राधाकृष्ण प्रकाशन भारतीय प्रकाशन जगत का एक प्रमुख प्रकाशक है। यह राजकमल प्रकाशन समूह का अंग है। यह रचनात्मक, वैचारिक और आलोचनात्मक साहित्य की श्रेष्ठ कृतियों के अग्रणी हिंदी प्रकाशक के रूप में समादृत है।


राधाकृष्ण प्रकाशन की स्थापना 1965 ई. में हुई थी। ओमप्रकाश इसके संस्थापक थे जो अरसे तक राजकमल प्रकाशन से जुड़े रहे थे। अपने राजकमल-काल में उन्होंने एक तरफ 'मैला आँचल' जैसी युगप्रवर्तक कृति को प्रकाशित कर हिंदी के व्यापक पाठक समुदाय को फणीश्वरनाथ रेणु तक पहुँचाया तो दूसरी तरफ बांग्ला के लोकप्रिय लेखक शंकर के बहुचर्चित उपन्यास 'चौरंगी', बांग्ला भाषा के ही चर्चित लेखक समरेश बसु के उपन्यास 'अश्लील' और रवीन्द्रनाथ ठाकुर की 'परलोक चर्चा' के हिंदी अनुवाद प्रकाशित कर हिंदी साहित्य की परिधि को नए क्षितिज तक पहुँचाया।

राधाकृष्ण प्रकाशन के जरिये ओंप्रकाश जी न सिर्फ हिंदी में रचे जा रहे उल्लेखनीय साहित्य को प्रकाशित करने के लिए प्रतिबद्ध थे, बल्कि अन्य भारतीय भाषाओं में लिखी जा रही उल्लेखनीय कृतियों को हिंदी पाठकों के समक्ष लाने के लिए भी दृढ़संकल्प थे।

राधाकृष्ण प्रकाशन में विमल मित्र, महाश्वेता देवी, यू.आर. अनन्तमूर्ति, गिरीश कारनाड, शिवराम कारन्त, चन्द्रशेखर कम्बार, चन्द्रकान्त कुसनूर, आदि लेखकों की महत्वपूर्ण पुस्तकों का प्रकाशन उनकी उपलब्धि रही।

गौरतलब है कि इन लेखकों की पुस्तकें जिस समय अनूदित होकर राधाकृष्ण प्रकाशन से प्रकाशित हुईं, उस समय इनमें से अधिकतर अपने उम्र के चौथे दशक में ही थे। आगे चलकर सभी लेखक अपनी-अपनी भाषा के शीर्षस्थ साहित्यकार के रूप में मान्य हुए।

राधाकृष्ण प्रकाशन 1979 तक ओंप्रकाश जी के नेतृत्व में चला। उनके बाद अरविंद कुमार राधाकृष्ण प्रकाशन के प्रबन्ध निदेशक बने। अरविंद जी ने मंगलेश डबराल, असद जैदी, उदय प्रकाश सरीखे आज के वरिष्ठ और विशिष्ट लेखकों-कवियों की पुस्तकें प्रकाशित की। उन्होंने दया पवार, अरुण साधु, रामनगरकर, प्र.ई. सोनकाम्बले आदि की पुस्तकें प्रकाशित कर हिंदी-जगत को मराठी दलित साहित्य से परिचित कराया।

हिंदी में सामयिक साहित्य के प्रकाशन की व्यवस्थित शुरुआत भी अरविंद जी ने ही की। कुलदीप नैयर की 'फैसला'; जनार्दन ठाकुर की 'ये नये हुक्मरान', 'इंदिरा गांधी के दो चेहरे'; मथाई की 'नेहरू युग : जानी अनजानी बातें'; कॉलिन्स और लापियर की 'बारह बजे रात के'; मुलगांवकर की 'बापू के हत्यारे'; देसराज गोपाल की 'राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ' जैसी पुस्तकों का प्रकाशन उन्होंने ही किया था।

महान जर्मन कवि नाटककार बरनॉल्ट ब्रेख्त (Bertolt Brecht) की महत्वपूर्ण रचनावली का अंग्रेजी में प्रकाशन भी उनकी उपलब्धि रही। 'स्माल इज ब्यूटीफुल' जैसी बड़ी रचना का हिंदी-अंग्रेजी दोनों भाषाओं में प्रकाशन उनका ही काम था।

1994 में राधाकृष्ण प्रकाशन, राजकमल प्रकाशन के साथ मिलकर राजकमल प्रकाशन समूह का अंग बना। 2005 में लोकभारती प्रकाशन भी राजकमल प्रकाशन समूह का घटक बना।


वर्तमान उत्तरदायित्व - वर्तमान में राधाकृष्ण प्रकाशन 'राजकमल प्रकाशन समूह' का हिस्सा है। इस समय राधाकृष्ण प्रकाशन का उत्तरदायित्व भी राजकमल प्रकाशन के प्रबंध निदेशक अशोक महेश्वरी संभाल रहे हैं। वहीं धर्मेंद्र सुशांत प्रकाशन का संपादकीय कार्यभार संभाल रहे हैं।


प्रमुख प्रकाशन - छह दशक पुरानी अपनी समृद्ध परम्परा को आगे बढ़ाते हुए राधाकृष्ण प्रकाशन आज भी हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं के सम्भावनापूर्ण रचनाओं और श्रेष्ठ कृतियों को प्रकाशित कर रहा है। उदाहरण के लिए पेरियार ललई सिंह ग्रंथावली, जोराम यालाम नाबाम की तानी कथाएँ, पार्वती तिर्की की 'फिर उगना', प्रवीण कुमार का उपन्यास 'अमर देसवा' जैसी हाल में प्रकाशित पुस्तकें देखी जा सकती है।


किफ़ायती संस्करण योजना - राधाकृष्ण प्रकाशन में ओंप्रकाश जी ने अरविंद कुमार के साथ मिलकर पेपरबैक पुस्तकों की योजना ‘किफायती संस्करण’ की शुरुआत की थी।


रचनावली परियोजना - राधाकृष्ण प्रकाशन ने राजकमल प्रकाशन की श्रेष्ठ लेखकों की सम्पूर्ण रचनाओं को क्रमबद्ध तथा प्रामाणिक रूप में उपलब्ध कराने के लिए शुरू की गई 'रचनावली परियोजना' आगे बढ़ाते हुए कई महत्वपूर्ण रचनावली प्रकाशित की है, जिनका विवरण निन्म प्रकार से है :-


बेनीपुरी ग्रंथावली (आठ खंडों में)

जगदीश चंद्र माथुर रचनावली (चार खंडों में)

मोहन राकेश रचनावली (तेरह खंडों में)

पेरियार ललईसिंह रचनावली (पाँच खंडों में)

राजेन्द्र यादव रचनावली (पन्द्रह खंडों में)

महात्मा ज्योतिबा फुले रचनावली (दो खंडो में)


पत्रिकाओं का प्रकाशन - राधाकृष्ण प्रकाशन से अरविंद कुमार के प्रबंध निदेशक रहते हुए विद्यानिवास मिश्र के संपादन में ‘अभिरुचि’ पत्रिका के प्रकाशन की शुरुआत हुई।

इन्हें भी देखें

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  • राजकमल प्रकाशन समूह
  • राजकमल प्रकाशन
  • लोकभारती प्रकाशन
  • 'आलोचना' पत्रिका