाषित हो चुका है
  2. "Rajeswari Sunder Rajan". Womenunlimited.net. मूल से 16 मई 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 13 March 2016.
  3. "Rajeswari Sunder Rajan, Global Distinguished Professor of English". New York University. मूल से 15 मार्च 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 9 March 2016.