रानीबाग
निर्देशांक: 29°17′11″N 79°32′31″E / 29.2865017°N 79.5419383°E रानीबाग हल्द्वानी नगर का एक आवासीय क्षेत्र और वार्ड है, जो नगर के केंद्र से ८ किमी उत्तर में राष्ट्रीय राजमार्ग १०९ पर स्थित है। यह क्षेत्र हल्द्वानी नगर निगम की उत्तरी सीमा बनाता है। कहते हैं यहाँ पर मार्कण्डेय ॠषि ने तपस्या की थी। रानीबाग के समीप ही पुष्पभद्रा और गगार्ंचल नामक दो छोटी नदियों का संगम होता है। इस संगम के बाद ही यह नदी 'गौला' के नाम से जानी जाती है। गौला नदी के दाहिने तट पर चित्रेश्वर महादेव का मन्दिर है। यहाँ पर मकर संक्रान्ति के दिन बहुत बड़े मेले का आयोजन होता है, जिसे जिया रानी का मेला के नाम से जाना जाता है।[1]
रानीबाग | |
— हल्द्वानी का एक आवासीय क्षेत्र — | |
समय मंडल: आईएसटी (यूटीसी+५:३०) | |
देश | भारत |
राज्य | उत्तराखण्ड |
इतिहास
संपादित करेंरानीबाग से पहले इस स्थान का नाम चित्रशिला था। कहते हैं कत्यूरी राजा पृथवीपाल की पत्नी रानी जिया यहाँ चित्रेश्वर महादेव के दर्शन करने आई थी। वह बहुत सुन्दर थी। रुहेला सरदार उसपर आसक्त था। जैसे ही रानी नहाने के लिए गौला नदी में पहुँची, वैसे ही रुहेलों की सेना ने घेरा डाल दिया। रानी जिया शिव भक्त और सती महिला थी। उसने अपने ईष्ट का स्मरण किया और गौला नदी के पत्थरों में ही समा गई। रुहेलों ने उन्हें बहुत ढूँढ़ा परन्तु वे कहीं नहीं मिली। कहते हैं, उन्होंने अपने आपको अपने घाघरे में छिपा लिया था। वे उस घाघरे के आकार में ही शिला बन गई थीं। गौला नदी के किनारे आज भी एक ऐसी शिला है, जिसका आकार कुमाऊँनी घाघरे के समान हैं। उस शिला पर रंग-विरंगे पत्थर ऐसे लगते हैं - मानो किसी ने रंगीन घाघरा बिछा दिया हो। वह रंगीन शिला जिया रानी के स्मृति चिन्ह माना जाता है। रानी जिया को यह स्थान बहुत प्यारा था। यहीं उसने अपना बाग लगाया था और यहीं उसने अपने जीवन की आखिरी सांस भी ली थी। वह सदा के लिए चली गई परन्तु उसने अपने गात पर रुहेलों का हाथ नहीं लगन् दिया था। तब से उस रानी की याद में यह स्थान रानीबाग के नाम से विख्यात है।[2][3]
१९वीं शताब्दी तक रानीबाग एक स्वतंत्र गाँव था, और 1901 में इसकी जनसंख्या लगभग 624 थी; उसी वर्ष इसे काठगोदाम के साथ जोड़कर नोटिफाइड एरिया घोषित कर दिया गया।[4] काठगोदाम-रानीबाग 1942 तक स्वतंत्र नगर के रूप में उपस्थित रहा, जिसके बाद इसे हल्द्वानी नोटिफाइड एरिया के साथ जोड़कर नगर पालिका परिषद् हल्द्वानी-काठगोदाम का गठन किया गया। तब से ही रानीबाग हल्द्वानी नगर क्षेत्र का हिस्सा है। 80 के दशक में यहां हिन्दुस्तान मशीन टूल्स (एच. एम. टी.) की एक इकाई स्थापित की गई।[5] 1982 में तत्कालीन उद्योग मंत्री पंडित नारायण दत्त तिवारी ने रानीबाग एचएमटी की नींव रखी, और 1985 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने इसका उद्घाटन किया था।[6]
भूगोल
संपादित करेंरानीबाग से दो किलोमीटर जाने पर एक दोराहा है। दायीं ओर मुड़ने वाली सड़क भीमताल को जाती है। जब तक मोटर - मार्ग नहीं बना था, रानीबाग से भीमताल होकर अल्मोड़ा के लिए यही पैदल रास्ता था। वायीं ओर का राश्ता ज्योलीकोट की ओर मुड़ जाता है। ये दोनों रास्ते भुवाली में जाकर मिल जाते हैं।
रानीबाग से सात किलोमीटर की दूरी पर 'दोगाँव' नामक एक ऐसा स्थान है जहाँ पर सैलानी ठण्डा पानी पसन्द करते हैं। यहाँ पर पहाड़ी फलों का ढेर लगा रहता है। पर्वतीय अंचल की पहली बयार का आनन्द यहीं से मिलना शुरु हो जाता है।
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ "कुमाऊँ के कुछ अन्य प्रसिद्ध मेले". ignca.nic.in. मूल से 24 सितंबर 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 26 जुलाई 2018.
- ↑ "कुमाऊं का लोक पर्व है घुघतिया त्यार". नैनीताल: दैनिक जागरण. 12 जनवरी 2016. मूल से 26 जुलाई 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 26 जुलाई 2018.
- ↑ साकेत, अग्रवाल (13 जनवरी 2018). "कुमाऊं की वीरांगना ने रणक्षेत्र में छुड़ाये थे दुश्मनों के छक्के". किच्छा: दैनिक उत्तरांचल दीप. मूल से 26 जुलाई 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 26 जुलाई 2018.
- ↑ काठगोदाम Archived 2016-03-03 at the वेबैक मशीन इम्पीरियल गजेटियर आफ़ इण्डिया, 1909, v. 15, p. 164.
- ↑ "'देश की धड़कन' एचएमटी बंद!". तहलका. 7 जनवरी 2016. मूल से 26 जुलाई 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 26 जुलाई 2018.
- ↑ "सबसे बड़ी स्वदेशी घड़ी कंपनी HMT बंद !". देहरादून: भोपाल समाचार. 21 फरवरी 2015. मूल से 26 जुलाई 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 26 जुलाई 2018.