रामदान चौधरी
रामदान चौधरी (1884 - 1963) समाज सुधारक, शिक्षाविद, तथा कृषकों के मित्र एवं हितैषी थे।[1]
जीवन
संपादित करें15 मार्च 1884 बाड़मेर में गांव सरली परगना मालानी तत्कालीन मारवाड़ राज्य में किसान तेजाराम डऊकिया और दलू देवी के पुत्र के रूप में उनका जन्म हुआ। रामदान अपने बहन-भाईयों में सबसे छोटे थे। सन् 1898 में इनके पिताश्री का देहावसान होने एवं 1899-1900 (विक्रम संवत् 1956) में भंयकर छपना अकाल पड़ने पर इन्होने अपने भाईयों के साथ सिंध की ओर प्रयाण किया।[उद्धरण चाहिए] जहां इनका जन्म हुआ वर्तमान में उस गांव का नाम गंगासरा है।
उस समय वहां रेलवे निर्माण कार्य प्रारंभ हुआ और संयोगवश इन्हे रेलवे में गैंगमैन पद पर नियुक्ति मिल गई। वे शारीरिक रूप से हष्टपुष्ट एवं ताकतवर नौजवान थे और अपने अधिकारी श्री रूघनाथ जी को असामाजिक तत्वों के हमले से आपने अपनी जान जोखिम डालकर बचाया। फलस्वरूप इन्हे जमादार पद पर पदौन्नत कर सम्मानित किया।
आपने अपनी ज्ञान पिपासा शांत करने हेतु रेलवे स्टेशन मास्टर व टाईम किपर से पढना लिखना सीखा।[उद्धरण चाहिए] कार्य के प्रति लगन, परिश्रम एवं सेवा गुणों को देखते हुए इन्हे पी. डब्ल्यू. आई पद पर पदोन्नत किया। जोधपुर स्टेशन यार्ड निर्माण में आपने अद्वितीय सेवा देकर बेहतर ढंग से कार्य सम्पन्न करवाया। जोधपुर प्रवास के दौरान प्रबुद्धजनों से सम्पर्क होने पर आपने अनुभव किया कि शिक्षा के बिना जीवन अधूरा है। 1925 में पुष्कर मेले में पंजाब के राजस्व मंत्री सर छोटूराम के उद्बोधन "हे भोले किसान! मेरी दो बात मान। बोलना सीख और दुश्मन को पहचान।" से अत्यधिक प्रभावित हुए और उन्होने किसानों को शिक्षित करने का संकल्प लिया।[2]
इनका निधन 24 अक्टूबर 1963 को हुआ।
कार्य
संपादित करेंसन् 1926 में बलदेवराम मिर्धा से सम्पर्क कर जोधपुर में किराये के मकान में ‘जाट बोर्डिंग हाऊस की स्थापना की और प्रेरणा स्वरूप जोधपुर में अपना आवास होते हुए भी अपने 6 वर्षीय द्वितीय पुत्र लालसिंह को घर के सुख से तिलांजली देकर बोर्डिंग में रखा। मारवाड़ के किसान भाईयो से सम्पर्क कर 1930 तक 16 छात्रों को प्रवेश दिलाया। बाद में अपनी माटी में ज्ञान ज्योति जगाने तथा शिक्षा प्रसार हेतु अपना स्थानान्तरण बायतु करवा लिया, जहां इन्होने सामाजिक कुरीतियों का त्याग एवं शिक्षा का शंख फूंका।[उद्धरण चाहिए]
सन् 1930 में बाड़मेर स्थानान्तरण पर अपनी जन्मस्थली को कर्मस्थली बनाया। गांव-गांव, ढांणी-ढाणी पदयात्राओं द्वारा शिक्षा का मंत्र फूंका। ग्यारह किसान पुत्रो को अपने साथ बाड़मेर लाकर अपने घर पर रखकर शिक्षादान का कार्य शुरू किया। जहां इनकी धर्मपत्नी व पुत्रवधु अपने हाथ से चक्की पीस कर रोटी बनाकर उन बच्चों को खिलाती। 1932 में रेलवे स्वर्ण जयन्ती पर आपको उत्कृष्ट सेवा मेडल से सम्मानित किया। 1933 में आपका स्थानान्तरण सिंध होने पर किसान पुत्रो की पढाई व देखरेख का भार अपने ज्येष्ठ पुत्र केसरीमल को रेलवे की नौकरी छुड़ाकर सौंपा। 1934 में पड़ौस में मकान लेकर बोर्डिंग का कार्य प्रारंभ किया और अनेक छात्रों को प्रवेश दिलाया। 1937 में फिर रेलवे ने इन्हे शिमला में उत्कृष्ट सेवा मेडल से सम्मानित किया।[उद्धरण चाहिए]
इन्होने 1940 में गांव-गांव घूमकर चन्दा एकत्रित कर बाड़मेर किसान छात्रावास का निर्माण शुरू कर 1946 में इसे पूर्ण करवाया। वे समाज सुधार के कार्यो में बड़ी दिलचस्पी लेते थे और लोगो से कहते थे कि ब्याह शादियों में खर्चा कम करो, व्यसन से दूर रहो, ओसर-मोसर बंद करो, लड़ाई झगड़ो से दूर रहो। 1946 में सेवानिवृत होकर बाड़मेर किसान सभा की स्थापना की और किसानों पर लगाई लाग-बाग प्रथा का विरोध कर आंदोलन की राह अपनाई।
सन् 1949 में प. जवाहरलाल नेहरू के जोधपुर आगमन पर आप बलदेवराममिर्धा के साथ मिलकर किसानों के दुःख दर्द, जुल्मोसितम से उन्हे अवगत कराया। और अंत में जागीर प्रथा का अंत करवा कर दम लिया। सन् 1951 में आप कांग्रेस में शामिल हुए और सन् 1952 में हिन्दुस्तान के प्रथम आम चुनाव में आपने गुड़ामालानी क्षेत्र से विधानसभा चुनाव लड़ा परन्तु पराजित हुए। सन् 1956 में आप बाड़मेर तहसील पंचायत से सरपंच निर्वाचित हुए। सन् 1957 में पुनः आम चुनाव में गुड़ामालानी क्षेत्र चुनाव लड़कर विधायक चुने गये। उस जमाने में विधानसभा का चुनाव किसान पुत्र द्वारा जीतना आठवे आश्चर्य से कम नहीं था। विधायक के रूप ‘ मृत्युभोज निषेध‘ जैसा महत्वपूर्ण कानून पारित करवाया तथा 1962 में आपने राजनीति से संन्यास ग्रहण कर अपने मंझौले पुत्र गंगाराम चैधरी को अपने मार्गदर्शन में कांग्रेस टिकट पर विधायक बनाया।[उद्धरण चाहिए]
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 15 अगस्त 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 15 अगस्त 2016.
- ↑ "Latest Chouhtan News 16/03/2015: रामदान में समाज को जोड़ने की असीम शक्ति थी: जाखड़". www.bhaskar.com. 2015-03-16. मूल से 20 अगस्त 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2016-08-15.