राष्ट्रीय पादप जैवप्रौद्योगिकी अनुसंधान केंद्र
राष्ट्रीय पादप जैवप्रौद्योगिकी अनुसंधान केंद्र (The National Research Centre on Plant Biotechnology (NRCPB) की स्थापना भारतीय कृषि के लिए अति आवश्यक जैव प्रौद्योगिकी के लाभ प्रदान करने के लिए सन् 1985 में की गई। मजबूती व आत्म निर्भरता के लिए शुरूआती दिनों में केन्द्र ने उत्तक संर्वधन (टिशू कल्चर) से संबंधित अनुसंधान कार्य किया। अब यह केन्द्र प्लांट बायोटेक्नोलॉजी के अग्रगामी क्षेत्रों में असर देने वाले अनुसंधान दे रहा है। जीन क्लोनिंग और सस्य विज्ञान में उपयोगी प्रोमोटर, जैविक और अजैविक स्टैस प्रतिरोधी टांसजैनिक फसलों का विकास, बनावट और कार्य संबंधी जीनोमिक्स, आणविक जीव विज्ञान आनुवंशिक विभिन्नताओं का प्रयोग, हैट्रोसिस का प्रयोग जैनेटिक इंजीनियरिंग के द्वारा गुणवत्ता सुधार और जैविक नाइट्रोजन स्थिरीकरण, मुख्य अनुसंधान कार्य हैं जो इस केन्द्र में चलाए जा रहे हैं। भा.कृ.अ.प. प्रणाली में पादप जैव प्रौद्यागिकी अनुसंधान को प्रोत्साहित करने और उसे मजबूत बनाने के लिए परस्पर और अंतरा-संस्थानगत संपर्क विकसित करने के लिए यह केन्द्र अग्रणी भूमिका निभा रहा है और इसने मानव संसाधन की उन्नति में मुख्य भूमिका निभाई है।
राष्ट्रीय पादप जैवप्रौद्योगिकी अनुसंधान केंद्र | |
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उद्देश्य
संपादित करें- जीव वैज्ञानिक प्रणाली की आणविक क्रियाविधि जानने के लिए पादप आणविक जीव विज्ञान अनुसंधान का प्रयोग।
- फसलों के सुधार के लिए बायोटेक्नोलॉजी के साधन और तकनीकी का प्रयोग।
- कृषि उपज को बढ़ाने के लिए जीनोमिक्स ज्ञान का प्रयोग।
- प्लांट मोलिकुलर बायोलॉजी के लिए एक मुख्य राष्ट्रीय केन्द्र के रूप में कार्य करना और प्लांट बायोटेक्नोलॉजी के क्षेत्र में प्रशिक्षित मानव शक्ति को तैयार करना।