रामकृष्ण बिश्वास

बंगाली क्रांतिकारी

रामकृष्ण विश्वास (बांग्ला : রামকৃষ্ণ বিশ্বাস ; १६ जनवरी, १९१० - ४ अगस्त, १९३१) भारतीय उपमहाद्वीप में ब्रिटिश विरोधी स्वतंत्रता आंदोलन के अग्रणी क्रांतिकारियों में से एक थे। वे मास्टर दा सूर्य सेन के गुप्त क्रांतिकारी दल के सक्रिय सदस्य थे।

रामकृष्ण विश्वास
जन्म 16 जनवरी 1910
सारोवातली, चटगाँव
मौत अगस्त 4, 1931(1931-08-04) (उम्र 21 वर्ष)
अलीपुर जेल, कोलकाता
मौत की वजह फाँसी द्वारा
पेशा क्रांतिकारी
रामकृष्ण बिश्वास

रामकृष्ण विश्वास का जन्म चटगाँव के सारोवातली में हुआ था। उनके पिता का नाम दुर्गाकृपा विश्वास था। १९२८ की इन्ट्रैन्स परीक्षा में रामकृष्ण पूरे जिले में पहले स्थान पर आये थे। बाद में वे मास्टर'दा सूर्य सेन द्वारा चलाये जा रहे क्रांतिकारी स्वतंत्रता आन्दोलन में सम्मिलित हो गए। १९३० में बम बनाते समय वे बुरी तरह घायल हो गए थे।

रामकृष्ण विश्वास के सानिध्य प्रीतिलता

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पश्चिम बंगाल के कलकत्ता में प्रीतिलता की मूर्ति।

1930 में, टीजे क्रेग पुलिस महानिरीक्षक बनकर चटगांव आया। मास्टर'दा ने उसे मारने का काम रामकृष्ण विश्वास और कालीपद चक्रवर्ती को सौंपा। योजना के अनुसार, 1 दिसंबर, 1930 को, उन्होंने विद्रोहियों के साथ चांदपुर रेलवे स्टेशन पर हमला किया लेकिन क्रेग के बजाय चांदपुर के एसडी और तारिणी मुखर्जी को गलती से मार दिया। २ दिसम्बर को पुलिस ने बम और रिवाल्वर के साथ रामकृष्ण विश्वास और कालीपद चक्रवर्ती को घटनास्थल से 22 मील दूर गिरफ्तार कर लिया। [1][2] [3] ये बम कलकत्ता से चटगाँव तक मनोरंजन राय लेकर आये थे। तारिणी मुखर्जी हत्या मामले में रामकृष्ण विश्वास को मृत्युदण्ड तथा कालीपद चक्रवर्ती को काला पानी निर्वासन की सजा सुनाई गयी। [4]

रामकृष्ण कोलकाता के अलीपुर जेल में बन्द थे। चटगाँव से कोई भी निकट सम्बन्धी रामकृष्ण को देखने नहीं आ सकता था क्योंकि इसका खर्च बहुत था। यह जानने के बाद मनोरंजन राय ने प्रीतिलता को एक पत्र लिखा जो उस समय कलकता में ही रहतीं थीं। पत्र में उन्होंने रामकृष्ण विश्वास से मिलने की कोशिश करने का अनुरोध किया। जब मनोरंजन राय की मां हिजली अपने बेटे से जेल में मिलने के लिए गईं, तो उन्होंने चुपके से पत्र को प्रीतिलता को सौंप दिया। [5] गोनू पीसी की सलाह पर, प्रीतिलता ने रामकृष्ण विश्वास से मिलने के लिए छद्म नाम "अमिता दास" के तहत अलीपुर सेंट्रल जेल के अधिकारियों को आवेदन किया।[6] जेल अधिकारियों की अनुमति से उन्होंने रामकृष्ण से लगभग चालीस बार मुलाकात की। [7] इस बैठक के संदर्भ में, उन्होंने लिखा: "उनकी (रामकृष्ण की) निष्ठा, स्पष्टवादिता, निर्भीक हृदय से मृत्यु को गले लगाना, ईश्वर के प्रति अटूट श्रद्धा, बच्चों जैसी सादगी, करुणा और गहन अहसास ने मुझे गहराई से प्रभावित किया। मैं पहले की तुलना में दस गुना अधिक सक्रिय हो गयी। इस देशभक्त युवा के साथ बातचीत ने मेरे जीवन की पूर्णता को बढ़ाया। " [8] ४ अगस्त १९३१ को रामकृष्ण को फाँसी दे दी गई। [9] इस घटना ने प्रीतिलता के जीवन में आमूलचूल परिवर्तन ला दिया। उनके शब्दों में, "रामकृष्णदा की फाँसी के बाद, क्रांतिकारी गतिविधियों में सीधे शामिल होने की मेरी इच्छा बहुत बढ़ गई।"

  1. ত্রৈলোক্যনাথ চক্রবর্তী, জেলে ত্রিশ বছর, ধ্রুপদ সাহিত্যাঙ্গন, ঢাকা, ঢাকা বইমেলা ২০০৪, পৃষ্ঠা ২৮৩।
  2. সূর্য সেনের সোনালি স্বপ্ন, রুপময় পাল, পৃ ১৫৪, ১৯৮৬, দীপায়ন, কলকাতা
  3. প্রীতিলতা, সম্পাদনা শংকর ঘোষ, পৃ ৩৪, ২০০৮, প্রমিথিউসের পথে, কলকাতা
  4. সূর্য সেনের সোনালি স্বপ্ন, রুপময় পাল, পৃ ১৬১, ১৯৮৬, দীপায়ন, কলকাতা
  5. সূর্য সেনের সোনালি স্বপ্ন, রুপময় পাল, পৃ ১৬২, ১৯৮৬, দীপায়ন, কলকাতা
  6. DO AND DIE: The Chittagong Uprising: 1930-34, Manini Chatterjee, Page 182, 1999, Penguin Books, India
  7. প্রীতিলতা, সম্পাদনা শংকর ঘোষ, পৃ ১৩৯, ২০০৮, প্রমিথিউসের পথে, কলকাতা
  8. প্রীতিলতা, সম্পাদনা শংকর ঘোষ, পৃ ১১১, ২০০৮, প্রমিথিউসের পথে, কলকাতা
  9. সূর্য সেনের সোনালি স্বপ্ন, রুপময় পাল, পৃ ১৬৩, ১৯৮৬, দীপায়ন, কলকাতা

इन्हें भी देखें

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