राष्ट्रीय वांतरिक्ष प्रयोगशालाएं

राष्‍ट्रीय वांतरिक्ष प्रयोगशालाएं (अंग्रेज़ी:नेशनल एरोस्पेस लैबोरेटरीज़, एनएएल) वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद का एक संघटक है, जो वैमानिकी एवं सम्‍बद्ध क्षेत्र में भारत का सर्वश्रेष्‍ठ नागर अनुसंधान एवं विकास संस्‍थापन है एनएएल की स्‍थापना 1959 में दिल्‍ली में हुई थी फिर 1960 में इसे बेंगलूर लाया गया। एनएएल का मुख्‍य उद्देश्‍य है सुदृढ विज्ञान द्वारा वांतरिक्ष प्रौद्योगिकी का विकास तथा उडा़न यानों के अभिकल्‍प एवं निर्माण में इनका प्रयोगात्‍मक प्रयोग सामान्‍य औद्योगिक अनुप्रयोगों में आधारभूत वांतरिक्ष प्रौद्योगिकियों का प्रयोग करना भी एनएएल का उद्देश्‍य है। 1959 में जब एनएएल की स्‍थापना हुई (1993 तक राष्‍ट्रीय वैमानिकी प्रयोगशालाएं कहता था) वैमानिकी क्षेत्र में उच्‍च स्‍तरीय अनुसंधान एवं विकास और राष्‍ट्रीय वांतरिक्ष कार्यक्रमों केलिए अत्‍याधुनिक सुवधिाएं उपलब्‍ध कराना ही इसका प्रमुख उद्देश्‍य था

राष्‍ट्रीय वांतरिक्ष प्रयोगशालाए
नेशनल एरोस्पेस लैबोरेटरीज़
कंपनी प्रकारसार्वजनिक प्रतिष्ठान
उद्योगएयरोस्पेस एवं रक्षा (सैन्य)
मुख्यालयभारत बंगलुरु, कर्नाटक, भारत
आयवृद्धि US$ियन (फिस्कल वर्ष २००७)
वेबसाइटhttp://www.nal.res.in/hindi/

जैसे अपने दृश्‍य वक्‍तव्‍य में दर्शाया है, एनएएल का मुख्‍य उद्देश्‍य है सुदृढ विज्ञान द्वारा वांतरिक्ष प्रौद्योगिकी का विकास तथा उडा़न यानों के अभिकल्‍प एवं निर्माण में इनका प्रयोगात्‍मक प्रयोग सामान्‍य औद्योगिक अनुप्रयोगों में आधारभूत वांतरिक्ष प्रौद्योगिकियों का प्रयोग करना भी एनएएल का उद्देश्‍य है। वांतरिक्ष क्षेत्र में एनएएल का कार्य पूर्ण व्‍यापी है कुछ ही सालों में, एनएएल ने भारतीय वांतरिक्ष कार्यक्रमों के लिए महत्‍वपूर्ण योगदान प्रदान किया है, कभी कभी इन कार्यक्रमों के लिए राष्‍ट्रीय एजेण्‍डा भी बना दिया है पिछले दशक के दौरान एनएएल ने नागर क्षेत्र हेतु छोटे व मध्‍यम आकारवाले वायुयान के अभिकल्‍प एवं विकास पर किए गए प्रयासों में भी अग्र रहा है।

आर्थिक स्थिति

संपादित करें

एनएएल का सामर्थ्‍य कुछ ही सालों में प्राप्‍त अपनी विशेषज्ञता एवं सुविधाओं के भंडार से है इस प्रभावशाली अवसंरचना की वजह से एनएएल विभिन्‍न राष्‍ट्रीय कार्यक्रम एवं भारत और विदेशी उद्योगों केलिए प्रशिक्षण एवं उपप्रणाली विकास हेतु बहुसंख्‍या में अनुसंधान व विकास संविदा प्राप्‍त करते रहने में सफल रहा है पिछले दशक में (1987-97) एनएएल ने करीब 60 मिलियन यूएस $ के लगभग 400 परियोजनाएं प्राप्‍त किया। पिछले कुछ वर्षों में एनएएल ने अपने बजट का 60% बाह्य संसाधन द्वारा प्राप्‍त किया है, यह सीएसआईआर प्रयोगशालाओं के लिए अद्वितीय उपलब्‍धी है। मुख्‍यतःवांतरिक्ष क्षेत्र हेतु विकसित विभिन्‍न सुविधाएं एवं बहु-वषियी विशेषज्ञता को उच्‍च तकनीकों के अन्‍य क्षेत्र में भी प्रयोग किया जाता है। विफलता विश्‍लेषण केन्‍द्र के रूप में एनएएल मान्‍यता प्राप्‍त है और वांतरिक्ष खेत्र में विफलता एवं दुर्घटना की स्थिति में शोध करने हेतु और अन्‍य सामान्‍य सुविधाओं में अपनी सहायता भी उपलब्‍ध कराता है।

सुविधाएं

संपादित करें

एनएएल के अन्‍य मुख्‍य सुविधाओं में ध्‍वानिक परीक्षण सुविधा, टर्बोमशीनरी और दहन अनुसंधान सुविधाएं, सम्मिश्र संरचना प्रयोगशाला, ब्‍लैक बक्‍स प्रदायी पठन प्रणाल और एफआरपी संविरचना सुविधाएं भी शामिल है। एनएएल कर्मचारियों की संख्‍या 1250 है जिसमें करीब 350 अनुसंधान एवं विकास वैज्ञानिक PhD प्राप्‍त हैं।

एनएएल वांतरिक्ष और गैर-वांतरिक्ष दोनों क्षेत्रों में अनुसंधान एवं विकास सहायता, विशेषज्ञता और सेवाएं उपलब्‍ध करा सकता है। हाल ही के कुछ मुख्‍य सुविधाओं में भारत के लघु लडाकू वायुयान (एलसीए) कार्यक्रम हेतु कार्बन तंतु संयुक्‍त पंखों का विकास, एचएएल हेतु पूर्ण-स्‍वचालित आटोक्‍लेव का विकास एवं संविरचना, एलसीए के लिए सह-अभिसाधित फिन एवं रडार का विकास और एचएएल के उन्‍नत लघु हेलिकाप्‍टर (एएलएच) के लिए शेक परीक्षण सुविधाएं भी शामिल हैं।

वांतरिक्ष अनुसंधान एवं विकास के उपोत्‍पादन तकनीकों ने विश्‍वभर के अन्‍य गैर वांतरिक्ष क्षेत्र के लिए महत्‍वपमर्ण योगदान दिया है। इस पहलू को ध्‍यान में रखते हुए, एनएएल ने अपने मुख्‍य अनुसंधान एवं विकास कार्यक्रमों से उपोत्‍पादन तकनीकों के विकास हेतु विशेष प्रयास किया है। पिछले दशक के दौरान विकसित ऐसे करीब 30 प्रौद्योगिकियों के लिए लाइसेंस सफलतापूर्वक प्राप्‍त किया है और 100000 यूएस $ में 54 इंडस्ट्रियों को स्‍थानांतरित किया है इन तकनीकों का कुल उत्‍पादन मूल्‍य 10 मिलियन यूएस $ से अधिक है1 वाणिज्‍य विकास कार्यविधियों के एनएएल कार्य स्‍वरूपों में इन-हाउस परियोजनाओं द्वारा व्‍यापारीकरण, प्रायोगिक परियोजनाएं, उद्योग प्रयोगशाला से संपर्क, बहु-अभिकरण सहयोग परियोजनाएं और अंतर्राष्‍ट्रीय संविदाएं भी शामिल हैं। पिछले 24 महीनों के दौरान एनएएल ने 25 मिलियन यूएस $ से अधिक मूल्‍य के 12 संविदाएं प्राप्‍त की है एनएएल ने बाइंग, यूएसए, नगर विमानन प्राधिकरण, यूके, आईबीएम, आईबीएम कार्पोरेशन, यूएसए, हिटाची, जापान, आदि के लिए करीब एक दर्जन अंतर्राष्‍ट्रीय परियोजनाओं का जिम्‍मेवारी भी ली है।

एनएएल की स्‍थापना 1 जून 1959 को दिल्‍ली में हुई जो 1 मार्च 1960 को बेंगलूर स्‍थानांतरित हुआ1 प्रारंभिक वर्ष (1960-67) बेलंदूर सरोवर पर पवन सुरंगों की स्‍थापना में ही बीत गए; मुख्‍यत: 1.2m ि‍त्रध्‍वनिक अवधमन पवन सुरंग जो अभी भी अपनी भव्‍यता बनायी रखी है1

अगले दशक में संघटन, सुविधाऍं, वैमानिकी क्षेत्र्‍ के हर प्रायोगिक पहलू को ध्‍यान में रखते हुए अनुसंधान एवं विकास प्रभागों का सृजन; सैद्धांतिक एवं प्रायोगिक वायुगतिकी, संरचना, पदार्थ, नोदन इलेक्‍ट्रानिकी और प्रणाली1

वर्ष 1970 के मध्‍यंतर में भारतीय वैमानिकी क्षेत्र में एनएएल प्रमुख कर्ताधर्ता बन गया1 एनएएल को सीएसआईआर के एक उत्‍तम प्रबंधक राष्‍ट्रीय प्रयोगशालाएं, जिसने वांतरिक्ष क्षेत्र के सैकडों उच्‍च विज्ञान, उच्‍च प्रौद्योगिकी अनुसंधान एवं विकास परियोजनाओं की जिम्‍मेदारी लिया, के रूप में मान्‍यता प्राप्‍त हुआ1 एनएएल के अ एवं वि प्रयास के तत्‍व हैं - उत्‍कृष्‍टता की ओर लक्ष्‍य, राष्‍ट्रीय रणनीति में अत्‍म-नर्भिरता, प्रौद्योगिकी प्रमाण (अधिकतर पाइलट प्‍लांट प्रदर्शन तत्‍व के माध्‍यम से) और उत्‍कृष्‍ट परीक्षण व सेवा सुवधिाओं का सृजन1 दख:द की बात है कि 1960 की प्रचण्‍ड सफलता के उपरांत 1970 की भारतीय वायुयान विकास कार्यविधियों में अवनति के कारण एनएएल की स्थिति ऐसी रही कि बहुत सुंदर एवं सजी हुई दुल्‍हन मगर जाएगी कहाँ1

एनएएल लीडरों एवं शुभचिंतको की वेक्तिक कोशिशों के कारण 1980 के प्रारंभ से समय बदलने लगा1 भारत का लघु लड़ाकू वायुयान (एलसीए) को 1983 में सरकार से विधिवत मंजूरी मिल गयी और इस परियोजना के कारण एनएएल के अनुसंधान एवं विकास गतिविधियों में तेेजी आ गई1 इस दशक के दौरान भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम में भी अधिक विकास हुआ1 ये दोनों भारत के डीआरडीओ के मिसाइल विकास कार्यक्रम की मांग एवं सफलता के कारण बने जिनकी वजह से एनएएल के पास अधिक काम मिले1 इसी दशक के दौरान एनएएल को वांतरिक्ष क्षेत्र में राष्‍ट्रीय स्‍तर पर मान्‍यता प्राप्‍त हुई1

1990 के दशक में एनएएल बहुत व्‍यस्‍त रहा जिसमें राष्‍ट्रीय वांतरिक्ष कार्यक्रमों में एनएएल की निरंतर शामीलता और नगर विमानन क्षेत्र में खुद का पहल1 समय के साथ एनएएल की प्राथमिकता और भूमिका बदल रही है1 वांतरिक्ष क्षेत्र में देश का एक अत्‍युत्‍तक अनुसंधान एवं विकास केन्‍द्र बनने का संकल्‍प जिसे एनएएल के 5 निदेशक डॉ पी नीलकंठन, डॉ एस आर वल्‍लूरी, प्रो॰ आर नरसिंहा, डॉ के एन राजू और अब डॉ टी एस प्रहलाद द्वारा पूरा किया जा रहा है


एनएएल की शुरुआत 1959-60 में बेंगलूर के पूर्व महाराजा के महल में हुई। डॉ पी नीलकंठन, डॉ एस आर वल्‍लूरी, प्रो। आर नरसिंहा, डॉ के एन राजू डॉ टी एस प्रह्लाद और डॉ बी आर पै जैसे पूर्व निदेशकों की दीर्घ दृष्टि एवं प्रतिबद्धता के कारण ही इसका विकास संभव रहा।

इन्हें भी देखें

संपादित करें

बाहरी कड़ियाँ

संपादित करें