राष्ट्रीय शिक्षा परिषद

राष्ट्रीय शिक्षा परिषद - बंगाल (National Council of Education - Bengal ) [1] सतीश चंद्र मुखर्जी तथा अन्य भारतीय राष्ट्रवादियों द्वारा सन १९०६ में बंगाल में स्थापित एक संगठन था जिसका उद्देश्य विज्ञान और प्रौद्योगिकी का बढ़ावा देना था। यह स्वदेशी औद्योगीकरण आन्दोलन का एक भाग था। इस परिषद ने बंगाल नेशनल कॉलेज और बंगाल तकनीकी संस्थान की स्थापना की। बाद में ये दोनों संस्थान मिलकर जादवपुर विश्वविद्यालय बना। परिषद के अधीन काम करने वाली संस्थाओं को स्वदेशी गतिविधियों का केंद्र माना जाता था। अंग्रेज सरकार ने इनमें देशभक्ति के गीतों के गायन जैसी राष्ट्रवादी गतिविधियों पर प्रतिबंध लगा दिया था। [2] [3]

पृष्ठभूमि संपादित करें

आधुनिक भारत के तीन विश्वविद्यालयों में से एक कलकत्ता विश्वविद्यालय [4] अंग्रेजों द्वारा कलकत्ता में 1861 में स्थापित किया गया था ताकि भारत में अभिजात वर्ग के बीच पश्चिमी दार्शनिक विचारों का प्रसार किया जा सके। 19वीं शताब्दी के अंत में, भारतीय उपमहाद्वीप के भीतर एक मजबूत राष्ट्रवादी आंदोलन और पहचान उभरी। यह आन्दोलन बंगाल में सर्वाधिक प्रबल था जहाँ २०वीं शताब्दी के आरम्भ में स्वदेशी आंदोलन प्रमुखता से उभरा। इसमें युवाओं की पर्याप्त भागीदारी थी। प्रमुख राष्ट्रवादियों ने कलकत्ता विश्वविद्यालय को मुख्य रूप से एक पश्चिमी संस्थान के रूप में समझा। भारतीय दर्शन और मानविकी के बजाय इस विश्वविद्यालय में पश्चिमी दर्शन और मानविकी के अध्ययन पर अधिक बल था। इसके स्नातक बड़ी संख्या में आईसीएस और प्रशासनिक अधिकारी बनते थे जिसे ब्रिटिश उपनिवेशवाद की रक्षा के लिये एक मजबूत दीवार बनाने के रूप में देखा जाता था। इसी से कलकत्ता विश्वविद्यालय को गोलदीघीर गुलामखाना (गोलदीघी का गुलामखाना) कहा जाने लगा। (यह विश्वविद्यालय गोलदीघी झील के किनारे है।)

डॉन सोसायटी संपादित करें

सतीश चंद्र मुखर्जी दक्षिण कलकत्ता के भवानीपुर नामक उपनगर में शिक्षक थे। उन्होंने 1895 में भागवत चतुष्पाठी नामक संस्था की स्थापना की। इस संस्थान ने इतिहास एवं भारतीय धर्म और दर्शन की शिक्षा को बढ़ावा दिया। 1897 में सतीश चन्द्र मुखर्जी ने डॉन (Dawn) पत्रिका की स्थापना की। 1902 में उन्होंने डॉन सोसाइटी की स्थापना की। डॉन सोसायटी तथा डॉन पत्रिका के माध्यम से उन्होंने भारतीय दर्शन और विचारों को आगे बढ़ाया । उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम की इस बात के लिये आलोचना की कि उसमें राष्ट्र निर्माण के लिए जरूरी चीजों पर बल नहीं दिया गया था। मुखर्जी के काम और विचारों को उस समय के बंगाल के प्रमुख दिग्गजों के बीच समर्थन मिला। जल्द ही, डॉन सोसायटी ने भारतीय शिक्षा देने का आह्वान किया जिसमें विज्ञान पर बल देने के साथ-साथ भारतीय विचारों की ओर ध्यान देने की बात कही जा रही थी। [5]

सन्दर्भ संपादित करें

  1. "Shaping the Dream". National Council of Education Bengal. मूल से 8 June 2020 को पुरालेखित.
  2. Palit, Chittabrata (2011). Gupta, Uma Das (संपा॰). Science and modern India : an institutional history, c. 1784-1947. Delhi: Longman Pearson Education. पपृ॰ 851–852. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9788131753750.
  3. "National Council of Education". Banglapedia (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2017-08-23.
  4. Other two being Bombay (now Mumbai) and Madras University
  5. Chattopadhyaya, Debi Prasad (1999). History of Science, Philosophy and Culture in Indian Civilization: pt. 1. Science, technology, imperialism and war. Pearson Education India. पृ॰ 851. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-317-2818-5.

इन्हें भी देखें संपादित करें