रामलोचन विश्वकर्मा सांवरिया, जिन्हें उनके उपनाम सांवरिया से जाना जाता है, एक भारतीय लोक लेखक थे। उन्होंने मुख्य रूप से नौटंकी, जो दक्षिण एशिया की एक लोक प्रदर्शन कला है, में योगदान दिया।

रामलोचन विश्वकर्मा ( सांवरिया )
रामलोचन विश्वकर्मा ( सांवरिया )

उनका जन्म प्रयागराज, उत्तर प्रदेश, भारत में हुआ था। आपके द्वारा लोकगीत की पुस्तकों में मस्ताना सावन, बेलवरिया बहार, बेलवरिया नवरंग, सितारे कव्वाल एवं आशिक कव्वाल। माँ का कलेजा, सावन सिंगार, सावन मन भावन, प्यासा सावन, बेलवरिया लोटपोट, बेलवरिया लहालोट, बेलवरिया बुलबुल, सती सावित्री, विश्वकर्मा संदेश, ये दुनिया ज्यों-ज्यों आगर है, सांगीत छीन लो रोटी[1], चन्द्रमुखी, डाकू हीरा लाल, शिव भक्त शिकारी, अछूत लड़की, अपना खून अपना दुश्मन, इन्दल हरण[2], श्री कृष्ण अर्जुन संग्राम, दहेज की राख[3], दगाबाज मामा, सूरज-चन्दा, बेईमान, बैरगिया नाला, अनमोल कफन, राखी और रायफल, रोटी और बेटी, पापी देवता, साधू और सैतान, दिलदार डाकू, चम्बल का लुटेरा, प्यार की गली, लुटेरा फकीर, बलम परदेशिया, दूल्हन और कफन, भीमा का भीम, दौलत का चक्कर आदि। इसके अलावा जैहिन्द अखाड़े की अप्रकाशित पांडुलिपियाँ जिसमें सां० सावित्री बाई फूले, पंचामृत, मामा मछिन्दर, श्री कृष्ण- सुदामा। प्रकाशित पुस्तके एवं सांवरिया जी द्वारा रचित अप्रकाशित रचनाएं पंजीकृत सांवरिया लोक सांस्कृतिक सामाजिक संस्थान गंधियांव करछना प्रयागराज संचालक/सचिव वेदानन्द विश्वकर्मा "वेद"सांवरिया द्वारा संरक्षित एवं सुरक्षित है ।

संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार ने लोक लेखन में उनके योगदान के लिए उन्हें वरिष्ठ अध्येतावृत्ति से सम्मानित किया।[4]

प्रारंभिक जीवन और पृष्ठभूमि

संपादित करें
 
छीन लो रोटी - रामलोचन सांवरिया

रामलोचन सांवरिया का जन्म 22 जुलाई, 1951 को उत्तर प्रदेश के प्रयागराज जिले के करछाना के गांधियाव गाँव में हुआ था। वे एक पारंपरिक भारतीय लोक कला परिवार से ताल्लुक रखते थे। उनके पिता ब्राम्हयज्ञ विश्वकर्मा एक कुशल बढ़ई, कवि और नौटंकी कलाकार थे, जबकि उनके दादा राम कुमार भगत भी एक लोक कलाकार थे।[5]

नौटंकी में करियर

संपादित करें

रामलोचन विश्वकर्मा नौटंकी की दुनिया में एक प्रमुख शख्सियत के रूप में उभरे, जो कि उत्तर भारत में प्रचलित पारंपरिक लोक रंगमंच का एक रूप है। नौटंकी, अपनी जीवंत प्रस्तुतियों और सशक्त कहानी कहने की कला के लिए जानी जाती है, जिसके माध्यम से उन्होंने शाश्वत और समकालीन दोनों विषयों को व्यक्त किया। रामलोचन भारतीय संस्कृति से प्रेरित दिलचस्प कथानक गढ़ने के लिए प्रसिद्ध थे, जो साथ ही साथ आधुनिक सामाजिक मुद्दों को भी संबोधित करते थे।

आधुनिक नौटंकी में योगदान

संपादित करें

रामलोचन विश्वकर्मा सांवरिया नौटंकी परंपरा में प्रमुख योगदान इस कला रूप को आधुनिक बनाने का उनका प्रयास था। पारंपरिक रूप से पौराणिक और ऐतिहासिक विषयों पर केंद्रित नौटंकी, रामलोचन के प्रभाव में सामाजिक मुद्दों को उठाने लगी, जो आधुनिक दर्शकों के साथ गहराई से जुड़ सके। मुंशी प्रेमचंद की कहानी नमक का दरोगा का उनका रूपांतरण इस बात का एक बेहतरीन उदाहरण है कि उन्होंने कैसे क्लासिक साहित्यिक कृतियों को लोक कला की परंपरा में एकीकृत किया। यह प्रस्तुति न्याय और भ्रष्टाचार जैसे विषयों से संबंधित थी, जिसने प्रेमचंद की कहानी को नौटंकी के माध्यम से जीवंत कर दिया। इतना ही नही भारत सरकार द्वारा संचालित विभिन्न योजनाओं जैसे नशा उन्मूलन, नारी सशक्तीकरण, पर्यावरण सुरक्षाससुरक्षा, झाड़ू मारो गांव सुधार, पीएम किसान, पीएम बंब जैसे तमाम विषयो पर लघु नौटंकिया लिखा।ोविड-19 महामारी के दौरान, रामलोचन ने अपनी रचनाओं में समकालीन चिंताओं को प्रतिबिंबित करने की अपनी क्षमता को और अधिक स्पष्ट किया। उन्होंने ऐसी प्रस्तुतियां तैयार कीं, जो महामारी के दौरान आम लोगों द्वारा झेली गईं संघर्षों और कठिनाइयों को उजागर करती थीं, इस प्रकार नौटंकी को सामाजिक टिप्पणी और जन जागरूकता का एक माध्यम बना दिया।

रामलोचन विश्वकर्मा का 10 सितंबर 2024 को निधन हो गया, लेकिन वह अपने समय के सबसे महत्वपूर्ण नौटंकी लेखकों में से एक के रूप में एक स्थायी विरासत छोड़ गए। पारंपरिक लोक कला को आधुनिक विषयों के साथ मिलाने के उनके नवाचारी कार्य ने यह सुनिश्चित किया कि नौटंकी एक जीवंत और विकसित होती हुई कला रूप बनी रहे। उनके योगदान आज भी लोक कलाकारों को प्रेरित करते हैं और समकालीन भारतीय संस्कृति में नौटंकी की भावना को जीवित रखते हैं।

  1. Hansen, K. (2023). Grounds for Play: The Nautanki Theatre of North India. University of California Press. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-520-91088-1.
  2. Hansen, K. (2023). Grounds for Play: The Nautanki Theatre of North India. University of California Press. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-520-91088-1.
  3. Hansen, K. (2023). Grounds for Play: The Nautanki Theatre of North India. University of California Press. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-520-91088-1.
  4. Vishwakarma, Ramlochan. "Performer chronicles region's Nautanki for posterity". Times of india.
  5. Vishwakarma, Ramlochan. "Ramlochan Vishwakarma". Times of India.