प्राचीन श्रीराधा दामोदर मंदिर वृंदावन में स्थित है। इसकी चार परिक्रमाएँ करने से गिरिराज गोवर्धन की परिक्रमा का फल मिलता है। साढ़े चार सौ वर्ष पुराने इस मंदिर की परिक्रमा करने से उसमें विराजमान गिरिराज शिला की स्वतः परिक्रमा हो जाती है। इसकी एक किलोमीटर से भी कम की चार परिक्रमाएँ करने से श्रृद्धालु गिरिराज गोवर्धन की सात कोस (25 किलोमीटर) लम्बी परिक्रमा का पुण्य अर्जित कर लेता है।

संवत 1599 सन 1543 की माघ शुक्ल दशमी के दिन श्रीरूप गोस्वामी ने यहाँ राधा दामोदर जी के विग्रहों की स्थापना करके उनकी सेवा का भार जीव गोस्वामी को सौंपा।

किवदंती है कि सनातन गोस्वामी नित्य गिरिराज की परिक्रमा करते थे। वृद्धावस्था में उनकी असमर्थता को देखकर भगवान ने बालक रूप में प्रकट होकर उन्हें डेढ़ हाथ लंबी वट पत्राकार श्याम रंग की गिरिराज शिला दी। उस पर भगवान के चरण चिन्ह के साथ ही गाय के खुर का भी चिन्ह है। भगवान ने गोस्वामीजी को आदेश दिया कि अब वह वृद्धावस्था में गिरिराज पर्वत की बजाय इसी शिला की परिक्रमा कर लिया करें। उनके शरीर त्यागने के बाद शिला इसी मंदिर में स्थापित कर दी गई और तब से श्रद्धालुओं द्वारा मंदिर की चार परिक्रमाएं लगाए जाने की परंपरा चल पड़ी।

यहाँ रूप गोस्वामी तथा जीव गोस्वामी के अलावा अंतर्राष्ट्रीय श्रीकृष्ण भावनामृत संघ (इस्कान) के संस्थापक स्वनामधन्य ए.सी. भक्ति वेदांत प्रभुपादजी की सजीव मूर्तियों के दर्शन करके श्रृद्धालुओं की भक्ति सरिता में एक नया प्रवाह निकलने लगता है। प्रभुपाद ने इस स्थान पर भजन-साधना की थी।

उत्तर प्रदेश पर्यटन विभाग ने इस मंदिर के बाहर लगाए गए प्रस्तर पट्ट में निम्नलिखित जानकारी दी है। रूप गोस्वामी पाद द्वारा प्रदत्त जीव गोस्वामी पाद के सेव्य श्रीराधा दामोदरजी की प्रतिष्ठा संवत 1599 विक्रमी सन् 1543 माघ शुक्ल दशमी में की गई। इस मंदिर में श्रीकृष्णदास कविराज गोस्वामी द्वारा सेवित श्रीराधा छैल चिकनियांजी के श्रीविग्रह भी विराजमान हैं।

सनातन गोस्वामीजी को उनके इष्ट श्रीमदनमोहनजी ने अपने चरण चिन्ह गाय के चरण चिन्ह वंशी एवं लकुटिया के चिन्हों से अंकित गोवर्धन शिला दी थी। यह भी यहाँ दर्शनीय है। भगवान श्रीकृष्णजी के श्रीमुख के आदेशानुसार इस मंदिर की चार परिक्रमा लगने से गोवर्धन परिक्रमा का फल प्राप्त होता है।

यहाँ सर्वश्री रूप गोस्वामी, जीव गोस्वामी तथा कृष्णदास कविराज गोस्वामी कुटी एवं इस्कान के संस्थापक श्रीभक्तिवेदांत प्रभुपादजी की प्राचीन भजन कुटी भी इसी परिसर में हैं। यहाँ कार्तिक मास, पुरुषोत्तम मास, श्रीरूप गोस्वामी एवं श्रीजीव गोस्वामी तिरोभाव उत्सव, श्रीकृष्ण जन्माष्टमी, श्रीराधाष्टमी गोवर्धन पूजा आदि बड़े धूमधाम से मनाए जाते हैं।