राष्ट्रीय श्रम आयोग (National Commission on Labour) भारत की एक संविधिक संस्था है जो श्रम कानूनों में संशोधन प्रस्तावित करती है।

इतिहास संपादित करें

प्रथम राष्ट्रीय श्रम आयोग संपादित करें

प्रथम राष्ट्रीय श्रम आयोग की स्थापना भारत सरकार ने दिसम्बर, 1966 में किया। श्री पी0वी0 गजेन्द्रडकर की अध्यक्षता में देश के मालिकों तथा श्रमिकों के मध्य अच्छे सम्बन्धों को प्रोत्साहन देने की दिशा में इस आयोग को स्थापित किया गया। इसमें विशेष विषयों तथा कुछ महत्वपूर्ण उद्योगों की श्रम सम्बन्धी समस्याओं के अध्ययन के लिए 37 अध्ययन दल व समितियाँ नियुक्त की थी। आयोग ने अपनी रिर्पोट अगस्त, 1969 में सरकार को दी।

प्रथम राष्ट्रीय श्रम आयोग की प्रमुख सिफारिशें निम्न प्रकार हैं -

  • (१) आयोग ने केन्द्र तथा राज्य दोनों में स्थायी औद्योगिक सम्बन्ध आयोग (Permanent Industrial Relations Commission) स्थापित करने की सिफारिश की। प्रस्तावित आयोग के निम्न कार्य होने चाहिए -
  • (क) औद्योगिक सघर्षों कर न्यायिक निर्णय करना।
  • (ख) मध्यस्थता करना।
  • (ग) विभिन्न श्रम संघों को प्रतिनिधि संघों के रूप में मान्यता देना।
  • (२) प्रत्येक राजय में स्थायी श्रम न्यायलयों (Permanent Labour Courts) की स्थापना की जानी चाहिए। ये न्यायालय अवार्ड अधिकार व दायित्व के विषय में जो संघर्ष होंगे, उनका समाधान करेंगे। इसके अतिरिक्त ये अवार्ड तथा उनके अर्न्तगत अधिकार व दायित्व का अर्थ निकालेंगे एवं उनके कार्यान्वयन के विषय में जो विवाद व संघर्ष होंगे, उनका निपटारा करेंगे। इन श्रम न्यायलयों को अनुचित श्रम व्यवहार सम्बन्धी संघर्षों के सम्बन्ध में भी निर्णय करने का अधिकार होना चाहिए।
  • (३) आयोग ने न्यूनतम मजदूरी का सिद्धान्त स्वीकार करते हुए यह सिफारिश की कि मजदूरी निश्चित करते समय उद्योग की मजदूरी देय क्षमता को ध्यान में रखना चाहिए। आयोग के मतानुसार न्यूनमत मजदूरी (National Minimum Wage) समस्त देश के लिए निश्चित करना न तो सम्भव है और न वांछनीय ही है। यदि राष्ट्रीय न्यूनतम मजदूरी को देश के उन्नत तथा विकसित क्षेत्रों की दशाओं के अनुसार निश्चित किया जाय तो इसको सारे देश में लागू करना सम्भव न होगा और यदि इसको कम विकसित क्षेत्रों की दशाओं के अनुसार निश्चित किया जाये तो इसका कोई लाभ न होगा। अतः आयोग ने देश के विभिन्न क्षेत्रों के लिए अलग-अलग क्षेत्रीय न्यूनतम मजदूरी निश्चित करने की सिफारिश की।
  • (४) आयोग के मतानुसार औद्योगिक संघर्षों के समाधान के लिए सामूहिक सौदेबाजी (Collective Bargaining) करना एक श्रेष्ठ साधन है। इस साधन को प्रोत्साहित करने के लिए आयोग ने अनेक कदम उठाने की सिफारिश की। आयोग ने इस बात का भी सुझाव दिया कि मिल-मालिक श्रम संघों को अनिवार्य रूप से मान्यता दें, जिससे कि वे प्रबन्धकों के साथ सुविधापूर्वक सौदेबाजी कर सकें।
  • (५) हड़ताल एवं तालाबन्दियों के सम्बन्ध में आयोग का यह स्पष्ट मत है कि कुछ परिस्थितियों में इन साधनों का सहयोग करना न्यायसंगत एवं आवश्यक होता है। किन्तु आयोग ने हड़ताल एवं तालाबन्दियाँ करने पर कुछ पाबन्दयाँ लगाने की सिफारिश की है।
  • (६) आयोग ने श्रम संघों को संगठनात्मक तथा वित्तीय दृष्टि से मजबूत बनाने के लिए अनेक ठोस सुझाव दिये हैं। आयोग ने अनेक ऐसे भी सुझाव दिये हैं, जिनके क्रियान्वयन से श्रम संघों की परस्पर कटुता कम हो एवं वे राष्ट्र के आर्थिक विकास में सक्रिय योगदान देने में समर्थ हो सकें।
  • (७) आयोग के मतानुसार वास्तविक मजदूरी में निरन्तर वृद्धि, जो कि मजदूरी नीति का प्रमुख लक्ष्य है, उत्पादकता में वृद्धि के बिना प्राप्त करना असम्भव है। इसी उद्देश्य से आयोग ने प्रेरक योजनायें आपनायें जाने पर बल दिया है। आयोग ने इस बात का भी संकेत दिया कि समय-समय पर जीवन-निर्वाह की लागतें बदलने के साथ-साथ मजदूरी की दर पर भी पुनर्विचार किया जाना चाहिए। आयोग ने महंगाई भत्ते को बेसिक मजदूरी के साथ मिलाने की सिफारिश की।
  • (८) आयोग ने मजदूरी निश्चित करने के माध्यम के रूप में मजदूरी बोर्डों के महत्व पर बल दिया तथा उनके प्रभावपूर्ण क्रियान्वयन के लिए अनेक सुझाव दिये। अयोग के मतानुसार मजदूरी बोर्डों का जो भी सर्व-सम्मत निर्णय हो, उस पर अमल करना कानूनन अनिवार्य होना चाहिए। राष्ट्रीय श्रम आयोग के बहुमत की यह सिफारिश थी कि भविष्य निधि के लिए योगदान की दर वर्तमान सवा छः प्रतिशत से बढ़ाकर 8 प्रतिशत कर दी जाय तथा जहाँ पहले 8 प्रतिशत है वहाँ बढ़ाकर 10 प्रतिशत कर दी जाय।
  • (९) कृषि भूमि के सम्बन्ध में आयोग ने न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, 1949 को लागू करने का सुझाव दिया तथा कहा कि सबसे पहले इसे बहुत कम मजदूरी वाले क्षेत्रों में प्रारम्भ किया जाय।
  • (१०) इसके अतिरिक्त आयोग ने एक समन्वित संस्था केन्द्र तथा राज्य स्तरों पर समन्वय संस्था स्थापित करने की, कृषि श्रमिकों को गुटों में संगठित करने की, मजदूरी निर्धारण करने, उस पर पुनर्विचार करने आदि के विषय में भी सिफारिशें की हैं। सामान्य श्रम संहिता (Common Labour Code) के हित में आयोग ने अपना विचार प्रकट नहीं किया।

द्वितीय राष्ट्रीय श्रम आयोग संपादित करें

द्वितीय राष्ट्रीय श्रम आयेग भारत सरकार ने 15 अक्टूबर, 1999 को गठित किया। श्री रवीन्द्र वर्मा को इसका अध्यक्ष नियुक्त किया गया।