बीकानेर का इतिहास
बीकानेर | |
स्थिति | पूर्व-उत्तरी राजस्थान |
१९वीं शताब्दी पताका | |
राज्य की स्थापना: | १४८८ |
भाषा | राजस्थानी भाषा |
वंश | राठौड़ (१४८८ से १९४९) |
ऐतिहासिक राजधानी | बीकानेर |
एक अलमस्त शहर है, अलमस्त इसलिए कि यहाँ के लोग बेफ़िक्री के साथ अपना जीवन यापन करते हैं। इसका कारण यह भी है कि बीकानेर के सँस्थापक राव बीकाजी अलमस्त स्वभाव के थे। अलमस्त नहीँ होते तो वे जोधपुर राज्य की गद्दी को यों ही बात-बात में नहीं छोड़ देते ।
इसके पीछे दो कहानियाँ लोक में प्रचलित है। एक तो यह कि, नापा साँखला जो कि बीकाजी के मामा थे उन्होंने जोधाजी से कहा कि आपने भले ही सांतळ जी को जोधपुर का उत्तराधिकारी बनाया किंतु बीकाजी को कुछ सैनिक सहायता सहित सारुँडे का पट्टा दे दीजिये। वह वीर तथा भाग्य का धनी है। वह अपने बूते खुद अपना राज्य स्थापित कर लेगा। जोधाजी ने नापा की सलाह मान ली और पचास सैनिकों सहित पट्टा नापा को दे दिया। बीकाजी ने यह फैसला राजी खुशी मान लिया। उस समय कांधल जी, रूपा जी, मांडल जी, नथु जी और नन्दा जी ये पाँच सरदार जो जोधा के सगे भाई थे साथ ही नापा साँखला, बेला पडिहार, लाला लखन सिंह बैद, चौथमल कोठारी, नाहर सिंह बच्छावत, विक्रम सिंह पुरोहित, सालू जी राठी आदि कई लोगों ने बीकाजी का साथ दिया। इन सरदारों के साथ बीकाजी ने बीकानेर की स्थापना की। सालू जी राठी जोधपुर के ओंसिया गाँव के निवासी थे। वे अपने साथ अपने आराधय देव मरूनायक या मूलनायक की मूर्ति साथ लाये। आज भी उनके वंशज साले की होली पे होलिका दहन करते हैं। साले का अर्थ बहन के भाई के रूप में न होकर सालू जी के अपभ्रंश के रूप में होता है
बीकानेर की स्थापना के पीछे दूसरी कहानी ये हैं कि एक दिन राव जोधा दरबार में बैठे थे बीकाजी दरबार में देर से आये तथा प्रणाम कर अपने चाचा कांधल से कान में धीर-धीरे बात करने लगे। यह देख कर जोधा ने व्यंग्य में कहा “ मालूम होता है कि चाचा-भतीजा किसी नवीन राज्य को विजित करने की योजना बना रहे हैं’। इस पर बीका और कांधल ने कहा कि यदि आप की कृपा होगी तो यही होगा। और इसी के साथ चाचा – भतीजा दोनों दरबार से उठ के चले आये तथा दोनों ने बीकानेर राज्य की स्थापना की। इस संबंध में एक लोक दोहा भी प्रचलित है ‘ पन्द्रह सौ पैंतालवे, सुद बैसाख सुमेर थावर बीज थरपियो, बीका बीकानेर ‘ इस प्रकार एक ताने की प्रतिक्रिया से बीकानेर की स्थापना हुई ।
बीकानेर के राठौड़ वंश के शासक
संपादित करेंराव बीका (1465-1504) - बीकानेर के संस्थापक
राव नरसी (1504-1505)- राव बिका के पुत्र
राव लूणकरण (1504-1526) :- अपने बड़े भाई राव नरसी(नारा उपनाम) की मृत्यु के बाद लूणकरण शासक बना। ये शक्तिशाली शासक थे, इन्होने राज्य का विस्तार किया और 1509 में दद्रेवा के चौहानों, 1512 में फतेहपुर के कायमख़ानियों, चैटवाड़ के चायतों और 1513 में नागौर के खानों से सफल युद्ध किए,नारनौल के मुस्लिम शासक पर भी आक्रमण किया। निर्माण :- लूणकरण कस्बा-- Presant time [Loonkaransir]
लूणकरण झील [salt]
पुत्री :- बालाबाई जिसकी शादी आमेर नरेश पृथ्वीराज कच्छवाहा से हुई। धोसी युद्ध :- धौसा नामक स्थान पर 31 मार्च 1526 को नारनौल के नवाब शेख अबीमीरा से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए।
राव जैतसी (1526-1542) (जेत्रसिंह) :- पिता की मृत्यु के बाद शासक बना मुगलों से युद्ध :- बीठू सूजा कृत राव जैतसी रो छंद के अनुसार 26 अक्तूम्बर 1534 में कामरान बाबर के पुत्र को पराजित किया एवं भटऩेर दुर्ग छीना। खानवा युद्ध :- इस युद्ध में राणा सांगा का साथ देने के लिए अपने पुत्र कल्याणमल को भेजा। पाहेबा का युद्ध(1542) :- इसे साहेबा का युद्ध भी कहते है। मारवाड़ शासक मालदेव से लड़ते हुए मृत्यु को प्राप्त। बीकानेर पर मालदेव का अधिकार हो गया।
राव कल्याणमल (1542-1573)- कल्याणमल के दो पुत्र हुए
1 राय सिंह (1573-1612) 2. पृथ्वीराज राठौड़
राव दलपत सिंह जी
कर्ण सिंह (1631-1669)
अनूप सिंह (1669-1698)
महाराजा सरूपसिंह जी (1698-1700)
महाराजा सुजान सिंह जी (1700-1736)
महाराजा जोरावर सिंह जी (1736-1746)
महाराजा गजसिंह जी (1746-1787)
महाराजा राजसिंह जी (1787)
महाराजा प्रताप सिंह जी (1787)
महाराजा सुरत सिंह जी (1787-1828)
महाराजा रतन सिंह जी (1828-1851)
महाराजा सरदार सिंह जी (1851-1872)
महाराजा डूंगरसिंह जी (1872-1887)
महाराजा गंगासिंह जी (1887-1943)
महाराजा सार्दुल सिंह जी (1943-1950)
महाराजा करणीसिंह जी (1950-1988)
महाराजा नरेंद्रसिंह जी (1988)
Edited By Dharmendar Gour Archived 2019-08-22 at the वेबैक मशीन
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ "Bikaner". मूल से 19 अगस्त 2007 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि १९ मई २०१६.
- ↑ Tod 1920, पृष्ठ 141
- ↑ Chaurasia, R.S. (2004). History of the Marathas. India: Atlantic Publishers & Dist. पृ॰ 13. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 8126903945.