राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ, तिरुपति
राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ, आंध्र प्रदेश के तिरुपति में स्थित भारत का मानित विश्वविद्यालय है। यह पारम्परिक शास्त्राध्ययन का विशिष्ट केन्द्र है। यह विश्वविद्यालय अनुदान आयोग अनुभाग 3, अधिनियम 1956 के अधीन उच्च शिक्षा एवं शोध हेतु स्थापित हुआ है।
चित्र:National Sanskrit University logo.jpg | |
ध्येय | तमसोमाज्योतिर्गमय |
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Motto in English | Lead me into light from darkness |
प्रकार | केंद्रीय विश्वविद्यालय |
स्थापित | 1956 |
कुलाधिपति | एन गोपालस्वामी |
उपकुलपति | वी मुरलीधर शर्मा[1] |
स्थान | तिरुपति, आन्ध्र प्रदेश, भारत |
जालस्थल | www |
तिरुमला पर्वत के पादतल में स्थित यह राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ गत चार दशकों से संस्कृत के अध्ययन एवं अध्यापन की दृष्टि से छात्रों एवं विद्वानों का लक्ष्य हो गया है। यहाँ देश के विभिन्न भाग से विभिन्न धर्म जाति एवं भाषा के छात्र आते हैं जिससे यह विद्यापीठ एक छोटे भारत की तरह दिखता है। यहाँ अध्ययन एवं अनुसंधान के लिए उत्कृष्ट सुविधा एव अत्यन्त अनुकूल वातावरण उपलब्ध है। नए पाठ्यक्रम, भव्य भवन्, कम्प्यूटर आदि आधुनिक उपसाधनों ने संस्कृत अध्ययन-अध्यापन के क्षेत्र में इस विद्यापीठ को उन्नत बना दिया है। तिरुपति शहर के मध्यभाग में अवस्थित विद्यापीठ परिसर विशाल तरु छाया, सुन्दर बगीचे एवं मनोहर वन से अत्यंत आकर्षणीय लगता है।
सुविख्यात विद्वान् एवं राजनेता भारत के पूर्वमुख्य न्यायाधीश पतंजलि शास्त्री विद्यापीठ सोसाइटी के अध्यक्ष रहे हैं। उसके बाद प्राच्यविद्या के प्रसिद्धविद्वान् पी॰ राघवन् तथा लोकसभा के भूतपूर्व अध्यक्ष श्री एम्. अनन्तशयनं अय्यंगार जी अध्यक्ष हुए। डा॰ बी॰आर्॰ शर्मा जी ने 1962-1970 तक प्रथम निदेशक के रूप में काम किया है। श्री वेंकट राघवन्, डा॰ मण्डनमिश्र, डा॰ आर॰ करुणाकरन्, डा॰ एम॰ डी॰ बालसुब्रह्मण्यम् एवं प्रो॰ एन॰एस॰ रामानुज ताताचार्य ने क्रमशः प्राचार्य के रूप में अपने वैदुष्य एवं प्राशासनिक अनुभव से इस विद्यापीठ की सेवा की।
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा पारम्परिक शास्त्रीय विषय के क्षेत्र में सेन्टर फार एक्सेलेन्स दिया गया। राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यन परिषत् (NAAC)ने ए+ के श्रेणी से प्राधिकृत किया।
संक्षिप्त इतिहास
संपादित करेंभारत सरकार द्वारा गठित केंद्रीय संस्कृत आयोग की अनुशंसा पर 1950 में पारंपरिक संस्कृत की आधुनिक शोधशैली के साथ प्रचार-प्रसार हेतु शिक्षा मंत्रालय द्वारा तिरुपति में केंद्रीय संस्कृत विद्यापीठ तथा उसकी प्रशासनिक व्यवस्था हेतु सरकार ने केंद्रीय संस्कृत विद्यापीठ तिरुपति सोसाइटी नाम से एक स्वायत्त संस्था का पंजीकरण कराया गया। विश्वविद्यालय का शिल्यान्यास 4 जनवरी 1962 को तत्कालीन उपराष्ट्रपति डॉ॰ एस॰ राधाकृष्णन ने किया।
तिरुमला-तिरुपति-देवस्थान ट्रस्ट बोर्ड के तत्कालीन कार्यनिर्वहणाधिकारी डा॰ सी॰ अन्नाराव जी ने बयालिस एकड़ जमीन तथा भवन निर्माण हेतु 10 लाख रुपये दिये थे।
केन्द्रीय संस्कृत विद्यपीठ अप्रैल, 1971 को राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान के संरक्षण में शिक्षा मंत्रालय की स्वायत्त संस्था का रूप दिया गया। रजत जयंती महोत्सव के दौरान वर्ष 1987 में श्री पी.वी. नरसिंहाराव जी भारत सरकार के तत्कालीन केन्द्रीय मानवसंसाधन विकास मंत्री ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के यी॰जी॰सी॰, अधिनियम 1956 के अनुभाग 3 (राजपत्र अध्यादेश नं॰ एफ॰9-2य85 यु-3, 16-11-1987)के अनुसार विद्यापीठ को मानित विश्वविद्यालय घोषित किया। मानित विश्वविद्यालय का औपचारिक रूप से उद्घाटन दिनांक 26-08-1989 को तत्कालीन राष्ट्रपति श्री आर॰ वेंकटरामन् के द्वारा किया गया। विद्यापीठ ने शैक्षणिक सत्र 1991-92 से मानित विश्वविद्यालय के रूप में काम करना शुरू किया। उस समय से अत्यंत प्रतिष्ठित व्यक्ति जैसे पं॰ श्री पट्टाभिराम शास्त्रि, प्रो॰ रमारंजन मुखर्जी और डा॰ वि॰आर॰ पंचमुखी इस विद्यपीठ के कुलाधिपति रहे हैं। प्रो॰ एन॰एस॰ रामानुज ताताचारय, प्रो॰ एस॰बी॰ रघुनाथाचार्य और प्रो॰ डी॰ प्रह्लादाचार ने क्रम से 1989 से 1994; 1994 से 1999 और 1999 से 2004 तक कुलपति के रूप में इस विद्यापीठ की सेवा की है। दिनांक 16.06.2008 से अासाम के राज्यपाल प्रज्ञान वाचस्पति डा॰ जानकी वल्लभ पट्टनायक जी विद्यापीठ के कुलाधिपति पद पर विराजमान है। प्रो॰ हरेकृष्ण शतपथी जी विश्वविद्यालय के कुलपति हैं, वे 19 अप्रैल, 2006 को कुलपति पद का कार्यभार ग्रहण किए हैं। अध्ययन-अध्यापन, शोध, प्रकाशन तथा संस्कृत के संरक्षण एवं प्रचार प्रसार के क्षेत्र में विद्यापीठ की उपलब्धियों को देखते हुए विद्यापीठ को निम्न उपाधियों से प्रोत्साहित एवं अलंकृत किया गया है।